याद कीजिए फरवरी 2016 की वह शाम जब जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह… इंशा अल्लाह…, अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं…, भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी, जंग रहेगी…’ जैसे नारे लगाए गए थे। तब राष्ट्रवादी सोच रखने वालों को यह अंदेशा तो गया था कि भारत में भीतर ही भीतर कुछ तो गलत हो रहा है। यह तब भी स्पष्ट होता था जब “जय भीम और जय मीम” के नारों से हिंदुओं के दलित वर्ग को स्वर्ण समाज से तोड़ने की साजिश रची जाती थी। यह तब भी समझ आता था कि संविधान, सेकुलरिज्म और अंबेडकर की आड़ में मुस्लिमों का तुष्टिकरण, उनकी जिहादी मानसिकता को तुष्ट किया जा रहा है। दूरदृष्टा हिंदुत्ववादी जब गज़वा- ए- हिन्द की आशंकाओं को गंभीर रूप से लेने की बात करते थे तो कथित सेकुलर लोग उनकी खिल्ली उड़ाते थे, उन्हे इस्लामोफोबिया से ग्रसित, संकुचित मानसिकता का रोगी बताते थे।
लेकिन अब जबकि बिहार पुलिस द्वारा पटना के फुलवारी शरीफ से जिन दो मुस्लिम लोगों की गिरफ्तारी हुई है। उससे यह स्पष्ट हो चुका है कि ऐसे सारे कयास बेबुनियाद नहीं थे। ये दोनों आरोपी केरल के जिस संगठन से जुड़े हुए हैं उसके विषय में केरल सरकार का कहना है, कि यह कट्टरपंथी इस्लामी संगठन {पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई), और उसका सहयोगी संगठन नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट (एनडीएफ)} घातक गतिविधियों में शामिल रही है। केरल उच्च न्यायालय को दी अपनी रिपोर्ट (२०१४) में राज्य सरकार ने उल्लेख किया है कि पीएफआई और एनडीएफ संगठन के कट्टरपंथी कार्यकर्ता राज्य में 27 साम्प्रदायिक हत्या और हत्या के प्रयास के 86 मामलों में लिप्त हैं। राज्य में 106 साम्प्रदायिक हिंसा के मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में कानपुर दंगों में, कर्नाटक में देश की छवि खराब करने वाले हिजाब विवाद और उसके बाद पैदा हुए तनाव के पीछे इसी संगठन का नाम सामने आया था। नागरिकता कानून (सीएए) मामले में भी इस पर जगह- जगह तनाव फैलाने और हिंसा कराने का आरोप लगा था। दक्षिण भारत में कई जगह तनाव और हिंसा के लिए बार – बार पीएफआई का नाम लिया जाता है। इतना ही नहीं एनआईए को इसके संबंध isis और प्रतिबंधित सिमी संगठन से जुड़े होने का शक हमेशा से रहा है। इसे जुड़े सदस्य तो isis से जुड़ने के लिए सीरिया तक पहुंच गए थे। इसके अतिरिक्त श्रीलंका में ईस्टर बम धमाके के मास्टरमाइंड का ब्रेनवॉश करने में इसी संगठन का हाथ होने का शक खुफिया एजेंसियों को है। 2017 में केरल पुलिस ने एनआईए को लव जिहाद के 94 मामले सौंपे थे। बताया जाता है कि लव जिहाद के इन मामलों के पीछे पीएफआई के 4 सदस्यों का हाथ था। एनआईए को शक था कि 94 शादियों में से 23 पीएफआई ने अपनी निगरानी में करवाई थी। इसके अलावा दिल्ली के मूक बधिर स्कूल में धर्मांतरण का रैकेट चलाने वाले आरोपि हों या राजस्थान के उदयपुर में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रियाज मोहम्मद अत्तारी और मोहम्मद गौस या फिर अजमेर में मौन जुलूस के दौरान सिर तन से जुदा नारे लगाने वाला, मुख्य आरोपी अजमेर शरीफ दरगाह का चिश्ती गौहर, जिसे एनआईए ने हैदराबाद से दबोचा था। इन सभी के कनेक्शन पीएफआई से रहे हैं।
पीएफआई भारत में खतरनाक और दीर्घकालिक योजना से काम कर रहा है। जो इसके सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद ज़ब्त दस्तावेज “इंडिया विज़न 2047” में स्पष्ट रूप से सामने आया है। पीएफआई का साफ़ कहना है कि 75 साल पहले एक इस्लामिक मुल्क भारत से अलग हुआ और जब 2047 में भारत आजादी के 100 वर्ष मनायेगा, तब तक भारत इस्लामिक राष्ट्र में बदल जाएगा। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जिस ‘मिशन 2047’ के एजेंडे पर काम कर रहा है वह बिल्कुल भी नया नहीं है। 1947 से ही मुस्लिम लीग और इससे जुड़े मुसलमानों का एक नारा, “लड़ के लिया है पकिस्तान, हंस के लेंगे हिंदुस्तान” काफ़ी कुख्यात रहा है। वास्तव में भारत में मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग जो कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के कहने पर पाकिस्तान नहीं गया, उनकी उस सोच जिसमें मुस्लिमों को पूरे हिंदुस्तान को “अपना” (पाकिस्तान) बनाने की योजना थी, पर मुस्लिम नेतृत्व अमल कर रहा है।
पीएफआई की योजना इतनी खतरनाक हैं, कि यह नेटवर्क भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए हिंदुओं को हिंदुओं से लड़ाने पर आमादा है। अक्सर फेसबुक ट्वीटर पर छद्म हिंदू नामों से बने एकाउंट जो जातिगत विष वमन करते रहे हैं, की भी जांच होनी चाहिए कि क्या इनको संचालित करने वाले किसी रुप में पीएफआई जैसे संगठन से प्रभावित तो नहीं हैं। पीएफआई की योजना राष्ट्रभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और SC/ST/OBC और दलितों के बीच में दरार पैदा करने की है। ताकि आरएसएस सिर्फ उच्च वर्ग के हिंदुओं तक ही सीमित हो जाए। इसके लिए यह नेटवर्क बड़े से बड़ा राष्ट्र-विरोधी कदम उठाने के लिए भी तैयार है। इस्लामी शासन स्थापित करने के इरादे को छुपाने के लिए राष्ट्रीय ध्वज, संविधान और आंबेडकर का इस्तेमाल करने की बात कही गई। जो अक्सर जय मीम, जय भीम नारों के साथ सामने आता रहा है। यही नहीं पीएफआई इसकी विचारधारा के मुस्लिमों की एग्जीक्यूटिव और जुडिशियरी में भी घुसपैठ करा अधिक से अधिक जानकारी जुटाने और उनका इस्तेमाल करने में लगा है।
ध्यान देने की बात है कि बिहार से पकड़े गए दोनों आरोपी में से एक आरोपी मोहम्मद जलालुद्दीन झारखंड पुलिस का रिटायर अधिकारी है। यानी इस घटना और जब्त दस्तावेजों के काफी पहले से इस योजना पर काम चल रहा है। पूछताछ में मोहम्मद जलालुद्दीन ने कुबूला है कि वह संगठन से जुड़े लोगों को छद्म नामों से छिपाने बचाने में मदद करता था। उसने ही ट्रेनिंग के लिए आए लोगों के ठहराने की जिम्मेदारी संभाली थी। उसने कबूल किया कि उसने अपने घर को ट्रेनिंग के लिए अतहर परवेज को किराए पर दिया था। I दूसरे आरोपी का नाम अतहर परवेज है। जलालुद्दीन पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़ा हुआ था। गिरफ्तार अतहर का भाई मंजर परवेज पटना में बम ब्लास्ट की आतंकी घटना में शामिल था और फिलहाल जेल में है। इससे पता चलता है कि ये दोनों खूब सोच समझ कर ये काम कर रहे थे। संभव है कि इनके परिवार की इसमें सहमति हो। इसकी भी गहनता और कड़ाई से जांच होनी चाहिए।
पीएफआई एक नया संगठन अवश्य है। लेकिन यह जिस विचारधारा से पोषित होता है वह है वहाबी या देवबंदी विचारधारा। ऐसे में वहाबी विचारधारा और उससे जुड़े जमात- ए- इस्लामी, उलेमा- ए- हिंद जैसे कथित सेकुलर चोगा ओढ़े, अल्पसंख्यकों की रहनुमाई का दावा करने वाले संगठनों की प्रभावशीलता, उनकी भूमिका और उनके परस्पर आपसी संबंधों की गहनता से जांच होनी चाहिए। क्योंकि भविष्य में यदि पीएफआई पर प्रतिबंध लगता भी है, तो फिर कोई अन्य संगठन नए नाम, नए स्वरूप और नए ढंग से उभर कर सामने आ जाएगा।जैसा की प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के बाद हुआ है। इसलिए जड़ों पर चोट करना आवश्यक है।
युवराज पल्लव।
8791166480
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