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कविता

गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या ….20 पूर्व जन्मों का ज्ञान

पूर्व जन्मों का ज्ञान

ज्ञान योग की संपदा, की अर्जुन की भेंट।
कर्म योग भी साथ में माधव ने किया भेंट।।

‘कर्म – संन्यास के योग पर की चर्चा विस्तार ।
अब पुरातन – योग का करता मैं उच्चार ।।

“मैं” रहा हर काल में, और रहूं हर काल।
वर्तमान हर काल में, बात ना झूठी जान।।

परंपरा से चल रहा, जग में पुरातन योग।
अनुरागी थे सत्य के , धर्म कुशल थे लोग।।

ओत – प्रोत अध्यात्म से जीवन का आदर्श।
यदि नेता बुद्धिमान हों तो देश करे उत्कर्ष।।

अनमोल – निधि है देश की, ब्रह्मविद्या बेमोल।
लुप्त हुई दुर्भाग्य से उसको रहा अब तोल।।

अर्जुन ! तू मेरा सखा , मैं तुझे बताता भेद।
सृष्टि के विज्ञान का , कोष बता रहा वेद ।।

आए कितने जने यहां ? बिता चले निज काल।
कालचक्र पर है नहीं, उनका नामोनिशान ।।

कितने जन्म मेरे हुए ? तू भी बंधा उसी डोर।
मुझको उनकी याद है , तू गफलत की छोर।।

जन्म अकारथ ही गया, व्यर्थ मचाया शोर।
कोई संध्या चल बसा, कोई उठ गया भोर ।।

जन्म सफल अध्यात्म से , करो प्रभु से प्रीत ।
कर्म के को देखकर , क्यों होता भयभीत ।।

प्रभु हमारा मीत है , जन्म – जन्म रहे साथ।
जीवन भर भजते रहो , है वही हमारा नाथ।।

छोड़ दे अज्ञान को , ले ले तीर कमान।
असार सब संसार है, कर ले इसका ज्ञान।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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