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कविता

गीता मेरे गीतों में,.. गीत संख्या….. 15

परमात्मा के दर्शन का लाभ

शत्रु हैं जो जग में आपके उन्हें जीतना होगा।
मित्रता के हर एक पौधे को हमको सींचना होगा।।

नहीं कोई साथ आया है , नहीं कोई साथ जाएगा।
जो भी लिया जग से – यहीं पर छूट -जाएगा।।
धर्म ही सच्चा साथी है – उसी को धारना होगा …..

अहंकार और ममकार को जो भक्त तज देता।
‘ब्रह्नवर्चस’ को पाता है -‘ओ३म’ का नाम भज लेता।।
भोग की भूख और प्यास को हमें छोड़ना होगा …..

भोग के अभ्यास से बढ़तीं जगत की वासना अर्जुन!
मिटा दे वासना को तू – जगत में वेद वाणी सुन ।।
प्रभु का ध्यान करता चल – उसी को खोजना होगा ….

जब तक इंद्रियां भूखी – बता! तेरे जप का क्या होगा?
निराहारी बना रहना भी तब तक ठीक ना होता।।
ध्यान कर इंद्रियों का तू – इन्हीं को साधना होगा ….

रूप, रस, गंध आदि की लगी हुई आग है दिल में।
जलाती रात दिन हमको – कुछ अफसोस कर दिल में।।
वेद वाणी की वर्षा से – जगत को भीगना होगा …..

लालसा को मिटा मन से – यही संदेश गीता का।
यही उपदेश ऋषियों का ,यही आदेश वेदों का ।।
इसी को घोटकर पी ले – इसे ही धारना होगा ….

विषयों का रस बड़ा फीका तू पी ले ‘सोमरस’ पगले।
मधु से भी वह मीठा – पहुंचाता घर हमें अगले।।
‘रसों का रस’ – जो होता है, उसी को खोजना होगा …

जिसने पी लिया जग में – रसों का सोमरस’ प्यारे ।
वही संसार – सागर में नहीं कभी डूबता प्यारे ।।
रसिया बन उसी रस का उसी में डूबना होगा ….

डॉ राकेश कुमार आर्य

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