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कविता

गीता मेरे गीतों में गीत संख्या – 18 …यज्ञशेष के लाभ

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यज्ञशेष के लाभ

सभी देवगण प्रसन्न होते यज्ञ के प्रसाद से।
यज्ञ की महिमा निराली, पूर्ण करो ध्यान से।।
बैठिए वेदी पर जाकर तुम पूर्ण श्रद्धाभाव से।
अनुभव करो आनंद का हृदय को भरो चाव से।।

यज्ञ के द्वारा ही भगवन सृष्टि का उन्नयन करें।
यज्ञ ही आधार जग का , ईश्वर परिपालन करें।।
नित्य नियम से बैठ सारे लोग यज्ञ हवन करें ।
ईशवाणी वेद का श्रवण, पठन और मनन करें ।।

सुंदर बनाएं परिवेश को समाज और देश को।
दूर करें संसार से सारे कष्ट क्लेश को।।
हर जीव की पीड़ा हरें रखें याद जीवन ध्येय को।
जो वचन हमने दिया जन्म – पूर्व जगदीश को।।

सेवन उसी का कीजिए जिसे दे रहा हो यज्ञ ही।
परमेश्वर से ही चला यह सृष्टि का सारा चक्र भी।।
जन्म जन्मों से जिसके फेर में हैं पड़े हम सभी।
खाइए, फल वासना का-मिल जाएगी मुक्ति भी।।

परमेश्वर से ज्ञान मिलता , ज्ञान से फिर कर्म है।
कर्म से फिर यज्ञ होता और यज्ञ से पर्जन्य है।।
सृष्टि – यज्ञ चलता रहे – उसमें निपुण पर्जन्य है।
पर्जन्य से ही वन औषधि, पर्जन्य से ही अन्न है।।

हमारा शरीर बनता अन्न से, नाम इसका ‘यज्ञ’ है।
सारी व्यवस्था को चलाता, कोई सूक्ष्म ‘तत्व’ है।।
‘ओ३म’ को ही तत्वदर्शी बताते रहे सूक्ष्म ‘तत्व’ हैं।
सर्वव्यापी भगवान रहता चल रहा जो सृष्टि कर्म है।।

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