विदेश सचिव एस. जयशंकर की पाकिस्तान-यात्रा से जितनी उम्मीद थी, वह उससे बेहतर रही। पाकिस्तान के फौजी नेताओं के अलावा वे उन सभी नेताओं और अफसरों से मिले हैं, जो पाकिस्तान की विदेश नीति बनाते और चलाते हैं। वे पाकिस्तान के विदेश सचिव एजाज अहमद चौधरी, प्रधानमंत्री के विशेष सहायक तारिक फातेमी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज़ अजीज और खुद प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से भी मिले। यदि पाकिस्तान के मन में दुर्भाव होता और ये मुलाकातें जबरदस्ती थोपी गई होतीं तो मियां नवाज़ और सरताज़ अजीज़ जयशंकर से क्यों मिलते? सिर्फ एजाज ही मिलते और खानापूरी हो जाती लेकिन जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पत्र नवाज़ शरीफ को दिया और उनसे मिलने की पेशकश की। इससे पता चलता है कि दोनों पक्षों ने उचित गरिमा का परिचय दिया है।
पाकिस्तान तो पहले से बात चालू रखने की बात लगातार करता रहा है। बात हमने ही तोड़ी थी। फिजूल तोड़ी थी। मोदी गच्चा खा गए थे। लेकिन मैं मोदी की तारीफ करुंगा कि उन्होंने पटरी से उतरी हुई अपनी गाड़ी को फिर से पटरी पर चढ़ा लिया है लेकिन हम यह नहीं भूलें कि अगस्त में हुए उस वार्ता भंग के कारण दक्षिण एशियाई सहयोग के छह माह बर्बाद हो गए। देर आयद, दुरुस्त आयद्।
जयशंकर और एजाज चौधरी ने अपने-अपने सभी विवादास्पद मुद्दे एक-दूसरे के सामने उठाए। जैसे जयशंकर ने आतंकवाद, मुंबई-हमले के अपराधियों और नियंत्रण-रेखा के उल्लंघन के मामले उठाए तो चौधरी ने कश्मीर, समझौता एक्सप्रेस, बलूचिस्तान और सीमांत में भारतीय हस्तक्षेप के मामले उठाए। सियाचिन, सर क्रीक और पानी के बंटवारे के मुद्दे भी उठे। इन विवादास्पद मुद्दों के साथ-साथ जो बेहतर बात हुई, वह यह कि दोनों देशों के बीच सहयोग के लगभग सभी आयामों पर चर्चा हुई। द्विपक्षीय व्यापार, विनियोग, आवाजाही, खेल, संचार- सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति हुई। पता नहीं, अफगानिस्तान के बारे में दोनों पक्षों ने कोई बात की या नहीं? जयशंकर आज अफगानिस्तान में हैं। उन्हें पाकिस्तान से यह बात करनी चाहिए थी कि अमेरिकी वापसी के बाद भारत और पाकिस्तान वहां सहयोग करेंगे या एक-दूसरे को काटेंगे?
जब पिछले साल जून में मैं पाकिस्तान में तीन हफ्ते रहा था, तब मेरी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज़ और सरताज़ अजीज के अलावा सभी प्रमुख अधिकारियों और अनेक फौजी अफसरों से बात हुई थी। उस बात में अफगानिस्तान एक प्रमुख मुद्दा रहा था। पाकिस्तानी सहयोग के बिना अफगानिस्तान में भारत का सफल होना लगभग असंभव है।
मुझे खुशी है कि जयशंकर की इस यात्रा को पाकिस्तान ने ‘नई किरण’ (आइस-ब्रेकिंग) कहा है। मुझे विश्वास है कि विवादास्पद मुद्दों के बावजूद हमारा आपसी सहयोग बढ़ता रहा तो एक दिन यह सहयोग ही सारे घावों का मरहम बन जाएगा।