अशोक मधुप
भारत में 8.5 फ़ीसदी आदिवासी जनसंख्या है, जो कुछ सात-आठ उत्तरी और पश्चिमी राज्यों (जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा) में ज़्यादा है। पूर्वोत्तर के आदिवासियों को छोड़ दिया जाए तो भी भाजपा के लिए ये सभी राज्य अहम हैं।
भारत के राष्ट्रपति पद के लिए मतदान हो गया। जिस तरह से क्रास मतदान हुआ, विपक्षी खेमे के सदस्यों ने क्रास वोटिंग की, उससे लगता है कि भाजपा अपनी प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को बड़े अंतर से विजयी बनाने में कामयाब हो जाएगी। इसके बाद उपराष्ट्रपति का चुनाव होना है। राष्ट्रपति पद के लिए हुए मतदान का संकेत कहता है कि भाजपा अपने उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ को भी विजयी बनाने में कामयाब हो जाएगी। इसके लिए उसे कोई जोड़−तोड़ नहीं करनी होगी।
नई राष्ट्रपति बनने वाली द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से हैं। एनडीए और उसके बड़े घटक भाजपा ने उन्हें आदिवासी समाज का बताकर पेश किया। विपक्ष के कई दलों ने भी उन्हें आदिवासी प्रत्याशी के रूप में वोट किया। मतदान के रुख से लगता है कि ये देश की आगामी राष्ट्रपति होंगी। जगदीप धनखड़ को किसान पुत्र बताकर भाजपा ने पेश किया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी प्रकार का ट्विट किया। माना जा रहा है कि भाजपा ने पिछले दिनों हुए किसान आंदोलन, किसानों की नाराजगी को देखते हुए धनखड़ को अपना प्रत्याशी बनाया है। कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने के पीछे भाजपा का उद्देश्य हरियाणा और राजस्थान के चुनाव में वहां के किसानों विशेषकर जाट वोट हासिल करना है।
भारत में 8.5 फ़ीसदी आदिवासी जनसंख्या है, जो कुछ सात-आठ उत्तरी और पश्चिमी राज्यों (जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा) में ज़्यादा है। पूर्वोत्तर के आदिवासियों को छोड़ दिया जाए तो भी भाजपा के लिए ये सभी राज्य अहम हैं। माना जा रहा है कि इनके आदिवासी वोट पाने के लिए वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद और हरियाणा और राजस्थान के किसान विशेषकर जाट वोट हासिल करने के लिए जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए उतारा गया है। पर ये नेता इन पदों पर बैठने के बाद क्या अपने समाज के लिए कुछ कर पांएगे, ये प्रश्न विचारणीय है।
देश की बारहवीं राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति रहीं। इनका कार्यकाल 25 जुलाई 2005 से जुलाई 2012 रहा। ये देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी। मनमोहन सिंह सरकार के प्रधानमंत्री थे। प्रतिभा पाटिल को पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में पेश किया गया। महिला होने के नाते देश के महिला समाज को इनसे बहुत उम्मीद थीं। किंतु इनके कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जो देश की महिलाओं की जीवन दशा सुधार सके।
सरदार ज्ञानी जैल सिंह 1982 से 1987 तक देश के राष्ट्रपति रहे। इनके कार्यकाल में ही स्वर्ण मंदिर ऑपरेशन हुआ। स्वर्ण मंदिर में रह रहे सिख आतंकवादियों के खात्मे के लिए सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया। प्रायः सिख इस ऑपरेशन से नाराज थे। प्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह ने तो इसके विरोध में अपना पद्म भूषण सम्मान भी लौटा दिया था। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सके।
ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति रहते प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई। इस हत्याकांड के विरोध में देशभर में सिखों का सामूहिक कत्ले आम हुआ। ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति होते भी कुछ नहीं कर पाए। अपने समाज के लोगों के सामूहिक नरसंहार रोकने में वह कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा सके।
दरअसल राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित कानून आदि का परीक्षण करने और उनको स्वीकृति देने का कार्य करता है। वह सरकार को सुझाव दे सकता है। अपनी ओर से कोई कानून या आदेश पारित नहीं कर सकता।
इसलिए द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनें या धनखड़ उपराष्ट्रपति। ये अपने समाज का कुछ भला कर पाएंगे, ऐसा नहीं लगता। देश में चुनाव के समय राजनैतिक दल जाति की संख्या देखकर प्रत्याशी बनाते हैं और मंत्रिमंडल का गठन भी इसी प्रकार करते हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेद्र सिंह तोमर खुद किसान परिवार से हैं। किंतु वे तीन कृषि कानून के विरुद्ध शुरू हुए आंदोलन को नहीं समाप्त करा पाए थे। आंदोलनकारी किसान नेताओं को अपनी बात नहीं समझा सके थे।
दरअसल भारत में चुनाव नारों से जीते जाते हैं। पार्टी के काम से उनका कोई वास्ता नहीं होता। श्रीमती इंदिरा गांधी एक बार बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर चुनाव जीत गईं। एक बार गरीबी हटाओ के नारे पर वे विजयी हुईं, किंतु गरीबी खत्म नहीं हुई। गरीबी देश में आज भी है। आगे भी रहेगी। ऐसा ही अब लगता है। आदिवासी वोट के लिए नाम आया। द्रौपदी मुर्मू को इसका लाभ मिला। यही जगदीप धनखड़ के साथ होगा। पर इनके बनने से इनके समाज को कुछ मिलना मिलाना नहीं हैं। मिलता वही है जो केंद्र का सत्ताधारीदल चाहता है।