प्रह्लाद सबनानी
जनवरी 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा चालू की गई आकांक्षी जिला योजना के अंतर्गत भी देश के अति पिछड़े 124 जिलों में बहुत सराहनीय कार्य हुआ है। इन जिलों में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से विशेष रूप से महिलाओं को वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का एक अलग स्थान है क्योंकि देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी अभी भी गांवों में निवास करती है एवं अपनी आजीविका के लिए मुख्यतः कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है। कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र विपरीत रूप से प्रभावित हुए थे एवं इन सभी आर्थिक क्षेत्रों में ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी। परंतु, केवल कृषि क्षेत्र ही इस खंडकाल में भी अच्छी वृद्धि दर हासिल करता रहा और यह अभी भी जारी है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि भारत सरकार द्वारा लागू की गई आर्थिक नीतियों की बदौलत अब भारत के किसान सम्पन्न हो रहे हैं एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 14.2 प्रतिशत से बढ़कर 18.8 प्रतिशत हो गया है। अभी हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 से वित्तीय वर्ष 2021-22 के बीच भारतीय किसानों की आय औसतन 1.3 से 1.7 गुना बढ़ गई है। इसी प्रतिवेदन के अनुसार, भारत में कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी वर्ष 2014 के बाद से 1.5 से 2.3 गुना तक की वृद्धि दर्ज हुई है। इससे किसान अधिक समर्थन मूल्य वाली फसलों का उत्पादन बढ़ा रहे हैं एवं अपनी आय में तेज गति से वृद्धि करने में सफल हो रहे हैं। इसी प्रकार, भारत से अनाज का निर्यात भी वित्तीय वर्ष 2021-22 में बढ़कर 5000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक हो गया है।
भारतीय स्टेट बैंक के साथ ही एक अन्य भारतीय संस्थान इंडियन काउन्सिल ऑफ ऐग्रिकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) द्वारा 17 जुलाई 2022 को जारी किए गए एक प्रतिवेदन में भी यह बताया गया है कि भारत में कृषि के क्षेत्र में तकनीकी विकास एवं केंद्र सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियों के चलते भारत के किसानों की आय वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 2020-21 में 150 से 200 प्रतिशत तक बढ़ गई है। किसानों की आय में हुई इस आकर्षक वृद्धि दर में बागवानी एवं पशुपालन जैसे क्षेत्रों ने विशेष भूमिका निभाई है। भारत में लगभग 14 करोड़ भूमिधारी किसान हैं इनमें से 85 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे किसान की श्रेणी के हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर (5 एकड़) से कम भूमि उपलब्ध है। यह हर्षित करने वाला तथ्य उभरकर सामने आया है कि बहुत छोटी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में 2013 और 2019 के बीच वार्षिक 10 प्रतिशत की वृद्धि प्रतिवर्ष दर्ज हुई है वहीं अधिक बड़ी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में केवल 2 प्रतिशत की वृद्धि प्रतिवर्ष दर्ज हुई है। इसी प्रकार, आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू होने के बाद से भारत में प्रति व्यक्ति दूध की खपत में वृद्धि एवं आहार सम्बंधी प्राथमिकताओं में बदलाव दिखाई दे रहा है। साथ ही, देश में लगातार बढ़ रहे शहरीकरण के चलते वित्तीय वर्ष 2021-22 में डेयरी उद्योग ने लगभग 9-11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। जिसका सीधा-सीधा लाभ किसानों को मिल रहा है। आज 8 करोड़ से अधिक किसानों को डेयरी उद्योग में रोजगार मिल रहा है।
वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद से लगातार प्रयास किए जा रहें कि भारतीय किसानों की आय को दुगुना किया जाये। इस संदर्भ में केंद्र सरकार के प्रयास अब फलीभूत होते दिख रहे हैं क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक के उक्त प्रतिवेदन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2018 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2022 में कुछ उपजों के क्षेत्र में भारतीय किसानों की आय दुगनी हो चुकी है। जैसे महाराष्ट्र में सोयाबीन एवं कर्नाटक में कपास की खेती करने वाले किसानों की आय उक्त अवधि में दुगुनी से अधिक हो गई है एवं अन्य उपजों की पैदावार लेने वाले किसानों की आय 1.3 से 1.7 गुना बढ़ गई है। सहायक एवं गैर कृषि आधारित कार्य में संलग्न किसानों की आय भी 1.4 से 1.8 गुना बढ़ गई है। नकदी फसल (कपास, सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, फल, सब्जी, आदि) लेने वाले किसानों की आय गैर-नकदी फसलें लेने वाले किसानों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी है।
जनवरी 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा चालू की गई आकांक्षी जिला योजना के अंतर्गत भी देश के अति पिछड़े 124 जिलों में बहुत सराहनीय कार्य हुआ है। इन जिलों में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से विशेष रूप से महिलाओं को वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराई गई है, जिससे किसान परिवारों की आय में वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। देश में स्वयं सहायता समूहों को प्रदान की गई वित्त सहायता का 18 प्रतिशत भाग इन अति पिछड़े 124 आकांक्षी जिलों में प्रदान किया गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना भी इस संदर्भ में विशेष भूमिका निभाती नजर आ रही है। इस योजना के अंतर्गत प्रति वर्ष तीन बार लगभग 10 करोड़ किसानों के खातों में रुपए 2000 (पूरे वर्ष में रुपए 6000) जमा किए जाते हैं। यह योजना वर्ष 2019 में चालू की गई थी और प्रत्येक वर्ष लगभग 63,000 करोड़ रुपए सीधे ही 10 करोड़ से अधिक किसानों के खातों में जमा किए जा रहे हैं।
बैंकों द्वारा सफलतापूर्वक चलाई जा रही किसान क्रेडिट कार्ड योजना ने भी किसानों की आय को बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाई है। केंद्र सरकार द्वारा किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड पर ब्याज की सब्सिडी प्रदान की जा रही है, इससे किसानों द्वारा लिए जा रहे ऋण उन्हें बहुत कम ब्याज पर उपलब्ध हो रहे हैं। आज देश में 7.37 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जा चुके हैं। आज भारतीय किसान न केवल अपने देश के नागरिकों को अन्न उपलब्ध करा रहा है बल्कि अब तो दुनिया के अन्य देशों की भी सहायता में आगे आ रहा है। जहां पूरी दुनिया में खाद्यान्न का संकट गहराता जा रहा है, वहीं भारत खाद्यान्न उत्पादन में नए-नए कीर्तिमान बना रहा है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के लिए मुख्य कृषि फसलों के उत्पादन के तृतीय अग्रिम अनुमान जारी किए हैं। इसके अनुसार भारत में 31.451 करोड़ टन खाद्यान्न के उत्पादन का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 के दौरान के खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। वर्ष 2021-22 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन पिछले 5 वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.38 करोड़ टन अधिक है। भारत के लिए यह एक नया कीर्तिमान होगा। इसी प्रकार, केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 32.8 करोड़ टन रिकॉर्ड खाद्य उत्पादन का लक्ष्य रखा है। जो पिछले वर्ष के मुकाबले 3.8% अधिक है।
खाद्यान्न उत्पादन के साथ ही खाद्यान्न सामग्री के निर्यात में भी भारत नित नए रिकॉर्ड बना रहा हैं। वर्ष 2021-22 के लिए कृषि उत्पाद का निर्यात 5000 करोड़ अमेरिकी डॉलर पार कर गया है। जो अब तक का सबसे अधिक कृषि उत्पाद निर्यात है। रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के बीच दुनिया के कई देश खाद्यान्नों के लिए भारत की ओर देख रहे हैं। वहीं 2020-21 में 4187 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कृषि उत्पादों का निर्यात किया गया था। गेहूं के निर्यात में अप्रत्याशित 273% की वृद्धि दर्ज हुई है। जहां 2020-21 में गेहूं निर्यात 56.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था वहीं यह 2021-22 में चार गुना बढ़कर 211.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2021-22 में बागवानी का उत्पादन 34.2 करोड़ टन होने जा रहा है। यह 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 70.3 लाख टन से बढ़ने जा रहा है। जो वर्ष 2020-21 में 33.46 करोड़ टन पर रहा था। फलों का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 10.25 करोड़ टन से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 10.71 करोड़ टन पर पहुंचने की सम्भावना है और सब्ज़ियों का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 2.66 करोड़ टन से बढ़कर 3.17 करोड़ टन पर पहुंचने की सम्भावना है। बागवानी के तेजी से बढ़ रहे उत्पादन से किसानों की आय में अधिक वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।
चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में देश के कृषि एवं खाद्य पदार्थों के निर्यात में 14 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 525 करोड़ अमेरिकी डॉलर कीमत की वस्तुओं का निर्यात हुआ था जो इस वर्ष बढ़कर 598 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। अप्रैल जून 2021 में ताजे फल और सब्ज़ियों का निर्यात 64.2 करोड़ अमरीकी डॉलर का रहा था जो चालू वित्त वर्ष की इसी अवधि में बढ़कर 69.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। अन्य अनाज का निर्यात अप्रैल जून 2021 में 23.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था जो इस वर्ष इसी अवधि में बढ़कर 30.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। इसी प्रकार मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात अप्रैल-जून 2021 में 102.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था जो इस वर्ष इसी अवधि में बढ़कर 112 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। विभिन्न कृषि उत्पादों के निर्यात में हो रही भारी वृद्धि का लाभ भी सीधे-सीधे भारतीय किसानों को मिल रहा है जिससे उनकी आय में वृद्धि दृष्टिगोचर है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।