“पाकिस्तान से वार्ता” का औचित्य
विनोद कुमार सर्वोदय
यह बड़ी विचित्र विडम्बना है कि हम पाकिस्तान से वार्ता बंद करते है और फिर आरम्भ भी करना चाहते है, जबकि जिन कारणों से वार्ता बंद की जाती है उनका समाधान भी नहीं हो पाता।इसी कड़ी मे 25 अगस्त 2014 को होने वाली वार्ता को रद्द करने के बाद , हम फिर पाकिस्तान से प्रेम की पेंग बढ़ाने जा रहे है , क्यों ? हमको यह क्यों समझाया जाता आ रहा है कि अपने जन्मजात शत्रु पाकिस्तान से एकतरफा शान्ति प्रयास जारी रखो, जबकि वह अपने शत्रुता पूर्ण व्यवहार में कोई कमी नहीं करना चाहता ? हम यह क्यों नहीं समझना चाहते की दशको से चला आ रहा “वार्ताओ का सिलसिला ” हमें क्या कोई राहत दे पाया या जिहाद का आयात कम हो पाया ? क्या रेल मार्ग व बस यात्राओ को पाकिस्तान ने हमारे देश में अवैध हथियार, नकली करेंसी, नशीले पदार्थ व आतंकियों की घुसपैठ आदि का माध्यम नहीं बनाया? पाक अधिकृत कश्मीर व अन्य जिहादी प्रशिक्षण केन्द्रो में भारत के विरुद्ध तैयार किये जा रहे आत्मघाती जिहादियो पर पाकिस्तान अब तक कोई रोक क्यों नहीं लगा पाया? मुम्बई बम ब्लास्ट 1993 व 2008 के षड्यंत्रकारी दाऊद इब्राहिम व हाफिज सहिद के अतिरिक्त अन्य दसियों भारत के वांटेड अपराधियों को वह पाल पोस कर क्यों और खूंखार बना रहा है?
हम अपने देश में आई एस आई (पाक ख़ुफ़िया एजेंसी) के सहयोग से बने हुए सिमी, आई एम् आदि आतंकवादी संगठनो के फैले हुए नेटवर्क को क्यों नहीं नष्ट कर पाते ? सीमाओ पर पिछले कई वर्षो से हो रहे एक तरफ़ा युद्धविराम उल्लंघन व सैनिको के सर कलम करने जैसे असहनीय अत्याचारो को कब तक कोई सहन करेगा ? पुर्वोत्तर राज्यो व पश्चिम बंगाल की कश्मीर जैसी स्थिति बनाने में लगा पाकिस्तान क्या कभी अपनी जिहादी मानसिकता व हज़ारों वर्षो तक लड़ते रहने की कुंठा से बाहर निकल पायेगा ?
बार- बार शान्ति वार्ताओं को आगे बढ़ाने का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक मोदी सरकार राष्ट्र की चारो ओर से किलेबंदी करके स्थायी रूप से सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त नहीं हो जाती तथा आंतरिक सुरक्षा में खतरा पैदा करने वाले पाक परस्त देशद्रोही तत्वों की भी जांच पड़ताल करके उनपर कानूनी बंदिश नहीं लगाई जाती ?
अतः पंचतंत्र के सिद्धान्तो को समझ कर ” जैसे को तैसा ” की नीति अपना कर पाकिस्तान से अभी शान्ति वार्ताओं के लिए अनुकूल समय की प्रतीक्षा करना ही देश हित में उचित होगा।”दुर्जन के आगे सज्जनता ” व “हिंसक के आगे कैसी अहिंसा” से समस्याओ के समाधान नहीं हो सकते,यदि ऐसा होता तो भगवान् श्री राम व श्री कृष्ण दुष्ट राक्षसो को बिना शस्त्र उठाये ही नष्ट कर सकते थे ।