व्यंग्य लेख
– डॉ. दीपक आचार्य
यह नियति ही हो गई हैं जहाँ कुछ हरा-भरा चरने, देखने , चूसने , सूंघने और खाने लायक कहीं नज़र आया नहीं कि बेशर्म होकर लपक पड़ते हैं सारे के सारे उधर।
खेतो में फूली पीली सरसों क्या लहलहाने लगी, मोयलों की पूरी की पूरी सेना ही टूट पड़ी है। हर मोयला बदहवास होकर भागने लगा है लपकने और उछलकूद करने लगा है। सबके दिन आते हैं। आजकल मोयलों के दिन हैं। जाने कहाँ-कहाँ से नए-नए मोयलों की जमाते कब्जा जमाये बैठी हैं। गाँव -कस्बों और शहरों तक मोयलों की सत्ता का डंका बज रहा है।
मोयलों की सियासत में जाने क्या चक्रवात आया हुआ है। बस्तियों व सड़कों से लेकर आसमान तक मोयलों का जबरदस्त विस्फोट हो चुका है। अभी सर्दी का कोहरा कुछ थमा ही था कि मोयलों की धुंध ने जीना हराम कर डाला है। सब तरफ नए-नए मोयले नॉन स्टाम्प हवाई मार्चपास्ट और पेराग्लाइडिंग कर रहे हैं।
तमाम किस्मों के मोयले अनुशासन को धत्ता दिखाकर खेतों और जंगलों से शहरों की तरफ कूच कर गए हैं। मोयलों को कतई पसंद नहीं कि कोई उनकी करतूतों को देखे। इसलिए जो आँखें खुली रखकर चलना है उसी की आँख में तीर की तरह घुसपैठ कर लेते हैं। किसी आत्मघाती आतंकवादी की तरह खुद का बलिदान देकर भी ये मोयले औरों की आँखों में जलन पैदा कर अंधेरा ला देने का पूरा माद्दा रखते हैं। कोई हमारी आँखों में घुसने का दुस्साहस भले न कर पाया हो, पर मोयले अनचाहे भी आँख बस जाने के सारे जतन करने में माहिर हो गए हैं।
इन दिनों हवाओं को भी जाने कैसा भूत सवार है कि मोयलों की पूरी सेना का रूख ही उधर कर देती हैं जिधर इच्छा होती है। बच के रहिये। कुछ दिन से हवाओं ने भी मोयलों के साथ गठबंधन करना शुरू कर दिया है।
अब ये मोयले माने वाले नहीं हैं। हर तरफ उग आये हैं मोयले पंख लेकर पूरी स्वच्छंदता के साथ। किसम -किसम के मोयले आ चुके हैं हमारे बीच, आँख में धूल झोंकने या कि खुद घुसकर रोशनी की चुनौती देने।
एक मच्छर अगर आदमी को कुछ बना सकता है तो एक मामूली मोयला आँख का अचार तक बना सकता है। मोयलों को अपनी करनी करने दें । न उस तरफ देखें न ध्यान दें। नज़र नीची रखकर चलते रहें जहाँ तक जाना है।
मोयलों को कभी नहीं सुहाता कि कोई उनके सामने नज़र सीधी रख कर चले। कहने को कोई कितना ही कह डाले कि दो-चार दिन की बात है। सच इसके ठीक उलट है। मोयले बाज नहीं आते अपनी हरकतों से। मोयलों से कोई बच नहीं पाता। इन मोयलों की बदतमीजियाँ तो देखियें । रात के जुगनूओं की मानिंद फबने को बेताब हुए हवाओं के सर पर सवार हो इठला रहे हैं।
कितने दुस्साहसी हो गये हैं ये। जुगनू अंधेरी रात में भी चमक कर आँखों को सुकून देते हैं। ये नालायक हैं कि तीर की तरह घुसकर हैरान ही कर डालते हैं।
किसी न किसी रूप में मोयले हमेशा आमने-सामने होते रहे हैं, मोयले हमेशा ही पीछे पड़े होते हैं। मोयलों का सिर्फ नाम बदल जाता है, और स्वरूप भी। मोयले चिरंजीवी हैं, हमेशा रहे हैं, रहेंगे। मोयले जिंदगी भर छाये रहते हैं। खेत -खलिहानों से लेकर बस्तियों और फाईलों के जंगलों तक। बच के रहिये इनसे ।