भारत से प्रतिभा पलायन की विकट होती जा रही समस्या
ललित गर्ग
भारत जब दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं नीतियों की दुनिया में सराहना हो रही है, विकास की अनंत संभावनाएं उजागर हो रही हैं, इन सकारात्मक स्थितियों के बीच ऐसे क्या कारण हैं कि नागरिक एवं प्रतिभा पलायन जारी है।
भारत के लिये यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिन्ता का विषय है कि भारत के लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं। पिछले तीन साल से औसतन 358 लोग प्रतिदिन और प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 63 हजार लोग भारत की नागरिकता त्यागकर विदेशों में बस गये हैं। भारत से पलायन कर विदेशों में बसने के क्या कारण है? ऐसा क्यों हो रहा है? क्या आम नागरिकों को जिस तरह का सहज एवं शांतिपूर्ण जीवन अपेक्षित होता है, उसका अभाव पलायन का कारण है? क्या रोजगार एवं जीवन-निर्वाह की मूलभूत सुविधाएं सुलभ कराने में सरकार नाकाम हो रही है? जो भी कारण हो, नागरिकों का भारत से पलायन एक गंभीर समस्या है, इसके कारणों का पता लगाकर उस पर नियंत्रण किया जाना नितान्त अपेक्षित है।
हालांकि, भारत दुनिया में तेजी से आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होता राष्ट्र है। देश में विकास की फिजां बन रही है, शांति का हिंसामुक्त वातावरण बन रहा है। रोजगार एवं व्यापार की अनेक संभावनाएं उजागर हो रही हैं। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व में नागरिकों से अपील की थी कि उनका उद्देश्य अपने देश की सेवा एवं विकास होना चाहिए, फिर भी न जाने क्यों, इतनी बड़ी संख्या में भारतीय पलायन कर रहे हैं? उनको समझना चाहिए कि यदि इसी गति से प्रतिभाओं एवं नागरिकों का पलायन होता रहेगा, तो राष्ट्र विरोधी तत्व अधिक मजबूत होंगे। संभवतः देश की शिक्षा नीति में ही कोई कमी रही होगी कि पिछले अनेक वर्षों से हमारा देश पैसा बनाने की मशीनें तैयार करता रहा है। जिम्मेदार और जागरूक नागरिक अब भी कम दिखाई पड़ते हैं। ये लोग इतने स्वार्थी हैं कि केवल पैसा कमाने के चक्कर में जननी-जन्मभूमि का ही त्याग कर रहे हैं। ऐश्वर्य एवं भौतिकता के पीछे भागते लोगों को आत्मचिन्तन करते हुए राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास जगाना चाहिए।
रोजगार की दृष्टि से ही नहीं, शिक्षा की दृष्टि से भी विदेशों का आकर्षण बढ़-चढ़कर सामने आ रहा है। ‘ओपन डोर’ संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में अमेरिकी कॉलेजों में दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों में पच्चीस फीसद वृद्धि हुई है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उन्होंने पांच अरब रुपए का योगदान दिया है। सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि पिछले कुछ साल में यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जाने वाले छात्रों में भी नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है। जबकि इसी दौर में भारत में बड़ी संख्या में उच्च शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय खुले हैं। आखिर ये छात्र देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में क्यों नहीं पढ़ना चाहते? विदेश वे ही छात्र जा पाते हैं जिनके पास पैसे की कमी नहीं है चाहे वह कालेधन के रूप में ही क्यों न हो?
एक ओर भारत में उच्च शिक्षा के स्तर को लेकर सवाल उठते रहे हैं तो दूसरी ओर पढ़ने के लिए छात्र बड़ी संख्या में विदेशों का रुख कर रहे हैं। जिसका दुष्प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। यह स्थिति भारत के विकास की एक बड़ी बाधा है। बिना प्रतिभाओं के कैसा विकास? भारत में विभिन्न क्षेत्रों के प्रवीण, प्रतिभासम्पन्न एवं विलक्षण क्षमता वाले व्यक्तियों की बड़ी तादाद हैं, जिनमें वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, साहित्य या कलाओं के विद्वान, चित्रकार, कलाकार, प्रशासनिक अधिकार, डॉक्टर, सी.ए. आदि। असाधारण प्रतिभा संपन्न ऐसे लोगों का अपने देश की प्रगति और समृद्धि में योगदान होना चाहिए, जबकि वे विदेशों में रहकर अपनी प्रतिभा का उन देशों को लाभ पहुंचा रहे हैं। हो सकता है ऐसे योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में कोई संतोषजनक काम नहीं मिल पाता या किसी न किसी कारण से वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पाते। ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए या अधिक भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं। क्या ऐसे लोगों का देश के प्रति कोई दायित्व नहीं है, निश्चित ही लोगों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।
कोई व्यक्ति विदेश तब जाता है जब उसके सामने कोई मजबूरी होती है जिसके कारण बाहर जाने में ही वह अपना भला समझता है। इन कारणों में देश में प्रशासनिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, कोटा सिस्टम, जटिल कानून एवं प्रशासनिक व्यवस्थाएं, योग्यता के स्थान पर आरक्षण को मान्यता और राजनीतिक स्तर पर भाई भतीजावाद प्रमुख हैं। जब समृद्ध और विकसित देशों के प्रतिभाशाली युवा अपने देश की नीतियों के कारण भारत में नहीं बसते तो फिर भारतीय युवाओं को क्यों नहीं देश में रहकर अपनी योग्यता के अनुसार अवसर देने की व्यवस्था की जा सकती, इस पर भारत सरकार को चिन्तन करना चाहिए। अपनी प्रतिभाएं अपने ही देश के काम आनी चाहिए। भारत में व्यापार करने की स्थितियां भी सहज एवं सरल होने के जगह जटिल होती जा रही हैं। छोटे व्यापारियों के लिये व्यापार करने की जहां अनेक चुनौतियां हैं, वहीं उनके लिये प्रशासनिक जटिलताएं भी कम नहीं हैं। भ्रष्ट अधिकारियों के कारण व्यापार करना अनेक संकटों से घिरा है। ऐसा सरकार की गलत नीतियों की वजह से हो रहा है। कुछ समय पहले तो यह बताया जा रहा था कि देश का गौरव इतना बढ़ रहा है कि विदेश से लोग भारत की नागरिकता और पासपोर्ट लेकर सम्मान महसूस करने लगे हैं, फिर अचानक ऐसा कैसे हो गया कि इतनी भारी तादाद में लोग देश छोड़कर जा रहे हैं?
भारत से पलायन कर अमेरिका जाने वाले 44 प्रतिशत भारतीय बाद में वहां की नागरिकता हासिल कर वहीं बस जाते हैं। कनाडा और आस्ट्रेलिया जाने वाले 33 प्रतिशत भारतीय भी ऐसा ही करते हैं। ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और सिंगापुर आदि देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार 1.25 करोड़ भारतीय नागरिक विदेश में रह रहे हैं, जिनमें 37 लाख लोग ओसीआइ यानी ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया कार्डधारक हैं। हालांकि इन्हें भी वोट देने, देश में चुनाव लड़ने, कृषि संपत्ति खरीदने या सरकारी कार्यालयों में काम करने का अधिकार नहीं होता है। पढ़ाई, बेहतर कॅरियर, आर्थिक संपन्नता और भविष्य को देखते हुए भारत से बड़ी संख्या में लोग विदेश का रुख करते हैं। पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोग वापस भारत नहीं लौटते हैं। कॅरियर की संभावनाओं को देखते हुए और अच्छे अवसर मिलने के कारण वे विदेश में ही बस जाते हैं।
भारत जब सशक्त बन रहा है, दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं नीतियों की दुनिया में सराहना हो रही है, विकास की अनंत संभावनाएं उजागर हो रही हैं, इन सकारात्मक स्थितियों के बीच ऐसे क्या कारण हैं कि नागरिक एवं प्रतिभा पलायन जारी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एसोचैम जैसे संस्थानों को इस बात पर ध्यान देने कि जरूरत है कि इसे कैसे रोका जाए। प्रतिभा पलायन अब निश्चित रूप से घाटे का सौदा बनता जा रहा है। प्रतिभा पलायन रोकने के लिए आइआइटी और आइआइएम जैसे और संस्थान स्थापित किए जाने की जरूरत है। विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उनके लिए कर रियायतें और प्रोत्साहन दी जानी चाहिएं जिससे हमारे देश का शिक्षा स्तर ऊपर हो। इससे प्रतिभा पलायन पर भी लगाम लगेगी।
दूसरी तरफ उच्च शिक्षा के लिए सिर्फ सरकार पर ही निर्भर रहना उचित नहीं है बल्कि उद्योग और अकादमिक सहयोग से नई संस्थाएं स्थापित करना चाहिए और उनका स्तर बढ़ाया जाना चाहिए। आम नागरिक के पलायन को रोकने के लिये रोजगार के नये अवसर, भ्रष्टाचारमुक्त शासन व्यवस्था, सरल एवं सहज प्रशासनिक कार्यप्रणाली, व्यापार के लिये प्रोत्साहन योजना, उन पर तरह-तरह के कानून एवं नियमों को सरल करना आदि उपचार अपेक्षित है। आम नागरिकों को जागना होगा तो सरकारों को भी इस विषय पर गंभीर होना होगा। हम स्वर्ग को जमीन पर नहीं उतार सकते, पर कमियों से तो लड़ अवश्य सकते हैं, यह लोकभावना जागे। महानता की लोरियाँ गाने से किसी राष्ट्र का भाग्य नहीं बदलता, बल्कि तन्द्रा आती है। इसे तो जगाना होगा, भैरवी गाकर। महानता को सिर्फ छूने का प्रयास जिसने किया वह स्वयं बौना हो गया और जिसने संकल्पित होकर स्वयं को ऊंचा उठाया, महानता उसके लिए स्वयं झुकी है। विदेशों की ओर पलायन की मानसिकता त्याग कर महानता का वरण करना होगा।