गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या …16 संयमी मुनि
संयमी मुनि
मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना।
तपोव्रती और संयमी जीवन से सबके कष्ट मिटाना।।
वेद ने दी मर्यादा हमको पहली – अहिंसावादी बन।
दूजी है -यथार्थ ज्ञान को पाकर तू भी सत्यवादी बन।।
अस्तेय, ब्रह्मचर्य, शौच, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान।
ये ही सात मर्यादा हमको देतीं अपनी सही पहचान।।
जो वेद ने खींची लक्ष्मण-रेखा उसको नहीं मिटाना…
मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना …
शासक वही उत्तम होता है जो स्वयं मर्यादा में बंधा रहे।
वह शासक उत्तम नहीं होता जो धर्माचरण से हटा रहे।।
शासक का अपना जीवन जितना उत्तम और नैतिक हो।
प्रजा का भी जीवन उतना ही उन्नत और आनंदित हो।।
‘यथा राजा -तथा प्रजा’ – का संदेश सुनना और सुनाना ..
मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना …
अर्जुन ! मर्यादा पालक बनकर तू कर मर्यादा स्थापित।
सहज सरल और प्रसन्नमना कर्तव्य निभा हो आनंदित।।
तेरी मर्यादा तुझ से कहती तू शस्त्र उठा और युद्ध मचा।
जो भी पापी संतापक शत्रु हैं ना रहे उनमें से कोई बचा।।
मर्यादा की रक्षा हेतु भी बन्धु ! पड़ता है शस्त्र उठाना ….
मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना …
संयमी लोग जागते हैं , जब संसारी जन सोया करते।
संसारी जन जागा करते, तब संयमी लोग सोया करते।।
यदि उलटी रीत जग अपनाए तो क्षत्रिय को जगना होगा।
धर्म स्थापन करने हेतु, हर शत्रु का संहार करना होगा।।
संयम धर्म पहचान कर अर्जुन ! सबके कष्ट मिटाना ….
मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना …
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत