क्या गजब लोकतंत्र है
मनीराम शर्मा
दवा और डॉक्टर पेशे के क्या मानक हों –यह खुद भारतीय चिकित्सा परिषद् करती है जिसके सदस्य डॉक्टर हैं | और सरकारी डॉक्टरों के पास छोटे से ऑपरेशन के लिए जाएँ तो कहते हैं अनेस्थेसिया विशेषज्ञ नहीं होने के कारण वे ऑपरेशन नहीं कर सकते किन्तु टारगेट प्राप्त करने के दबाव में वे परिवार नियोजन के ऑपरेशन बिना अनेस्थेसिया विशेषज्ञ के कर देते हैं| वकीलों के पेशेवर मानक क्या हों , यह बार कौंसिल तय करती है किसके सदस्य खुद वकील होते हैं | कानून में क्या सुधार हों यह भारतीय विधि आयोग तय करता है जिसके अधिसंख्य सदस्य वकील और न्यायाधीश होते हैं | मानवाधिकारों के उल्लंघन में न्यायाधीशों और पुलिस का स्थान सर्वोपरि है किन्तु मानवाधिकार आयोगों में मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करने वाले अधिसंख्य सदस्य न्यायाधीश और पुलिस वाले ही होते हैं| कैसी फ़िल्में जनता को दिखाई जाएँ यह सेंसर बोर्ड तय करता है जिसके सदस्य फिल्म वाले होते हैं | मीडिया के मानक क्या हो यह प्रेस परिषद् तय करती है जिसके सदस्य भी मीडिया जगत के लोग होते हैं |
इस लोकतंत्र में जनता का भाग्य उनके नुमायंदे नहीं बल्कि उस पेशे के लोग तय करते हैं जिनके अत्याचारों की शिकार जनता होती है | यानी तुम्ही मुंसिफ , तुम्हारा ही कानून और तुम्ही गवाह , निश्चित है गुनाहगार हम ही निकलेंगे |
क्या यह दिखावटी लोकतंत्र नहीं जोकि औपनिवेशिक परम्पराओं का अनुसरण करता है ?
सही अर्थों में लोक तंत्र वही है जहां जनता के नुमायंदे मिलकर तय करें कि जनता की अपेक्षाएं क्या हों | आवश्यक हो तो अधिकतम एक तिहाई पेशेवर विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा सकती हैं |