चातुर्मास में अनेक बंदिशें और अनेक साधनाएं

डा. राधे श्याम द्विवेदी

रविवार 10 जुलाई 2022 से चातुर्मास या चौमासा की शुरुआत हो चुका है जो कि पूरे चार माह तक चलेगी.हमारे भारत देश में त्यौहारों की नदियाँ बहती हैं इसलिए हमारा देश भावनाओं का देश हैं. इस नदी में चौमासा का बहुत महत्व हैं. चौमासा आषाढ़ की एकादशी यानि देव शयनी एकादशी – शुक्ल पक्ष से शुरू होकर कार्तिक की एकादशी यानि देव उठनी एकादशी – शुक्लपक्ष तक चलता हैं. यह काल चौमासा कहलाता हैं. इस बीच बहुत से त्यौहार आते हैं. चौमासा / चातुर मास का महत्त्व आपके लिए विस्तार से लिखा गया है. चातुर्मास के दौरान कोई शुभ व मांगलिक कार्ये नहीं किए जाते. व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में ‘चातुर्मास’ कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। चातुर्मास का समय भगवान के पूजन-आराधना और साधना का समय माना जाता है, इन दिनों माना जाता है की भगवान विष्णु पूरे चार माह के लिए सो जाते हैं .इस समय श्रावण मास में भगवान शिव जी की उपासना भी की जाती है. उक्त 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है कि उक्त 4 माह में जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन व जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इन दिनों कोई शुभ कार्य नहीं होते, जैसे विवाह संबंधी कार्य, मुंडन विधि, नाम करण आदि, लेकिन इन दिनों धार्मिक अनुष्ठान बहुत अधिक किये जाते हैं, जैसे भागवत कथा, रामायण, सुंदरकांड पाठ, भजन संध्या एवं सत्य नारायण की पूजा आदि. इसके अलावा इस समय कई तरह के दानों का भी महत्व हैं, जिसे व्यक्ति अपनी श्रद्धा एवं हेसियत के हिसाब से करता हैं.

जीवों के संरक्षण का संदेश देता है चातुर्मास:-

स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने बताया कि चातुर्मास संयमित जीवन शैली का संदेश देता है. इस दौरान जलीय जीव ज्यादा पैदा होते हैं. यात्रा के दौरान जाने अनजाने में जीवों को कोई क्षति न हो इसलिए साधु-संत एक स्थान पर रुककर साधना करते हैं. आचार्य राजेश कुमार जैन ने बताया कि जैन धर्म में चातुर्मास में भी जीव हिंसा से बचने के लिए जैन संत अपनी यात्रा रोक देते हैं. साथ ही चार माह तक व्रत, साधना और तप में लीन रहते हैं। इस बीच पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय का पालन किया जाता है.

हिन्दू धर्म में चौमासा का महत्व :-

हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं.इस तरह चौमासा के ये सभी माह त्योहारों से भरे होते हैं. चौमासा या चतुर्मास के अंतर्गत निम्न माह शामिल हैं –

आषाढ़ :-

सबसे पहला महीना आषाढ़ का होता है, जो शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू होता हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन से भगवान् विष्णु सोने जाते हैं. आषाढ़ के 15 दिन चौमास के अंतर्गत आते हैं. इसलिए ऐसा भी कहा जाता है कि चौमास अर्ध आषाढ़ माह से शुरू होता है. इस माह में गुरु एवं व्यास पूर्णिमा का त्यौहार भी मनाया जाता है, जिसमें गुरुओं के स्थान पर धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं. कई जगहों पर मेला सजता हैं. गुरु पूर्णिमा खासतौर पर शिरडी वाले साईं बाबा, सत्य साईं बाबा, गजानन महाराज, सिंगाजी, धुनी वाले दादा एवं वे सभी स्थान जो गुरु के माने जाते हैं वहां बहुत बड़े रूप में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं.

श्रावण :-

दूसरा महीना श्रावण का होता है, यह महीना बहुत ही पावन महीना होता है, इसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती हैं. इस माह में कई बड़े त्यौहार मनाये जाते हैं जिनमें रक्षाबंधन, नाग पंचमी, हरियाली तीज एवं अमावस्या, श्रावण सोमवार आदि विशेष रूप से शामिल हैं. रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहनों का त्यौहार होता है. बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं. वहीं नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है. हरियाली तीज में सुहागन औरतें भगवान् शिव एवं देवी पार्वती की पूजा करती है एवं व्रत भी रखती है. इस माह में श्रावण सोमवार का महत्व बहुत अधिक है. इस माह में वातावरण बहुत ही हराभरा रहता है.

भाद्रपद :-

तीसरा महीना भादों अर्थात भाद्रपद का होता हैं. इसमें भी कई बड़े एवं महत्वपूर्ण त्यौहार मनायें जाते हैं जिनमें कजरी तीज, हर छठ, जन्माष्टमी, गोगा नवमी, जाया अजया एकादशी, हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, डोल ग्यारस, अन्नत चतुर्दशी, पितृ श्राद्ध आदि शामिल हैं. हर त्यौहार का हिन्दू धर्म में अपना एक अलग महत्व होता है, और लोग इसे बड़े चौ से मनाते हैं. इस तरह यह माह भी हिन्दू रीती रिवाजों से भरा पूरा रहता हैं.

आश्विन माह :-

चौथा महीना आश्विन का होता हैं. अश्विन माह में पितृ मोक्ष अमावस्या, नव दुर्गा व्रत, दशहरा एवं शरद पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण एवं बड़े त्यौहार आते हैं. इस माह को कुंवार का महीना भी कहा जाता हैं. नव दुर्गा में लोग 9 दिनों का व्रत रखते हैं इसके बाद दसवें दिन दशहरा का त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.

कार्तिक माह :-

यह चातुर्मास का अंतिम महीना होता है, जिसके 15 दिन चौमास में शामिल होते हैं. इस महीने में दीपावली के पांच दिन, गोपा अष्टमी, आंवला नवमी, ग्यारस खोपड़ी/ प्रमोदिनी ग्यारस अथवा देव उठनी ग्यारस जैसे त्यौहार आते हैं. इस माह में लोग अपने घर में साफ सफाई करते हैं, क्योकि इस माह में आने वाले दीपावली के त्यौहार का हमारे भारत देश में बहुत अधिक महत्व है. इसे लोग बहुत ही धूम धाम से मनाते हैं. 

पुरुषोत्तम मास / अधिक मास :-

इस चौमास के अलावा अधिकमास का भी बहुत महत्व हैं इसे पुरुषोतम मास कहा जाता हैं.यह मास तीन साल में एक बार आता हैं, एवं गणना में अनुसार वह किसी भी महीने में आ जाता हैं. इस अधिक मास का भी उतना ही महत्व होता हैं जितना की चौमास का. जब यह अधिक मास भाद्रपद में आता है, जो कि कई वर्षों में होता हैं तब उसका महत्व और अधिक बढ़ जाता हैं. 

धार्मिक कर्म कांड ही होते हैं:-

पुरे चौमासा गीता पाठ, सुंदर कांड, भजन एवं रामायण पाठ सभी अपनी श्रद्धानुसार करते हैं. इसके अलावा इस समय कई दान पूण्य एवं तीर्थयात्रा भी की जाती हैं.चौमासा के समाप्त होते ही धार्मिक कार्य जैसे शादी, मुंडन इत्यादि का कार्य शुरू हो जाता हैं. देव उठनी ग्यारस से ही विवाह कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. कहा जाता है कि इस दिन देवी तुलसी का विवाह होता है. कुछ लोग इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं.

चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल होता है:-

चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। इसलिए इन चार माह के दौरान विवाह, यज्ञोपवित, मुंडन आदि मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। इस दौरान घर का निर्माण प्रारंभ, गृह प्रवेश, उग्रदेवता की प्रतिष्ठा, नवीन दुकान का उद्घाटन, वाहनों का क्रय-विक्रय किया जा सकता है। चातुर्मास का महत्व जैन और बौद्ध धर्मों में भी माना जाता है। चातुर्मास के दौरान जैन मुनि भ्रमण बंद करके एक ही जगह निवास करते हैं।

शिव परिवार के हाथ रहेगा सृष्टि का संचालन:-

धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान विष्णु के हाथ में रहता है, लेकिन उनके शयनकाल में चले जाने के कारण सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव और उनके परिवार पर आ जाता है। इसलिए चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े व्रत-त्योहार आदि मनाए जाते हैं। श्रावण माह पूरा भगवान शिव को समर्पित रहता है। इसमें श्रद्धालु एक माह उपवास रखते हैं। बाल-दाढ़ी नहीं कटवाते हैं। शिव मंदिरों में विशेष अभिषेक पूजन आदि संपन्न किए जाते हैं। इसके बाद भादव माह में दस दिनों तक भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना शारदीय नवरात्रि के जरिए की जाती है।

चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व:-

चातुर्मास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये चार माह खानपान में अत्यंत सावधानी बरतने के होते हैं। ये चार माह बारिश के होते हैं। इस समय हवा में नमी काफी बढ़ जाती है जिसके कारण बैक्टीरिया, कीड़े, जीव जंतु आदि बड़ी संख्या में पनपते हैं। सब्जियों में जल में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। खासकर पत्तेदार सब्जियों में कीड़े आदि ज्यादा लग जाते हैं। इस लिहाज से इन चार माह में पत्तेदार सब्जियां आदि खाने की मनाही रहती है। इस दौरान शरीर की पाचनशक्ति भी कमजोर हो जाती है। इसलिए संतुलित और हल्का, सुपाच्य भोजन करने की सलाह दी जाती है।

चौमासा या चतुर्मास का अलग-अलग धर्मों में महत्व :-

चौमासा का अलग अलग धर्म में अलग महत्व है. यहाँ कुछ धर्म के अनुसार इसका महत्व दर्शाया जा रहा है-

जैन धर्म में चौमासा का महत्व :-

जैन धर्म में चौमासे का बहुत अधिक महत्व होता हैं. वे सभी पुरे महीने मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं एवं सत्संग में भाग लेते हैं. घर के छोटे बड़े लोग जैन मंदिर परिसर में एकत्र होकर ना ना प्रकार के धार्मिक कार्य करते हैं. गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग किये जाते हैं एवं मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं. इस तरह इसका जैन धर्म में बहुत महत्व है.

बौद्ध धर्म में चौमासा का महत्व :-

गौतम बुद्ध राजगीर के राजा बिम्बिसार के शाही उद्यान में रहे, उस समय चौमासा की अवधि थी. कहा जाता है साधुओं का बरसात के मौसम में इस स्थान पर रहने का एक कारण यह भी था कि उष्णकटिबंधीय जलवायु में बड़ी संख्या में कीट उत्पन्न होते हैं जो यात्रा करने वाले भिक्षुकों द्वारा कुचल जाते हैं. इस तरह से इसका बौद्ध धर्म में भी महत्व अधिक है.

हिन्दू धर्म में चौमासा का महत्व :-

हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं.

चौमासा में वर्जित कार्य:-

चौमासा में आपको कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। कहा जाता है कि, इस मास मे करने वाले शुभ कार्य का फल आपको प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि इससे जुड़े हिंदू समाज में कुछ नियम भी होते हैं। जिसके कारण आप इसमें कोई शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसमें किसी प्रकार के कोई भी मुहूर्त नहीं निकाले जाते है। हमारे समाज के पंडित भी इस माह में कोई भी शुभ कार्य करने से मना कर देते हैं। साथ ही नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

चौमासा या चातुर्मास व्रत के नियम :-

चौमासा के कई नियम होते हैं जो सभी अपनी मान्यतानुसार निभाते हैं. सबकी अपनी श्रद्धा होती हैं. आगे कुछ नियम आपके सामने लिखे गये हैं.

स्नान

चौमास के दिनों में महिलायें सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करती हैं साथ ही पूजा कर मंदिर जाती हैं .खासतौर पर श्रावण एवं कार्तिक का महिना. कार्तिक में कृष्ण जी एवं तुलसी जी की पूजा की जाती हैं.

उपवास/व्रत

कई लोग पुरे चार महीने एक वक्त भोजन करते हैं. एवं रात्रि में फलहार किया जाता हैं.प्याज, लहसन, बैंगन, मसूर जैसे भोज्य पदार्थ से परहेज पूरे चार महीने कई लोग ये सभी पदार्थ अपने भोजन में उपयोग नहीं करते. खासतौर पर श्रावण एवं कार्तिक माह में.

पैर में चप्पल नहीं पहनते

कई लोग नव दुर्गा के समय चप्पल नहीं पहनते हैं.

बाल एवं दाड़ी नहीं कटवाते

श्रावण एवं नव दुर्गा में कई पुरुष अपने बाल एवं दाड़ी नहीं कटवाते.

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