हवा-पानी-भोजन सभी जीवधारियों के जीवन आधार हैं। हवा-पानी साफ हों प्रदूषित न हों, यह भी सर्वमान्य है। मनुष्य को छोड़ कर शेष सभी शरीरधारी अपने भोजन के बारे में भी स्पष्ट हैं उनका भोजन क्या है? यह कितनी बड़ी विड़म्बना है कि सबसे बुद्धिमान् शरीरधारी मनुष्य अपने भोजन के बारे में स्पष्ट नहीं है। मैं अपने मनुष्य बन्धुओं से यह बात कहते हुए क्षमा चाहूँगा कि भोजन के निर्णय में मनुष्य की स्थिति एक गधे से भी नीचे है। मनुष्य को भोजन के बारे में बताने वाले डाॅक्टर, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, धर्मगुरु दोगली बातें करते हैं। स्पष्ट निर्णय किससे लें? भोजन के बारे में स्पष्ट निर्णय हमें सिद्धान्त से ही मिल सकता है, क्योंकि सिद्धान्त सर्वोपरी होता है। हम यह निर्णय करें कि मनुष्य का भोजन क्या है?, कुछ आधारभूत बातों के आधार पर करेंगे। ये आधारभूत बातें इस प्रकार हैं –
1. किसी मशीन के बारे में जानकारी, प्रयोग करने वाले से बनाने वाले को अधिक होती है।
2. मशीन का ईंधन और शरीर का भोजन उसकी बनावट के अनुसार निश्चित होता है।
3. उपयुक्त (बनावट के अनुसार) ईंधन वा भोजन से मशीन वा शरीर अच्छा काम करेंगे व देर तक कार्य करेंगे अन्यथा ईंधन या भोजन से कम काम करेंगे और शीघ्र खराब हो जायेंगे।
4. ईंधन या भोजन वह पदार्थ है, जिससे मशीन कार्य करे और शरीर जीवित रहे। जिस पदार्थ को शरीर में भोजन रूप में डाला जाये और शरीर जीवित न रहे, वह भोजन नहीं हो सकता।
5. सभी शरीर (आस्तिकों के लिए) ईश्वर ने बनाए या (नास्तिकों के लिए) प्रकृति ने बनाये। एक भी शरीर किसी डाॅक्टर, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री या धर्मगुरु ने नहीं बनाया।
6. हम सृष्टि में अपने चारों ओर दो प्रकार के शरीर देख रहे हैं – मांसाहारी और शाकाहारी।
यहाँ हम 1, 2, 5 और 6 के आधार पर निर्णय करेंगे कि मनुष्य का भोजन मांसाहार है या शाकाहार है?
सभी शरीर ईश्वर या प्रकृति ने बनाये, ईश्वर या प्रकृति की जानकारी मनुष्य से अधिक है और भोजन बनावट के हिसाब से होता है। हमारे सामने दो प्रकार के शरीर मांसाहारी (शेर, चीता, तेंदूआ, भेड़िया आदि) और शाकाहारी (गाय, बकरी, घोड़ा, हाथी, ऊँट आदि) उपस्थित हैं, तो सबसे आधारभूत बात है कि भोजन शरीर की बनावट के हिसाब से शरीर बनाने वाले ईश्वर या प्रकृति ने निश्चित किया है और ईश्वर या प्रकृति की बात मनुष्य के मुकाबले ज्यादा ठीक होगी, इस आधार का प्रयोग करके हम मनुष्य का भोजन निश्चित करेंगे। उस निर्णय के लिये हम शाकाहारी और मांसाहारी के शरीरों की बनावट की तुलना करते हैं और देखते हैं कि मनुष्य शरीर की बनावट किससे मेल खाती है? मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी शरीरों जैसी है, तो मनुष्य का भोजन शाकाहार और यदि रचना मांसाहारी शरीरों से मेल खाती है, तो मनुष्य का भेाजन मांसाहार होगा। यह अन्तिम निर्णय होगा और हमें किसी धर्मगुरु, वैज्ञानिक या डाॅक्टर से पूछने की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि ईश्वर या प्रकृति के मुकाबले इनकी कोई औकात नहीं होती और वैसे भी मनुष्य का निष्पक्ष होना बड़ा मुश्किल होता है। निम्न. तालिका में मांसाहारी-शाकाहारी शरीरों की रचना की तुलनात्मक जानकारी दी जा रही है –
1. मांसाहारी – आँखें गोल होती हैं, अंधेरे में देख सकती हैं, अंधेरे में चमकती हैं और जन्म के 5-6 दिन बाद खुलती हैं।
शाकाहारी – आँखे लम्बी होती हैं, अंधेरे में चमकती नहीं और अंधेरे में देख नहीं सकती और जन्म के साथ ही खुलती हैं।
2. मांसाहारी – घ्राण शक्ति (सूंघने की शक्ति) बहुत अधिक होती है।
शाकाहारी – घ्राण शक्ति मांसाहारियों से बहुत कम होती है।
3. मांसाहारी – बहुत अधिक आवृत्ति वाली आवाज को सुन लेते हैं।
शाकाहारी – बहुत अधिक आवृत्ति वाली आवाज को नहीं सुन पाते हैं।
4. मांसाहारी – दांत नुकीले होते हैं। सारे मुँह में दांत ही होते हैं, दाढ़ नहीं होती हैं और दांत एक बार ही आते हैं।
शाकाहारी – दांत और दाढ़ दोनों होते हैं, चपटे होते हैं और एक बार गिर कर दोबारा आते हैं।
5. मांसाहारी – ये मांस को फाड़ कर निगलते हैं, तो इनका जबड़ा केवल ऊपर-नीचे चलता है।
शाकाहारी – ये भोजन को पीसते हैं, तो इनका जबड़ा ऊपर-नीचे और बायें-दायें चलता है।
6. मांसाहारी – मांस खाते समय बार-बार मुँह को खोलते व बन्द करते हैं।
शाकाहारी – भोजन करते समय एक बार भोजन मुँह में लेने के बाद निगलने तक मुँह बन्द रखते हैं।
7. मांसाहारी – जीभ आगे से चपटी, व पतली होती है और आगे से चैड़ी होती है।
शाकाहारी – जीभ आगे से चैड़ाई में कम व गोलाईदार होती है।
8. मांसाहारी – जीभ पर टैस्ट बड्ज (Teste Buids), जिनकी सहायता से स्वाद की पहचान की जाती है, संख्या में काफी कम होते हैं (500 – 2000)
शाकाहारी – जीभ पर टैस्ट बड्ज की संख्या बहुत अधिक होती है (20,000 – 30,000) मनुष्य की जीभ पर यह संख्या (24,000 – 25,000) तक होती है।
9. मांसाहारी – मुँह की लार अम्लीय होती है। (acidic)
शाकाहारी – मुँह की लार क्षारीय होती है। (alkaline)
10. मांसाहारी – पेट की बनावट एक कक्षीय होती है।
शाकाहारी – पेट की बनावट बहुकक्षीय होती है। मनुष्य का पेट दो कक्षीय होता है।
11. मांसाहारी – पेट के पाचक रस बहुत तेज (सान्द्र) होते हैं। शाकारियों के पाचक रसों से 12-15 गुणा तेज होते हैं।
शाकाहारी – शाकाहारियों के पेट के पाचक रस मांसाहारियों के मुकाबले बहुत कम तेज होते हैं। मनुष्य के पेट के पाचक रसों की सान्द्रता शाकाहारियों वाली होती है।
12. मांसाहारी – पाचन संस्थान (मुँह से गुदा तक) की लम्बाई कम होती है। आमतौर पर शरीर लम्बाई का 2.5 – 3 गुणा होती है।
शाकाहारी – पाचन संस्थान की लम्बाई अधिक होती है। प्रायः शरीर की लम्बाई का 5-6 गुणा होती है।
13. मांसाहारी – छोटी आंत व बड़ी आंत की लम्बाई-चैड़ाई में अधिक अन्तर नहीं होता।
शाकाहारी – छोटी आंत चैड़ाई में काफी कम और लम्बाई में बड़ी आंत से काफी ज्यादा लम्बी होती है।
14. मांसाहारी – इनमें कार्बोहाईड्रेट नहीं होता, इस कारण मांसाहारियों की आंतों में किण्वन बैक्टीरिया (Fermentation bacteria) नहीं होते हैं।
शाकाहारी – इनकी आंतों में किण्वन बैक्टीरिया (Fermentation bacteria) होते हैं, जो कार्बोहाइडेªट के पाचन में सहायक होते हैं।
15. मांसाहारी – आंते पाईपनुमा होती है अर्थात् अन्ददर से सपाट होती हैं।
शाकाहारी – आंतों में उभार व गड्ढे (grooves) अर्थात् अन्दर की बनावट चूड़ीदार होती है।
16. मांसाहारी – इनका लीवर वसा और प्रोटीन को पचाने वाला पाचक रस अधिक छोड़ता है। पित को स्टोर करता है। आकार में बड़ा होता है।
शाकाहारी – इनके लीवर के पाचक रस में वसा को पचाने वाले पाचक रस की न्यूनता होती है। पित को छोड़ता है। तुलनात्मक आधार में छोटा होता है।
17. मांसाहारी – पैंक्रियाज (अग्नाशय) कम मात्रा में एन्जाईम छोड़ता है।
शाकाहारी – मांसाहारियों के मुकाबले अधिक मात्रा में एन्जाईम छोड़ता है।
18. मांसाहारी – खून की प्रकृति अम्लीय (acidic) होती है।
शाकाहारी – खून की प्रकृति क्षारीय (alkaline) होती है।
19. मांसाहारी – खून (blood) के लिपो प्रोटीन एक प्रकार के हैं, जो शाकाहारियों से भिन्न होते हैं।
शाकाहारी – मनुष्य के खून के लिपो प्रोटीन (Lipo – Protein) शाकाहारियों से मेल खाते हैं।
20. मांसाहारी – प्रोटीन के पाचन से काफी मात्रा में यूरिया व यूरिक अम्ल बनता है, तो खून से काफी मात्रा में यूरिया आदि को हटाने के लिये बड़े आकार के गुर्दे (Kidney) होते हैं।
शाकाहारी – इनके गुर्दें मांसाहारियों की तुलना में छोटे होते हैं।
21. मांसाहारी – इनमें (रेक्टम) गुदा के ऊपर का भाग नहीं होता है।
शाकाहारी – इनमें रेक्टम होता है।
22. मांसाहारी – इनकी रीढ़ की बनावट ऐसी होती है कि पीठ पर भार नहीं ढो सकते।
शाकाहारी – इनकी पीठ पर भार ढो सकते हैं।
23. मांसाहारी – इनके नाखून आगे से नुकीले, गोल और लम्बे होते हैं।
शाकाहारी – इनके नाखून चपटे और छोटे होते हैं।
24. मांसाहारी – ये तरल पदार्थ को चाट कर पीते हैं।
शाकाहारी – ये तरल पदार्थ को घूंट भर कर पीते हैं।
25. मांसाहारी – इनको पसीना नहीं आता है।
शाकाहारी – इनको पसीना आता है।
26. मांसाहारी – इनके प्रसव के समय (बच्चे पैदा करने में लगा समय) कम होता है। प्रायः 3-6 महिने।
शाकाहारी – इनके प्रसव का समय मांसाहारियों से अधिक होता है। प्रायः 6 महिने से 18 महिने।
27. मांसाहारी – ये पानी कम पीते हैं।
शाकाहारी – ये पानी अपेक्षाकृत ज्यादा पीते हैं।
28. मांसाहारी – इनके श्वांस की रफ्तार तेज होती है।
शाकाहारी – इनके श्वांस की रफ्तार कम होती है, आयु अधिक होती है।
29. मांसाहारी – थकने पर व गर्मी में मुँह खोल कर जीभ निकाल कर हाँफते हैं।
शाकाहारी – मुँह खोलकर नहीं हाँफते और गर्मी में जीभ बाहर नहीं निकालते।
30. मांसाहारी – प्रायः दिन में सोते हैं, रात को जागते व घूमते-फिरते हैं।
शाकाहारी – रात को सोते हैं, दिन में सक्रिय होते हैं।
31. मांसाहारी – क्रूर होते हैं, आवश्यकता पड़ने पर अपने बच्चे को भी मार कर खा सकते हैं।
शाकाहारी – अपने बच्चे को नहीं मारते और बच्चे के प्रति हिंसक नहीं होते।
32. मांसाहारी – दूसरे जानवर को डराने के लिए गुर्राते हैं।
शाकाहारी – दूसरे पशु को डराने के लिए गुर्राते नहीं।
33. मांसाहारी – इनके ब्लड में रिस्पटरों की संख्या अधिक होती है, जो ब्लड में कोलेस्ट्राॅल को नियन्त्रित करते हैं।
शाकाहारी – इनके ब्लड में रिस्पटरों की संख्या कम होती है। मनुष्य के ब्लड में भी संख्या कम होती है।
34. मांसाहारी – ये किसी पशु को मारकर उसका मांस कच्चा ही खा जाते हैं।
शाकाहारी – मनुष्य जानवर को मारकर उसका कच्चा मांस नहीं खाता।
35. मांसाहारी – इनके मल-मूत्र में दुर्गन्ध होती है।
शाकाहारी – इनके मल-मूत्र में दुर्गन्ध नहीं होती (मनुष्य यदि शाकाहारी है और उसका पाचन स्वस्थ है, तो मनुष्य के मल-मूत्र में भी बहुत कम दुर्गन्ध होती है।)
36. मांसाहारी – इनके पाचन संस्थान में पाचन के समय ऊर्जा प्राप्त करने के लिये अलग प्रकार के प्रोटीन उपयोग में लाये जाते हैं, जो शाकाहारियों से भिन्न हैं।
शाकाहारी – इनके ऊर्जा प्राप्ति के लिये भिन्न प्रोटीन प्रयोग होते हैं।
37. मांसाहारी – इनके पाचन संस्थान, जो एन्जाइम बनाते हैं, वे मांस का ही पाचन करते हैं।
शाकाहारी – इनके पाचन संस्थान, जो एन्जाइम बनाते हैं, वे केवल वनस्पतिजन्य पदार्थों को ही पचाते हैं।
38. मांसाहारी – इनके शरीर का तापमान कम होता है, क्योंकि मांसाहारियों का BMR (Basic Metabolic Rate) शाकाहारियों से कम होता है।
शाकाहारी – मनुष्य के शरीर का तापमान शाकाहारियों के आस-पास होता है।
39. मांसाहारी – दो बर्तन लें, एक में मांस रख दें और दूसरे में शाकाहार रख दें, तो मांसाहारी जानवर मांस को चुनेगा।
शाकाहारी – मनुष्य का बच्चा शाकाहार को चुनेगा।
उपर्युक्त तथ्यों के अनुसार मनुष्य शरीर की बनावट बिना किसी अपवाद के शत-प्रतिशत शाकाहारी शरीरों की बनावट से मेल खाती है और भोजन को बनावट के अनुसार निश्चित किया जाता है, तो मनुष्य का भोजन शाकाहार है, मांसाहार कतई नहीं। हमें निश्चिन्त होकर शाकाहार करना चाहिये और मांसाहार से होने वाली अनेक प्रकार की हानियों से बचना चाहिये।
शाकाहार में मानव का कल्याण है और मांसाहार विनाशकारी है। प्राकृतिक सिद्धान्त की उपेक्षा करके होने वाले विनाश से बचने का कोई मार्ग नहीं है।
✍️ डाॅ. भूपसिंह, रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान
भिवानी (हरियाणा)
प्रस्तुति आर्य सागर खारी