वैदिक संस्कृति का कोई तपा हुआ ऋषि ही ऐसी प्रार्थना कर सकता है कि हे अभय प्रदाता परमपिता परमेश्वर ! आप जिस – जिस स्थान से चेष्टा करते हो, उस – उस स्थान से हमें निर्भयता प्रदान करो। हमारे प्रजा जनों का अर्थात पुत्र, पुत्री, शिष्य आदि का सर्वत्र कल्याण करो तथा हमारे गाय,बैल, भेड़ ,बकरी आदि पशुओं को भी सुखी करो। क्योंकि मनुष्य वही है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन की रक्षा करना जानता है। जो व्यक्ति या संप्रदाय इनकी हिंसा कर इनका विनाश करता है और इनके मांस को खाता है, वह मनुष्य नहीं है। कोई भी मनुष्य इनकी हिंसा नहीं करे, ऐसी बुद्धि आप सब को प्रदान करो। किसी भी पशु की हिंसा करके पेट भरने वाले व्यक्ति कभी शांतिप्रिय नहीं हो सकते। क्योंकि हिंसा से पेट भरने से उनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है। उनकी बुद्धि पर तामसिकता का आवरण पड़ जाता है।
हे प्रभु ! हम कोई भी ऐसा काम नहीं करें , जिससे हमें कभी कोई भय हो। साथ ही हम अपनी आत्मा की नित्यता को बोध करें । जिससे हमें मृत्यु का भी भय नहीं हो । इसी प्रकार हम पर्याप्त मात्रा में पुण्य कर्मों का संचय करें , जिससे हमें अगले जन्म में पशु पक्षी बनने का भी भय न हो और हम मनुष्य बन सकें तथा निष्कामता पूर्वक परोपकार करते हुए जन्म मरण आदि दुखों के भय से छूटकर मोक्ष पद को प्राप्त करें। इस प्रकार हे प्रभु देव ! आप हम मनुष्यों का व सब जीव जंतुओं का कल्याण करो एवं सब को सुखी रहो, आनंदित रखो।
ऐसी – ऐसी प्रार्थना वैदिक ऋषियों के हृदय से निकलती हैं तो संसार का परिवेश सात्विकता के भावों से भर जाता है। सब सबके प्रति समर्पित होकर जीवन जीने के लिए प्रेरित हो उठते हैं। परमपिता परमेश्वर की इस बनाई हुई सृष्टि में प्राण ऊर्जा का संगीत इसी प्रकार की परम पवित्र प्रार्थना के माध्यम से ही गूंज सकता है। ‘सर तन से जुदा’ का नारा लगाने और किसी भी विपरीत मतावलम्बी का सर्वनाश कर केवल अपने लिए संसार को उपभोग करने के लिए युद्ध करना वैदिक संस्कृति की मान्यताओं के विरुद्ध है। इतनी परम पवित्र मान्यताओं के सनातन धर्म को भी लोग रूढ़िवादी मानते हैं तो इसके विरुद्ध सनातन धर्म वालों को ही बिगुल फूंकना होगा और एक स्वर से यह मांग करनी होगी कि हमारी परम पवित्र मान्यताओं को वैश्विक मंचों पर मान्यता मिलनी चाहिए।
कांवड़ लाने न लाने की पौराणिक परंपरा की वैज्ञानिकता पर कोई चर्चा न करते हुए हम इस समय एक विशेष बिंदु पर अपना मंतव्य रखना चाहते हैं। इस समय किसी भी ढंग से देश में आग लगाने के लिए देश के टुकड़े – टुकड़े करने का सपना संजोने वाले लोग विभिन्न प्रकार से सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं। इनका उद्देश्य इस समय सनातन धर्म के मानने वालों को बदनाम करने का है। उनके इस उद्देश्य को समझ कर न केवल सरकार और हमारे सुरक्षाबलों को ही सावधान होने की आवश्यकता है अपितु सनातन धर्म के मानने वालों को भी सावधान होने की आवश्यकता है।
कई प्रकरण इस प्रकार के आ चुके हैं जब किसी घटना विशेष में घटना में संलिप्त रहे लोगों को पकड़ा गया तो वे भगवे कपड़ों में आतंकवादी निकले, जिनका मजहब इस्लाम था। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के शेरकोट थाना क्षेत्र में 24 जुलाई 2022 को तीन मजारों पर तोड़फोड़ और आगजनी करने का मामला प्रकाश में आया। पुलिस ने सूचना होने के बाद घटना में शामिल दो आरोपितों को समय रहते गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने कहा कि इस गिरफ्तारी से बड़ी सांप्रदायिक साजिश को अंजाम देने से रोका गया है।
वास्तव में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने का इनका उद्देश्य हिंदुत्व को बदनाम करना है। इसके लिए बहुत सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत कार्य हो रहा है। यह लोग ऐसा करेंगे और टीवी चैनलों पर बैठे इनके आका इनकी राष्ट्र विरोधी हरकतों को हिंदुत्व पर थोपकर हिंदुत्व को गाली देंगे। टीवी चैनलों पर बैठकर जब हिंदुत्व को इस प्रकार गाली दी जाएंगी तो उसका अंतरराष्ट्रीयकरण होगा और फिर वैश्विक मंचों पर भारत के विरुद्ध जहर उगला जाएगा। इस प्रकार भारत को घेरने के लिए ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। यह बहुत गहरा और व्यापक षड्यंत्र है जिसके प्रति हम जितनी शीघ्रता से सचेत हो जाएंगे ,उतना ही अच्छा होगा।
पता चला है कि बिजनौर में घटित हुई उक्त घटना में संलिप्त रहे दोनों आरोपित मुस्लिम समुदाय के हैं । जिन्हें मजार क्षतिग्रस्त करते हुए पहले स्थानीय लोगों ने देखा। फिर पुलिस में शिकायत की। सूचना होने पर पुलिस मौके पर पहुँची। मजहबी उलेमाओं के सामने घटनास्थल का मुआएना करने के बाद बताया गया कि मजहबी पुस्तकों को कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन मजार की चादर और पर्दे जलाकर खाक कर दिए गए हैं।
अब जबकि उपरोक्त घटना का सच सबके सामने आ गया है तो जो लोग ‘सर तन से जुदा’ का नारा देने वालों के लिए बड़े-बड़े टीवी चैनलों पर बैठकर गला फाड़ रहे थे अब वे सब शांत होकर बिलों में घुस गए हैं। इसे वह अपना दुर्भाग्य मान रहे होंगे कि घटना का भंडाफोड़ हो गया और उनकी षड्यंत्रकारी नीति सामने आ गई है। बात-बात पर संविधान की दुहाई देने वाले लोग अब मौन हो गए हैं। जो लोग बार-बार ‘देश कानून से चलेगा’ की बात कर रहे थे वह भी अब कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। नौटंकीबाज केजरीवाल और उन जैसे धर्मनिरपेक्ष मुस्लिमपरस्त नेता भी अब कोई वक्तव्य देते दिखाई नहीं दे रहे हैं।
आप तनिक कल्पना कीजिए कि यदि वास्तव में कोई हिंदू इस घटना में संलिप्त मिलता तो आज क्या स्थिति हो रही होती ? गंगा जमुनी तहजीब का गैंग निश्चित रूप से तब सक्रिय हो रहा होता और उसको भोजन पानी देने का काम हमारे नेता भी कर रहे होते। हमारा मानना है कि इस प्रकार की गतिविधियों में जिस समुदाय के भी लोग कहीं कार्य करते हुए या षड्यंत्र रचते हुए पकड़े जाते हैं तो उनका मताधिकार अर्थात वोट देने का अधिकार समाप्त किया जाना चाहिए । इसके साथ-साथ उनके इस प्रकार के षड्यंत्र में सम्मिलित रहे या उसे किसी भी प्रकार से समर्थन दे रहे लोगों को भी इसी प्रकार से मताधिकार से वंचित करना चाहिए। यदि इस प्रकार के लोगों को सरकार से भी किसी प्रकार की सुविधाएं मिल रही हैं तो यह भी तुरंत समाप्त की जानी चाहिए। जब किसी के भी आतंकवादी लड़के के देशद्रोही कार्यों का दंड उसके परिवार को भी भुगतना पड़ेगा तो उस पर परिवार चौकसी रखना आरंभ करेगा। अब यह नहीं चलना चाहिए कि केवल और केवल अपराधी तक ही कानून अपना शिकंजा कसे। जो लोग अपराधी को कहीं दूर से बैठकर किसी भी प्रकार का संरक्षण या प्रोत्साहन दे रहे हैं उनको भी उसी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। कानून को विस्तार और शक्ति संपन्न करने की आवश्यकता है।
टी0वी0 डिबेटस में जो लोग आतंकवादियों का किसी भी प्रकार से समर्थन करते हैं या उनकी गतिविधियों को न्याय संगत ठहराने का प्रयास करते देखे जाते हैं उन्हें भी अब संदेह की दृष्टि से देखे जाने की आवश्यकता है। अब इससे भी काम नहीं चलेगा कि ऐसे लोगों को टी0वी0 चैनलों के माध्यम से देश के सामने इसलिए लाना आवश्यक माना जाए कि ऐसा करने से उनका चेहरा बेनकाब हो जाता है। चेहरे को बेनकाब कराने के लिए भी इस समय लोग तैयार बैठे हैं। इसका कारण केवल एक है कि उन्हें इस समय अपने संख्या बल पर कुछ अधिक घमंड हो चुका है। संख्या बल को देखकर अपने आपको शक्ति संपन्न और देश के कानून और संविधान से बड़ा मानने लगे हैं। इसलिए जो चाहे टी0वी0 डिबेटस में बोल जाते हैं।
इस सब के उपरांत भी हिंदू समाज को अपनी पाचन शक्ति पर भी ध्यान देना होगा। घर वापसी के लिए तैयार लोगों को सहर्ष स्वीकार कर उन्हें अपने समाज में समायोजित करने की नीति पर काम करने की आवश्यकता है। इससे हमारी सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलेगी। क्योंकि जो व्यक्ति एक बार हिंदू समाज को छोड़कर विधर्मी बन जाता है , वही इस देश के लिए खतरनाक हो जाता है। इस सच को हमें स्वीकार करना ही होगा। आवश्यकता इस समय छत्रपति शिवाजी का अनुकरण करने की है। मध्य काल के पश्चात औरंगजेब ने सन 1667 ई0 में छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति नेताजी पालकर को उनकी पत्नी और बच्चों सहित जोर जबरदस्ती से मोहम्मद कुली खान बनाकर अफगानिस्तान भेज दिया था। 1676 ई0। में नेताजी मुगल सेना से भागकर वापिस छत्रपति शिवाजी महाराज के पास आ गए। इसका कारण केवल एक था कि नेताजी के दिल में अपने मूल धर्म में लौटने की आग लग रही थी। जिसकी प्रचंड ज्वालाओं ने उन्हें फिर से शिवाजी महाराज की शरण में जाने के लिए प्रेरित किया। छत्रपति शिवाजी ने भी अपनी उदारता का परिचय देते हुए नेता जी और उनके परिवार वालों को शुद्ध कर फिर से हिंदू धर्म में वापस ले लिया। इसी प्रकार बजाजी नाईक निंबालकर इस मुस्लिम धर्मांतरित सरदार को भी शुद्ध कर उन्होंने फिर से हिंदू धर्म में सम्मान के साथ वापस ले लिया था। इतना ही नहीं अपनी तीसरी बेटी सखुबाई का विवाह उनके तीसरे पुत्र महादजी निंबालकर के साथ कर दिया था। इस प्रकार उनके बाद इस परंपरा को आगे चला कर सैकड़ों सैनिकों को शुद्ध कर हिंदू धर्म में वापस ले लिया गया। (संदर्भ : सर जदुनाथ सरकार ,शिवाजी एंड हिज टाइम्स, ओरियंट लोंगमन, दिल्ली 1976, पृष्ठ 157)
यह उद्धरण हमने यहां पर इसलिए प्रस्तुत किया है कि इस समय राष्ट्रीय चिंतन को बहुआयामी बनाने की आवश्यकता है। बिना किसी के प्रति ईर्ष्या भाव रखे हुए और बिना किसी के विनाश की योजनाओं पर काम किए हमें इस समय अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत बनाने के हर बिंदु पर विचार करना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य