न्यूक्लियर पावर का विस्तार करे भारत
सीमा सिरोही
भारत-अमेरिका के रिश्तों को और मजबूत बनाने का एक ‘बड़ा’ आइडिया इधर आया है। असल में, चीन लगातार अपने न्यूक्लियर हथियार बढ़ा रहा है। अमेरिका इसमें भारत को चीन से आगे निकलने में मदद कर सकता है। यह आइडिया उतना ही बड़ा है, जितना कि 2005 में हुआ भारत-अमेरिका परमाणु करार। इस न्यूक्लियर डील से भारत को न्यूक्लियर पावर का दर्जा मिला। उसे वैधता मिली। इससे परमाणु हथियारों के मामले में भेदभाव खत्म हुआ। लेकिन उसके बाद से भारत की प्रतिद्वंद्वी शक्तियां हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं हैं। इसीलिए जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र में अपनी सशक्त मौजूदगी का फिर से अहसास कराए।
एक नया त्रिकोण
परमाणु हथियारों के मामले में चीन के मुकाबले में खड़ा होने या उससे आगे निकलने के लिए अमेरिका, फ्रांस के जरिये भारत की मदद कर सकता है। इससे समुद्र में भारत को परमाणु प्रतिरोधी क्षमता हासिल होगी। इसके जरिये अमेरिका भारत की परमाणु पनडुब्बी हमले की ताकत बढ़ाने में मदद कर सकता है। ऐसा होने पर हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को चीन की भावी आक्रामक गतिविधियों को रोकने में मदद मिलेगी। आइए, बताते हैं यह कैसे होगाः
पहला, फ्रांस बेहतर समुद्री परमाणु रिएक्टर विकसित करने में भारत की मदद कर सकता है क्योंकि वह भारत के अरिहंत के मुकाबले कहीं बेहतर पनडुब्बियां बनाता है। मगर इसमें अमेरिका को भी सहमति देनी होगी।
दूसरा, इससे भारत-फ्रांस-अमेरिका (इन्फ्रस) सहयोग का मंच तैयार होगा, जो हाल ही में बने ऑस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-अमेरिका के ऑकस ग्रुप जैसा होगा।
तीसरा, इससे चीन को रोकने में मदद मिलेगी, जिसकी बैलिस्टिक मिसाइल ताकत समय के साथ काफी बढ़ी है और इस तरह भारतीय परमाणु हथियार ठिकानों के लिए ये मिसाइलें खतरा बन गई हैं।
इन्फ्रस का अनोखा आइडिया लेकर आए हैं ऐश्ले जे टेलिस, जो भारत-अमेरिका परमाणु करार के मुख्य हिमायतियों में रहे हैं। चीन, भारत और पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं पर अपनी नई विस्तृत रिपोर्ट ‘स्ट्राइकिंग एसिमेट्रीजः न्यूक्लियर ट्रांजिशंस इन सदर्न एशिया’ में टेलिस परमाणु हथियारों के भंडार, उनके डिलिवरी सिस्टम और परमाणु सिद्धांतों को लेकर इस क्षेत्र की ताजा स्थिति की पड़ताल करते हैं।
बदलाव का लेखा-जोखा लेने के लिए टेलिस 1998 को बेंचमार्क बनाते हैं। इसी साल भारत और पाकिस्तान दोनों ने परमाणु परीक्षण करके न्यूक्लियर क्लब में एंट्री की थी। एक बात यह भी है कि उस समय तक चीन ‘मिनिमम डेटरेंस’ के सिद्धांत में कुछ न कुछ यकीन रखता था। आज जियो-पॉलिटिक्स पूरी तरह से बदल गई है। अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता कहीं ज्यादा तीखी है। वहीं, भारत और चीन के रिश्ते भी तनाव से गुजर रहे हैं। भारत सिर्फ चीन की बढ़ती आक्रामकता का ही सामना नहीं कर रहा है। उसके सामने महत्वाकांक्षी पाकिस्तान की भी चुनौती है। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आतंकवाद का पुराना खेल जारी रखा है। परमाणु हथियार बनाने के बाद पाकिस्तान की भारत को लेकर असुरक्षा खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसे में टेलिस के विश्लेषण की नीचे दी गई बातें भारत के लिए गौर करने लायक हैं।
पहली, दक्षिण एशिया में भारत परमाणु हथियारों के मामले में तीसरे नंबर पर है। इसमें चीन पहले नंबर पर और पाकिस्तान दूसरे नंबर पर, जो तरह-तरह के न्यूक्लियर हथियार विकसित करने में लगा है।
दूसरी, भारत इस मामले में इसलिए पिछड़ गया क्योंकि यहां के नीति-निर्माताओं ने परमाणु हथियारों की होड़ में पड़ने की जरूरत नहीं महसूस की।
तीसरी, भारत को यह गलती सुधारनी होगी। अभी भारत-चीन और अमेरिका-चीन के रिश्ते खराब हैं। इसे देखते हुए आगे चलकर भारत को कहीं बड़े परमाणु हथियारों के भंडार की जरूरत पड़ सकती है।
इन्फ्रस से यह मसला हल हो सकता है। अमेरिका ने कोल्ड वॉर के दौरान सोवियत संघ को काउंटर करने के लिए फ्रांस को थर्मोन्यूक्लियर हथियार विकसित करने में मदद दी थी। उसी तरह फ्रांस आज भारत की मदद कर सकता है। हालांकि, इसके लिए अमेरिका का सहयोग बेहद जरूरी है। असल में अमेरिका से ग्रीन सिग्नल के बाद ही फ्रांस यह काम कर सकता है। दूसरी तरफ, अमेरिका को भी इन्फ्रस का समर्थन करना चाहिए। इससे उसे चीन को रोकने में मदद मिलेगी। यह एशिया और हिंद-प्रशांत में चीन को रोकने की उसकी रणनीति के मुताबिक होगा।
महज राजनीतिक औजार
टेलिस के इस आइडिया के बीच कुछ अच्छी खबरें भी हैं। भारत, चीन और पाकिस्तान- तीनों देश अब भी परमाणु हथियारों को दूसरों पर अंकुश लगाने वाले राजनीतिक औजार के रूप में देखते हैं न कि वास्तव में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार के रूप में। यह बात सबसे ज्यादा भारत पर लागू होती है। टेलिस भारत को एक ‘संतुष्ट’ शक्ति बताते हैं। पाकिस्तान के मामले में भी परमाण्विक शब्दावली (भारत के लिए ‘छिपने की कोई जगह नहीं रहेगी’ जैसे बयान) और लड़ाई में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की तैयारी दिखाने वाली घोषणाओं का असल मकसद भारत पर अंकुश लगाने वाले अन्य देशों का ध्यान आकर्षित करना ही होता है। तीनों में से किसी भी देश ने परमाणु हथियारों को युद्ध में सचमुच इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक सैन्य हथियारों की श्रेणी में नहीं डाला है। पाकिस्तान के परमाणु हथियार तो स्ट्रैटेजिक प्लांस डिविजन की सख्त निगरानी में हैं। चीन की भी लगभग यही स्थिति है, बस इसके परमाणु हथियारों का एक हिस्सा हमेशा अलर्ट मोड में होता है।
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