वाणी मनुष्य को ईश्वर की बहुत बड़ी देन है : विवेकानंद परिव्राजक जी
“मनुष्य को भगवान ने बहुत सी वस्तुएं विशेष दी हैं, जो अन्य सब प्राणियों को नहीं दी। उनमें से एक विशेष वस्तु है वाणी, अर्थात बोलने के लिए भाषा।”
“यदि मनुष्य चाहे, तो इस भाषा अथवा वाणी का सदुपयोग करके सब का मन/हृदय जीत सकता है। और यदि मनुष्य मूर्खता करे, तो इस वाणी का दुरुपयोग करके, सबको अपना शत्रु बना कर, अपना सर्वनाश भी कर सकता है।”
विद्वानों ने कहा है, कि “यदि आप एक ही कर्म से संसार को अपने वश में करना चाहते हों, तो मीठी एवं सत्य वाणी बोलें।” और यदि आपने अपनी वाणी पर संयम नहीं किया, कठोर भाषा बोली, झूठ बोला, निंदा चुगली की, तो “यह उत्तम गुणों से युक्त वाणी ही, कठोर भाषा बोलने पर आपका सर्वनाश कर देगी। आप इस वाणी का दुरुपयोग करके सबको अपना शत्रु बना लेंगे।”
अब आप पढ़े लिखे व्यक्ति हैं। समझदार हैं, छोटे बच्चे नहीं हैं। इस बात को अच्छी प्रकार से समझें। वाणी का सदुपयोग करें। सबका मन जीत लेवें और आनंद से रहें।
“यदि आप अपनी वाणी का, वीणा के समान सुंदर प्रयोग करेंगे, तो आप के और सबके जीवन में संगीत उत्पन्न होगा। यदि इस वाणी का दुरुपयोग करके इसको बाण बना देंगे, तो युद्ध होगा, जिससे आपकी तथा दूसरों की हानि होगी।”
“और जब आप कठोर वाणी बोलकर दूसरों की हानि करेंगे, तो क्या दूसरे लोग चुपचाप बैठे रहेंगे? वे आपको माफ़ कर देंगे? वे भी आपको नहीं छोड़ेंगे, और वैसा ही उत्तर देंगे।” इस का परिणाम क्या होगा? “आपका भी सर्वनाश हो जाएगा। इसलिए अपने विनाश को आमंत्रण न देवें, बल्कि वाणी का सदुपयोग करके अपने और दूसरों के जीवन में संगीत उत्पन्न करें।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।