बहुत ही सादगी और विनम्रता के साथ सभी के साथ पेश आने की छवि रखने वाले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बहुत ही मर्यादित शैली में रहकर अपना कार्यकाल पूर्ण किया। संवैधानिक प्रमुख के साथ-साथ संवैधानिक संरक्षक के रूप में भी उन्होंने अपने पदीय दायित्वों को बड़ी ईमानदारी से निभाया। किसी ने भी उनकी निष्ठा पर संदेह व्यक्त नहीं किया। वास्तव में भारत में इसी प्रकार के गणतंत्र की कल्पना की गई थी। जिसमें संवैधानिक प्रमुख संविधानिक संरक्षक के दायित्वों का ईमानदारी के साथ निर्वाह करें और सबको ऐसा लगे कि राष्ट्रपति उनकी बात को सुनेंगे। राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के पश्चात रामनाथ कोविंद ने जब उस समय अपना भाषण दिया था तो उसमें भी उन्होंने इस बात के संकेत दिए थे कि वह दूर दृष्टि और प्रतिबद्धता रखने वाले राष्ट्रपति हैं। अपने उस भाषण में श्री कोविंद ने इस बात को बड़ी सहजता और सरलता के साथ स्वीकार किया था कि वह एक गांव में पले बढ़े हैं और उनका बचपन कई प्रकार के अभावों से जूझता रहा है। अपने पूरे राजनीतिक सफर में देश में सामाजिक समरसता उत्पन्न करने अर्थात समतावाद और समग्रता को स्थापित करने का उल्लेखनीय और प्रशंसनीय कार्य किया है।
उन्होंने राष्ट्रपति बनते समय भी और अब राष्ट्रपति भवन से विदा होते समय भी अपनी शालीनता और विनम्रता को छोड़ा नहीं। दोनों अवस्थाओं में सम रहना उनकी विलक्षणता है। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कोरोना काल में भी अपना महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देश को दिया। जब जब भी लोगों की नजरें राष्ट्रपति भवन की ओर गई तब तब उन्होंने बड़ी निष्पक्षता और न्यायप्रियता का परिचय देते हुए अपनी भूमिका का निर्वाह किया। उनके इस प्रकार के आचरण से लोगों का अपने संवैधानिक प्रमुख के प्रति सम्मान तो बढ़ा ही साथ ही राष्ट्रपति भवन के प्रति भी लोगों में श्रद्धा भाव बढ़ा।
उन्होंने 25 जुलाई 2017 को कहा था, ‘हमारी विविधता ही वह मूल है जो हमें इतना विशिष्ट बनाती है। इस भूमि में हम राज्यों और क्षेत्रों, धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों, जीवन शैली और बहुत कुछ का मिश्रण पाते हैं। हम इतने अलग हैं और फिर भी इतने समान और एकजुट हैं।’
वास्तव में लोगों के दिलों की दूरियों को दूर करके निकटता और एकता का भाव पैदा करना और इस बात का आभास दिलाना कि हम सब एक ही राष्ट्र के वासी हैं, एक ही छतरी के नीचे रहने वाले लोग हैं, देश के संवैधानिक प्रमुख का सबसे बड़ा दायित्व होता है। एक प्रकार से संवैधानिक प्रमुख के पद पर रहकर देश का राष्ट्रपति सारे देशवासियों के लिए एक छतरी का काम करता है। जिसके नीचे सभी भाषाओं, सभी संप्रदायों ,सभी वर्गों, सभी जातियों, सभी क्षेत्रों, सभी राज्यों के लोग अपने आपको सुरक्षित अनुभव करते हैं। देश का राष्ट्रपति देश की राजनीति का एक अनिवार्य भाग होकर भी देश की राजनीति से दूर रहता है। वह दलीय भावों से अपने आपको विलग करने का जितना शानदार आभास देशवासियों को कराता रहता है उतना ही वह देश के लोगों का सम्मान प्राप्त करता है और इस कसौटी पर रामनाथ कोविंद पूरी तरह खरे उतरे। 76 वर्षीय श्री रामनाथ कोविंद देश के प्रथम नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए विवादों से सदा दूर बने रहे। उन्होंने जून 2022 तक 33 देशों की यात्राएं कीं और प्रत्येक देश के दौरे पर उन्होंने भारत की महानता के झंडे गाड़े। उन्होंने शांति, प्रगति, सद्भाव और सह अस्तित्व के भारत की राजनीति के परंपरागत मूल्यों को लोगों को बताने समझाने में सफलता प्राप्त की।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में उन्हें मेडागास्कर, इक्वेटोरियल गिनी, एस्वातीनी, क्रोएशिया, बोलीविया और गिनी गणराज्य से सर्वोच्च राजकीय सम्मान प्राप्त हुआ। इसके उपरांत भी उन्होंने किसी प्रकार के अहंकार को अपने व्यक्तित्व को छूने नहीं दिया। अहंकार शून्य व्यक्तित्व ने उनको और भी अधिक ऊंचाई और सम्मान प्राप्त कराया। श्री कोविंद ने भारत के सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर के रूप में मई 2018 में लद्दाख के सियाचिन में संसार के सबसे ऊंचे रण कुमार पोस्ट की ऐतिहासिक यात्रा की थी। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में कानपुर जिले के गांव परौंख में एक छोटे से सामान्य परिवार में हुआ था। वह अपनी कड़ी मेहनत से वकील बने, उसके पश्चात सांसद और फिर बिहार के राज्यपाल बने। इसके बाद वह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचे।
श्री रामनाथ कोविंद ने दिल्ली बार काउंसिल में 1971 में वकील के रूप में अपना पंजीकरण करवाया था। वे 1977 से 1979 तक दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के अधिवक्ता रहे। 1978 में श्री कोविंद उच्चतम न्यायालय में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड बने। वह 1980 से 1993 तक शीर्ष अदालत में केंद्र सरकार के स्थाई अधिवक्ता के रूप में भी कार्य करते रहे। 1994 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य बने। उन्हें 8 अगस्त 2015 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने अपने पदीय दायित्वों का बड़ी ईमानदारी के साथ निर्वाह किया। उन्होंने किसी भी प्रकार से सरकार के कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप नहीं किया और ना ही सरकार को किसी भी प्रकार से परेशान करने का कार्य किया। उनकी इसी प्रकार की कार्यशैली ने उन्हें देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने में सहायता प्रदान की। देश के राष्ट्रपति बनने वाले वह दूसरे दलित नेता रहे हैं। इससे पहले 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक के आर नारायणन देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो दलित समाज से थे। श्री कोविंद की पत्नी सविता कोविंद हैं और उनका एक बेटा और एक बेटी है। देश का राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को अनुचित हस्तक्षेप करने से रोका । यही कारण है कि उनकी छवि इस दृष्टिकोण से भी बेदाग बनी रही।
देश की सामाजिक समरसता को स्थापित किए रखने और देश की एकता और अखंडता के दृष्टिगत ही नहीं बल्कि सभी को लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक मूल्यों का लाभ प्राप्त कराने के दृष्टिकोण से भी यह आवश्यक है कि देश के के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर देश के प्रत्येक वर्ग व समुदाय के व्यक्ति को पहुंचने का अवसर प्रदान किया जाए। जब इस पद पर अभावों का जीवन जीकर अपने आपको सोने से कुंदन बनाने वाले तपे हुए लोग आगे पहुंचते हैं तो बड़ी प्रसन्नता होती है। इससे दूर देहात में रहने वाले बच्चों को भी यह एहसास होता है कि एक दिन वह भी देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर जा सकते हैं।
निश्चय ही श्री रामनाथ कोविंद एक गंभीर और प्रेरक व्यक्तित्व के स्वामी के रूप में देश के इतिहास में याद किए जाएंगे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत