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जब स्वामी दयानन्द जी गुजरात (अविभाजित पंजाब का एक जिला) में थे तो कुछ लोगों ने उनसे पूछा, “महाराज आप ज्ञानी हैं या अज्ञानी?”
यह सवाल चालाकी का था! पूछने का मकसद यह था कि यदि स्वामी जी कहेंगे कि मैं ज्ञानी हूं तो हम कहेंगे यह तो अहंकार की बात है!आपको अहंकार नहीं करना चाहिए! और यदि वे अपने को अज्ञानी बताएंगे तो हम उन्हें कहेंगे कि हम अज्ञानी का उपदेश क्यों सुनें? परंतु स्वामी जी ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया, “कई बातों में हम अज्ञानी हैं; हमें दुकानदारी, व्यापार आदि का ज्ञान नहीं है। हम अंग्रेजी और फारसी भी नहीं जानते। इनमें हम अज्ञानी हैं, किंतु वेदादि सत्य शास्त्रों और धर्म की अवधारणा से पूर्ण परिचित हूँ। मैं इसी ज्ञान का अन्यों को उपदेश देता हूं।”
स्रोत: ऋषि दयानंद की खरी- खरी बातें
लेखक: डॉ. भवानी लाल भारतीय