अहिंसा से क्या मिला । सच्चा इतिहास क्या है। जानने के लिए
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1857 का स्वात्नत्र्य समर
लाला हरदयाल, भगत सिंह व सुभाषचंद्र जैसे तीन-तीन दिग्गज क्रांतिकारी जिस ग्रंथ को प्रकाशक के रूप में मिले हों; उस ग्रंथ की महानता दर्शाने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है?
1857 में सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत कर देशभक्ति का परिचय दिया था। विदेशी इतिहासकारों ने इस स्वाधीनता संग्राम को सैन्य बगावत कहा। दुर्भाग्य से तत्कालीन भारतीय नेता भी इसे राजद्रोह, बगावत के तौर पर देख रहे थे। सावरकर पहले इतिहासकार थे, जिन्होंने 1857 के सैन्य विद्रोह को भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुति इतनी सशक्त थी कि अंग्रेजों को प्रकाशन पूर्व ही उस पर पाबंदी लगानी पड़ी। भारत, इंग्लैड, फ्रांस आदि राष्ट्रों में पाबंदी होने पर भी सावरकर जी और उनके सहयोगियों ने इसे नीदरलैंड से प्रकाशित कर अंग्रेज सरकार को मुंह के बल गिराया।
भगतसिंह ने सावरकर के विषय मे लिखा है–
‘स्वदेशी आंदोलन का असर इंग्लैंड तक भी पहुंचा और जाते ही श्री सावरकर ने ‘इंडिया हाउस’ नामक सभा खोल दी. मदनलाल भी उसके सदस्य बने…. एक दिन रात को श्री सावरकर और मदनलाल ढींगरा बहुत देर तक मशवरा करते रहे. अपनी जान तक दे देने की हिम्मत दिखाने की परीक्षा में मदनलाल को जमीन पर हाथ रखने के लिए कहकर सावरकर ने हाथ पर सुआ गाड़ दिया, लेकिन पंजाबी वीर ने आह तक नहीं भरी. सुआ निकाल लिया गया. दोनों की आंखों में आंसू भर आये. दोनों एक-दूसरे के गले लग गए. आहा, वह समय कैसा सुंदर था. वह अश्रु कितने अमूल्य और अलभ्य थे! वह मिलाप कितना सुंदर कितना महिमामय था! हम दुनियादार क्या जानें, मौत के विचार तक से डरनेवाले हम कायर लोग क्या जानें की देश की खातिर कौम के लिए प्राण दे देने वाले वे लोग कितने उंचे, कितने पवित्र और कितने पूजनीय होते है!’ (संदर्भ- भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज, पृष्ठ संख्या 166-68, पुनर्मुद्रण मई 2019 राहुल फाउंडेशन, लखनऊ)
22 जून, 1940 को सावरकर जी से मिलने नेताजी मुंबई के सावरकर सदन पहुंचे। सावरकरजी के चरित्रकार बताते हैं कि समय तय किए बगैर सावरकर किसी से मिलते नहीं थे। लेकिन बिना समय तय किए अचानक पहुंचे सुभाषचंद्र बोस का सावरकर जी ने गर्मजोशी से स्वागत किया। मानो, वह उन्हीं की राह देख रहे थे।
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आजाद हिन्द फौज की कहानी
लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक ने कड़ियों को जोड़ते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र औरआजाद हिन्द फौज के इतिहास को अत्यन्त सूक्ष्मता से लिखा है। यह पुस्तक उस इतिहास का दस्तावेज़ है जो स्कूल के सेलेबस मे नहीं है।