चमत्कारिक दावा नहीं पर चमत्कार ही चमत्कार दिखा :-
अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों मेंअफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो ? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही ! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि, यह दिल्ली से आए अफसरों का आदेश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए।उन्होंने कहा कि, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी। आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ाओ मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि, दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।
हठयोग सीखने लोग आते थे :-
उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया? ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।
बाबा के आशीर्वाद कांग्रेस प्रचंड बहुमत प्राप्त किया:-
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न “जोड़ी बैल” से हटाकर “हाथ का पंजा” निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और “हाथ का पंजा” पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।
खेचरी मुद्रा पर बाबा की सिद्धि:-
जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी। जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटे विहीन। यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे। उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
बाबा की ख्याति दूर – दूर तक फैला था :-
बाबा की ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि, क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हाथ से लुटाई। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं, वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि, बाबा का आशीर्वाद हर रोग की दवाई है।
बाबा की थी दिव्यदृष्ठि :-
कहा जाता है कि, बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह। बलिष्ठ कदकाठी भी थी। लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना प्राप्त करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी।
जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया:-
देवरहा बाबा ने जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। तो क्या इसका मतलब उन्हें भूख नहीं लगती थी। इस प्रश्न का जवाब कई वैज्ञानिक अध्ययनों में मिलता है। एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है।
एक समय में दो स्थानों पर उपस्थिति :-
बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।कहा जाता है कि बाबा एक साथ दो अलग-अलग जगहों पर उपस्थित होने का दावा करते थे। इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे। पलक झपकते ही हाथ में आ जाता था कुछ भी बाबा देवरहा के बारे में कहा जाता है कि उनको कहीं भी आवागमन की सिद्धी प्राप्त थी। वे पल भर में कहीं भी चले जाते थे। इसकी वजह खेचरी मुद्रा को माना जाता था। हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे।
दिव्यदृष्टि से करते थे समाधान :-
बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। याद्दाश्त उनकी इतनी गजब की थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके दादा-परदादा तक के नाम और इतिहास बता दिया करते थे।
भक्तों में नेता भी रहे बाबा जी:-
बाबा अपनी युवावस्था में मजबूत कद-काठी के हुआ करते थे, लेकिन वृद्धावस्था में उनकी कमर झुक गई थी। चलते समय उन्हें कमर को झुका के चलना पड़ता था। बाबा के भक्तों में ना केवल आम नागरिक थे बल्कि दिग्गज राजनीतिक हस्तियां भी थीं। इनमें से प्रमुख हैं, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व गृह मंत्री नेता बूटा सिंह, मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद। ये कई बार बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाते थे। हालांकि ज्यादातर समय ये नेता चुनावों के दौरान बाबा के दर्शनों के लिए गए। शायद इसके पीछे बाबा से जीत का आशीर्वाद लेना ही प्रमुख वजह रही हो।
जानवरों और पक्षियों की भाषा को भी समझते थे:-
देवरहा बाबा के भक्त बताते हैं कि बाबा जल पर भी चलते थे, उन्हें प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी। किसी भी स्थान पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी सवारी नहीं की। मान्यता है कि मचान पर कोई प्रसाद नहीं होने के बाद भी वह भक्तों को अपने हाथ से प्रसाद वितरित किया करते थे। साथ ही भक्तों के अनुसार वह जानवरों और पक्षियों की भाषा को भी समझते थे। साथ ही जंगली जानवरों को अपने वश में कर लेते थे।
पूरी दुनिया में देवरहवां बाबा के अनेक आश्रम:-
देवरहवां आश्रम पूरी दुनिया में है जिसमे प्रमुख रूप से यूपी के देवरिया जिले के सलेमपुर के पास मईल में सरयू नदी के किनारे, काशी में गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर द्वारिकाधीश मठ, विंध्य पर्वत मालाओं पर स्थित अमरावती पर्वत, नर्मदा उदगम स्थल अमरकंटक, यमुना नदी के किनारे वृंदावन और तिब्बत पर्वत में अति दुर्लभ निर्जन स्थान ज्ञानगंज इत्यादि में है।तिब्बत स्थित ज्ञानगंज में ऋषि मण्डल है जहां देवरहा बाबा अब भी अज्ञात रूप में विद्यमान हैं।
देवरहा बाबा का गुरु मंत्र:-
देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे। प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:”। बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो।
पांच साल पहले ही बता दिया था उनकी मृत्यु का समय :-
कहा जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने दावा किया था कि उसके परिवार की सात पीढिय़ों ने देवहरा बाबा को देखा है। उनके अनुसार देवहरा बाबा ने अपनी देह त्यागने के 5 साल पहले ही मृत्यु का समय बता दिया था। ऐसे ही कई और सुनी-सुनाई बाते हैं जो बाबा देवहरा के बारे में कही जाती हैं। हालांकि उन्होंने स्वयं इस तरह का दावा कभी नहीं किया। उनके अनुयायियों ने ही अपने तरीके से तथ्य बनाए और उनका प्रचार आगे से आगे होता रहा। अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का व्यवहार बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि, पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर तैयार है। 19 जून को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया। भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। बाबा ने शारीर त्याग दिया था। अपने जीवन के अन्तिम दिनों मे वह मथुरा में रहकर पवित्र यमुना तट पर 19 जून 1990 को वह इस धरा धाम से सदा सदा के लिए चले गये। हम उस परम पुण्य आत्मा को हृदय से नमन करते हैं और अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं।
डा. राधे श्याम द्विवेदी