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यह अरविंद वह नहीं है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ लेते समय जो भाषण दिया, उसे सुनकर ऐसा लगा कि वह अरविंद नहीं है, जिसे साल भर पहले हमने इसी दिल्ली में नौटंकियां करते हुए देखा था। उस समय भी अरविंद ने दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म करने की घोषणा की थी, लेकिन वे मुख्यमंत्री उसी पार्टी के कंधे पर चढ़कर बने थे, जिसका भ्रष्टाचार के कारण ही सफाया हुआ था। भ्रष्टाचार के पांव लगाकर आप सदाचार की दौड़ कैसे लगा सकते हैं? मुख्यमंत्री का पद उनकी फिसलपट्टी सिद्ध हुआ। अब भी वे मुख्यमंत्री नहीं बनते और मनीष सिसोदिया या किसी अन्य साथी को बना देते तो ‘आम आदमी पार्टी’ दुधारी तलवार बन जाती। वह दिल्ली को आदर्श शहर बनाती और उसका ढिंढौरा सारे देश में पीटती। सारे देश में अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नर-केसरी की तरह घूमता और पांच साल में सारे देश को जगा डालता! फिर भी मुझे खुशी है कि 10-15 दिन पहले मैंने ‘नया इंडिया’ और कुछ टीवी चैनलों पर जो राय दी थी, अरविंद उस पर अमल करने का वायदा कर रहे हैं। चुनाव-परिणाम आए, उसके काफी पहले मैंने कहा था कि ‘आप’ दिल्ली में जमकर जीतेगी। वह दिल्ली में सुराज स्थापित करे और पांच साल तक देश के किसी भी प्रदेश से चुनाव नहीं लड़े। सिर्फ संगठन खड़ा करे। वह भी ऐसा कि अगर 24 घंटे में सत्ता संभालनी हो तो संभाल ले। अब अरविंद ने इसी बात को दोहराया है, इसके बावजूद कि योगेंद्र यादव ने कुछ और कह दिया था। यदि अरविंद अपनी बात पर डटे रहे तो ‘आम आदमी पार्टी’ दिल्ली में सत्तापक्ष और देश में विपक्ष की भूमिका बखूबी निभा सकती है। ऐसे में यदि अरविंद की नौटंकी की खसलत जारी रही तो वह भी खूब काम आएगी।

दिल्ली में क्या करना है, यह अरविंद-मनीष को पता है लेकिन देश में उन्हें क्या करना है, इसका पता उन्हें भाजपा और कांग्रेस से भी कम है। ये दोनों पार्टियां तथा लगभग सभी अन्य पार्टियां चुनाव-मशीनें बन गई हैं। इसके अलावा वे शून्य हैं। उनके पास कोई रण ही नहीं है तो उनकी रणनीति क्या होगी? उनके पास कोई नेता भी नहीं है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लायक तो दर्जनों लोग हैं। लेकिन वे कुर्सी के बिना जीरो हैं। वे पद अब सिर्फ महिमामंडित नौकरियां बनकर रह गए हैं। अरविंद चाहे तो भारतीय राजनीति के इस शून्य को भर सकता है। कुर्सी पर बैठे बिना ही भर सकता है। बशर्ते कि अरविंद के पास कोई सपना हो, कोई दृष्टि हो, कोई नीति हो, कोई ठोस कार्यक्रम हो। यदि यह सब नहीं होता है और ‘आम आदमी पार्टी’ सिर्फ दिल्ली शहर में ही घिरकर रह जाती है तो क्या होगा? यही होगा कि उसे नगरपालिका पार्टी मान लिया जाएगा और उसके नेताओं को नगर-नेता। लेकिन अरविंद को अब यह सिद्ध करना है कि यह अरविंद अब वह नहीं है, जो पिछले साल था।

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