राहुल की छुट्टी या कर्तव्य से पलायन
सुरेश हिन्दुस्थानी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का हमेशा से ही राष्ट्रीय गतिविधियों से अलग रहने का स्वभाव रहा है। जब भी देश में कोई बड़ी घटना होती है, राहुल की तलाश की जाती है, लेकिन हमारे यह महाशय तलाश करने के बाद भी कहीं दिखाई नहीं देते हैं। बाद में कुछ सूत्र अवश्य इस बात को उजागर कर देते हैं कि वह विदेश यात्रा पर हैं। अब सवाल यह उठता है कि व्यक्तिगत मौजमस्ती ज्यादा महत्वपूर्ण है, या फिर देश। कोई भी समझदार व्यक्ति देश को ही प्राथमिकता देगा। इस प्राथमिकता में सबसे जरूरी यह है कि उसके चरित्र से राष्ट्रीय भाव का प्राकट्य होना चाहिए।
यह सवाल अक्सर चर्चा में रहता है कि व्यक्तिगत जीवन का आचरण और सार्वजनिक जीवन में अंतर रहना चाहिए या नहीं? हालांकि जो सार्वजनिक जीवन में महत्व के पद पर रहते हैं, उनका व्यक्तिगत आचरण भी साफ-सुथरा हो, यह अपेक्षा रहती है। भ्रष्ट लोगों के हाथ में नेतृत्व रहा तो फिर उनके खिलाफ जन आक्रोश होता है। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति को यह कहने का अधिकार नहीं कि उसके व्यक्तिगत से सार्वजनिक जीवन का मूल्यांकन नहीं होना चाहिए। इस बहस के आधार पर यदि कांग्रेस के शहजादे और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के छुट्टी पर जाने के मामले की चर्चा की जाए तो कांग्रेस की ओर कहा गया कि कांग्रेस के भविष्य के बारे में चिंतन करने के लिए वे छुट्टी पर गए हैं। एक चैनल के अनुसार वे बैंकॉक गए हैं। विदेश जाना इस सोनिया-राहुल के परिवार के लिए सामान्य बात है। जिनका जन्म विदेशी मूल की कोख से हुआ है, उनका विशेष लगाव विदेश से होना स्वाभाविक है। कोई भी व्यक्ति कितना भी अपने आप में परिवर्तन करले लेकिन वह अपने मूल संस्कारों को भूल नहीं सकता। उसे हमेश अपनी मातृभूमि की याद आती ही है, इतना ही नहीं उसे अपने घर की याद भी आती है। आज सोनिया गांधी के मन में इटली नहीं होगा, उसके दोस्त नहीं होंगे, ऐसा कदापि नहीं होगा।
वर्तमान में राहुल गांधी कांग्रेस के सर्वेसर्वा भी हैं। सोनिया गांधी ने उसे सारे अधिकार दे दिए हैं, या देने के प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी का व्यक्तिगत जीवन भी समाज की कसौटी पर परखा ही जाएगा। उनका जीवन व्यक्तिगत जीवन भी सार्वजनिक ही माना जाएगा। लेकिन राहुल गांधी न जाने क्यों अपने व्यक्तिगत जीवन को ही ज्यादा प्रधानता देते हुए दिखाई देते हैं। कई कांगे्रसी उनके इस कदम का समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं, उनका इस प्रकार से बचाव करना निश्चित ही राहुल की कर्तव्यहीनता का ही समर्थन है।
संसद का बजट सत्र चल रहा है। प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते यह अपेक्षा रहती है कि कांग्रेस जनता से सरोकार रखने वाले मुद्दों पर प्रखर होकर संसद में चर्चा करें। संसद लोकतंत्र का प्रमुख मंच रहता है। राहुल अमेठी से सांसद भी है। यह भी सच्चाई है कि राहुल के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव लड़े हैं, उन्होंने चुनावी सभाओं और रोड शो भी किए हैं। उनके नेतृत्व को कांग्रेस के इतिहास में सबसे असफल ही माना जाएगा, क्योंकि कांग्रेस की दुर्गति जितनी राहुल के नेतृत्व में हुई, उतनी कभी नहीं हुई। कांग्रेस के लिए यह समय विलाप करने का है या कोप भवन में जाकर चिंतन करने का है। राहुल गांधी का इस महत्वपूर्ण समय में अवकाश पर जाना क्या यह साबित नहीं करता, कि वे यह जानने का प्रयास नहीं कर रहे कि रेल बजट होता क्या है, उसके लिए विपक्ष की भूमिका क्या होनी चाहिए। संभवत: कांग्रेसी एक ही भाषा जानते हैं कि हमारी सरकार का बजट ही अच्छा रहता है, और नरेन्द्र मोदी सरकार के बजट का विरोध ही करना प्रथम कर्तव्य है।
कांग्रेस के एक प्रवक्ता राशिद अल्वी द्वारा रेल बजट का विरोध करने विरोध करने वाले बयान पर मुझे हंसी भी आई साथ ही उनकी योग्यता पर तरस भी आया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने जनता के साथ हमेशा मजाक किया है, हर बजट में जनता के लिए कुछ भी नहीं रहता। शायद इनको यह पता नहीं है कि यह मोदी सरकार का पहला रेल बजट है। इसके अलावा आपस में विरोधाभास देखिए, सोनिया गांधी ने जो बयान दिया उसका तात्पर्य यही है कि मोदी सरकार ने उनकी योजनाओं को दिखाकर वाहवाही लूटने का प्रयास किया है। इसी प्रकार कई अवसरों कांग्रेसी यह कहते देखे गए कि मोदी सरकार हमारी योजनाएं ही लागू कर रही है। अब सवाल यह आता है कि जब आपकी ही योजनाएं हैं तब विरोध क्यों?
कांग्रेस द्वारा इस प्रकार के बयान देना ही उसके लिए अभिशाप बनता जा रहा है, लेकिन कांग्रेस सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है। इसके विपरीत कांग्रेस के अघोषित मुखिया राहुल गांधी विदेश यात्राओं पर जाने में लगे हुए हैं। इस बारे में कई प्रकार की बातें हो सकती हैं। कांग्रेस का बेड़ा गर्क करने में राहुल गांधी की भूमिका प्रमुख रही है। वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति यह है कि लोकसभा में उसके नेता को विपक्ष का मान्यता प्राप्त नेता भी नहीं माना गया। विधानसभा के चुनाव चाहे हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र या जम्मू-कश्मीर के हो, वहां कांग्रेस तीसरे, चौथे क्रमांक पर हो गई है। यह कह सकते हंै कि देश की जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। यदि तथ्यों के आधार पर कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व के बारे में चिंतन करे तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि सोनिया-राहुल का नेतृत्व ही उनकी दुर्गति का कारण है। यह सवाल इस चर्चा का हो सकता है कि कब तक इस नेतृत्व को स्वीकार किया जाए। एक परिवार के द्वारा कांग्रेस 1947 से ही संचालित है। इस परिवार के खूंटे से बंधे रहना कांग्रेसियों की बाध्यता रही। इसका प्रमुख कारण यह रहा कि इस परिवार में ऐसा नेतृत्व पैदा हुआ जिसने कांग्रेस की झोली वोटों से भर दी। अब इस परिवार में करिश्माई नेतृत्व का न केवल अभाव है, वरन् यदि सोनिया राहुल का नेतृत्व रहा तो कांग्रेस केवल इतिहास के पृष्ठों में सिमट कर रह जाएगी?