भाजपा करेगी नीतीश का फायदा

जैसे कि हमने पहले शंका व्यक्त की थी, बिहार की राजनीति उलझती ही जा रही है। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को अपना इस्तीफा चुपचाप राज्यपाल को थमा देना चाहिए था। जब विधायक दल ने नया नेता चुन लिया तो मांझी के टिके रहने की कोई तुक नहीं थी लेकिन मांझी तो मांझी ठहरे। जब तक उनकी नांव डूब नहीं जाएगी, वे उसे खेते रहेंगे। मांझी ने पलटकर जो दांव मारा, वह लाजवाब है। उन्होंने जनता दल (यू) की संसदीय पार्टी की बैठक को ही अवैध घोषित कर दिया और उनकी इस घोषणा पर पटना उच्च न्यायालय ने भी मोहर लगा दी। संसदीय दल का नेता मुख्यमंत्री होता है। उसकी अनुमति के बिना कोई बैठक कैसे बुलाई जा सकती है?

यह वह मुख्यमंत्री है, जो नीतीश की कृपा से अपनी कुर्सी में बैठे हैं। अब नीतीश ने इस्तीफा मांगा तो उन्हें चुपचाप इस्तीफा दे देना चाहिए था लेकिन उन्होंने नीतीश को बड़ी मुसीबत में डाल दिया है। वे भाजपा और नीतीश के विधायकों से सांठ-गांठ कर रहे हैं। वे प्रधानमंत्री से भी मिल आए हैं। वे अब 20 फरवरी को विधानसभा में शक्ति-परीक्षण करेंगे। राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने इस शक्ति-परीक्षण पर मोहर लगा दी है। नीतीश द्वारा विधायकों की परेड भी बेकार सिद्ध हुई। न राज्यपाल कुछ कर सकते हैं और न ही राष्ट्रपति!

20 फरवरी के शक्ति-परीक्षण में मांझी तभी सफल होंगे, जबकि भाजपा उन्हें हथेली में उठा ले। यदि मांझी सफल हो गए तो बिहार में ही नहीं, सारे देश में भाजपा की बहुत थू-थू होगी। मोदी सरकार की इज्जत तार-तार हो जाएगी। बिहार में नवंबर के चुनाव में भाजपा की वही स्थिति हो जाएगी, जो दिल्ली में हुई है। वैसे भाजपा के प्रवक्ता दावा कर रहे हैं कि उसे मांझी से कुछ लेना-देना नहीं है।

यदि भाजपा अपने दावे के मुताबिक बर्ताव करे तो बिहार की जनता में उसकी छवि निखरेगी। बिहार में राष्ट्रपति शासन लगवाने की बजाय नीतीश को सरकार चलाने दी जाए तो भाजपा के सत्तारुढ़ होने के अवसर आसान हो जाएंगे। लेकिन केंद्र सरकार के वर्तमान रवैए का लाभ नीतीश को मिले बिना नहीं रहेगा। उसका अनुकूल असर तीसरे मोर्चे की अखिल भारतीय राजनीति पर भी पड़ेगा।

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