सियासत का चेहरा कुछ बदला……
तनवीर जाफ़री
महात्मा गांधी की जन्मतिथि 2 अक्तूबर के दिन गत् वर्ष देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ में झाड़ू लेकर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। ज़ाहिर है जब देश का प्रधानमंत्री कूड़ा-करकट व गंदगी की सफ़ाई करने हेतु सडक़ों पर उतर आए तो इससे आम लोगों का प्रेरित होना लाजि़मी है। देश की आम जनता ने प्रधानमंत्री से प्रेरित होकर अपने आसपास के वातावरण को साफ़-सुथरा रखना शुरु किया या नहीं परंतु बड़े-बड़े कारपोरेट घराने के लोग,फ़िल्म अभिनेता व अभिनेत्रियां,उद्योगपति तथा अन्य कई राजनेता मोदी जी की तजऱ् पर स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाते हुए व प्रतीकात्मक रूप से इस अभियान में मीडिया के समक्ष शरीक होते ज़रूर दिखाई दिए। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी द्वारा अपने हाथों में झाडू़ पकडऩे का सबसे अधिक लाभ आम आदमी पार्टी तथा उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को ही पहुंचा। दिल्ली चुनाव के बाद गोया चारों ओर हर-हर झाड़ू घर घर झाड़ू का नज़ारा दिखाई दे रहा था। बिना किसी आह्वान अथवा विज्ञापन या बिना किसी शोर-शराबे के लगभग प्रत्येक दिल्लीवासी ने अपने सिर पर झाड़ू छपी टोपी धारण कर ली थी। ज़ाहिर है इस विशाल जनआंदोलन का मक़सद सडक़ों की प्रतीकात्मक सफ़ाई नहीं या सफ़ाई के बहाने शोहरत हासिल करने का स्टंट नहीं बल्कि इसका मक़सद देश की राजनीति को ही साफ़-सुथरा व सवच्छ बनाना है।
भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार,राजनीति में अपराधियों की बढ़ती घुसपैठ,सांप्रदायिकता,अयोग्य व अक्षम लोगों का राजनीति में बढ़ता वर्चस्व,जातिवाद तथा राजनीति पर लगते आरक्षण जैसे ग्रहण,नेताओं की किसी प्रकार की पारदर्शिता या जवाबदेही का न होना,मतदाताओं से झूठे वादे किए जाने की परंपरा,सत्ता में आने के बाद सरकारी धन को अपना पुश्तैनी धन समझ कर ख़र्च कर गुलछर्रे उड़ाने की नेताओं की आदतें,सरकारी भरती,तबादला,मनमर्ज़ी की पोस्टिंग,पदोन्नति,ठेका,लाईसेंस आदि के माध्यम से जनता को दोनों हाथों से लूटने की परंपरा ने भारतीय राजनीति को इतना कुरूप कर दिया है कि शरीफ़,शिक्षित तथा ईमानदार व्यक्ति चाहे उसके दिल में देश व देशवासियों की सेवा करने हेतु कितना ही जज़्बा क्यों न हो पर वे स्वयं को राजनीति से दूर ही रखना चाहता है। अमिताभ बच्चन व धमेंद्र जैसे कई स्पष्ट बोलने वाले लोगों ने राजनीति में पदार्पण करने के बाद बहुत जल्दी अपने पैर वापस इसीलिए खींच लिए कि उन जैसे लोगों को राजनीति रास नहीं आई। अमिताभ जी तो अक्सर अपने साक्षात्कार में यह कहते रहते हैं कि उन्हें राजनीति करनी नहीं आती। वर्तमान राजनीति के गुण आख़िर हैं क्या? हक़ीक़त में जो जितना बड़ा अवगुणी है वह उतना ही सफल राजनीतिज्ञ है। जो जितना अधिक झूठ बोल सकता हो,झूठे वादे कर सकता हो,सांप्रदायिकता व जातिवाद का समाज में ज़हर घोलने का जितना बड़ा विशेषज्ञ हो वह उतना ही सफल राजनीतिज्ञ समझा जाता है। और जो व्यक्ति जनता तो क्या अपने आगे-पीछे व ईद-गिर्द व वरिष्ठ से वरिष्ठ नेताओं को यहां तक कि अपने गुरुओं तक को लंगड़ी मारने में महारत रखता हो,उसे तो प्रधानमंत्री बनने तक से कोई ता$कत नहीं रोक सकती? देश की राजनीति इस समय देश के लोगों की समस्याओं को दूर करने या उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने का नाम नहीं बल्कि समाज में नफरत और सांप्रदायिकता का ज़हर घोलकर धर्म व संप्रदाय पर आधारित मतों के ध्रुवीकरण करने का नाम रह गई है। और यह इस अति प्रदूषित राजनीति का ही चरमोत्कर्ष है कि अब कुछ लोग खुलकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपमानित करने लगे हैं। उसके हत्यारे नाथू राम गोडसे का न केवल महिमा मंडन करते फिर रहे हैं बल्कि उसके नाम का मंदिर बनाने और उसकी मूर्तियां स्थापित करने का हौसला रखने लगे हैं।
आम आदमी पार्टी के चुनाव निशान झाड़ू को दिल्ली में जिस प्रकार का समर्थन मिला तथा दिल्ली की इस अप्रत्याशित जीत के बाद पूरे भारत में यहां तक कि लगभग प्रत्येक राजनैतिक दल के राष्ट्रभक्त सोच रखने वाले लोगों में खुशी का जो संचार देखा गया है उसे देखकर तो वास्तव में ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अब देश में राजनीति में स्वच्छता अभियान की शुरुआत हो चुकी है। वैसे तो विशलेषकों द्वारा यही कहा व लिखा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को सस्ती बिजली,20 हज़ार लीटर तक नि:शुल्क पानी,फ़्री वाई फ़ाई सुविधा जैसे जो वादे किए हैं उसके चलते केजरीवाल को 70 में से 67 सीटें हासिल हुई हैं। परंतु अरविंद केजरीवाल की पार्टी को मिले इस अपार बहुमत का कारण पारंपरिक राजनीति के दिग्गज नेताओं की खोखली व झूठी बयानबाजि़यां,उनकी ऐशपरसती,समाज को केवल अपनी सत्ता के लिए बांटने का प्रयास,राजनीति में ऐसे नेताओं के चलते फैली महामारी,लफ़्फ़ाजि़यों व भाषणबाजि़यों के बल पर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने के यत्न,जनता के पैसों पर ऐश करने की बन चुकी उनकी प्रवृति तथा अपनी विजय को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे नेताओं द्वारा कारपोरेट,उद्योगपतियों तथा अपराधियों से लिया जाने वाला समर्थन और इन सबके चलते राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी जैसी बातों ने दिल्ली के मतदाताओं को इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि वे न केवल पारंपरिक राजनैतिक दलों व नेताओं पर झाड़ू फेरे बल्कि इस संदिग्ध व स्वार्थी राजनैतिक परंपरा को भी अपने ‘स्वच्छता अभियान’ के माध्यम से बिलकुल साफ़-सुथरा कर डालें।
अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से यह बात की है कि उनकी पार्टी की टोपी पहनकर यदि कोई व्यक्ति गुंडागर्दी या बदमाशी करे तो पुलिस उससे सखती से निपटे। उन्होंने मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपने पास किसी भी मंत्रालय का कोई विभाग नहीं रखा। अपने मंत्रियों व विधायकों को उन्होंने 24 घंटे अर्थात् अधिक से अधिक समय तक काम करते रहने की हिदायत दी है। विपक्ष न होने के बावजूद केजरीवाल ने दोनों ही विपक्षी पार्टियों से सहयोग बनाने की बात कही है। उन्होंने राजनीति से वीआईपी कल्चर समाप्त किए जाने का हौसला दिखाया है। रिश्वतखोरों के विरूद्ध उन्होंने विशेष उपाय घोषित किए हैं। यहां तक कि उन्होंने मीडिया से सरकारी कामों को समय पर पूरा किए जाने हेतु दबाव डालने का अनुरोध किया है। और पांच साल में उन्होंने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त किए जाने का संकल्प भी दोहराया है। क्या उपरोक्त घोषणाओं में से कोई एक घोषणा देश के किसी मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद करते देखी या सुनी गई है? आमतौर पर सत्ता में आने के बाद सत्तारुढ़ दल के कार्यकर्ताओं में जोश व अत्साह इतना बढ़ जाता है कि वे गुंडागर्दी की हद तक पहुंच जाते हैं। सत्तारुढ़ दल के समर्थक लोग यह समझने लगते हैं कि अब तो दोनों हाथों से धन बटोरने का शुभ अवसर आ गया। लोग आमतौर पर अपने विरोधियों को नीचा दिखाना शुरु कर देते हैं। मगर अरविंद केजरीवाल की तजऱ्-ए-सियासत ने केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोगों में इस बात की उम्मीद जगाई है कि गंदी,स्वार्थपूर्ण व मकर-ो-फऱेब की राजनीति में अब सफ़ाई अभियान शुरु हो चुका है। निश्चित रूप से केजरीवाल का दिल्ली में पांच वर्षों का शासनकाल पूरे देश के मतदाताओं के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करेगा और यदि दिल्ली में पांच वर्षों में सियासत का चेहरा कुछ बदला तो आम आदमी पार्टी की झाड़ू दिल्ली से आगे बढक़र अन्य राज्यों में भी अपना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ छेड़ेगी।