इतिहास सिखाती है …..ख़तरे से आगाह करती है …..लेकिन कोई समझना चाहे तभी तो….!*
👉👉👉 *इतिहास के पन्नों से– :*
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*यह उस जमाने की बात है जब अंग्रेज सरकार थी। लाहौर के एक थाने में सब इंस्पेक्टर दौलत राम अग्रवाल चाहते थे कि उनका बेटा गंगा राम अग्रवाल भी उन्हीं की तरह पुलिस में भर्ती होकर नाम कमाए। इसलिए वह अपने एस पी के घर उसे लेकर जाया करते थे ताकि उसका मनोबल बढ़े, लेकिन गंगा राम ने कुछ और सोच रखी थी। उसे इंजीनियर बनना था। पढ़ने लिखने में तेज था इसलिए थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज रूड़की में एडमिशन हो गया। एक बार जब वह छुट्टियों में घर आया तो अपने पिता जी से पता चला कि अचानक एस पी साहब की पत्नी को लेबर पेन शुरू हो गया है और एस पी साहब दौरे पर हैं। गंगा राम दौड़ते हुए पहुँच गया एस पी आवास। वहाँ से सरकारी जीप पर लेकर निकल पड़ा किसी डाक्टर की खोज में। लाहौर में न डाक्टर था न अस्पताल। बस वैद्य थे और हकीम थे और थीं बच्चे पैदा करने वालीं पेशेवर महिलाएं। किसी तरह डिलीवरी हुई।*
*दूसरे दिन जब एस पी साहब लौटे तो उन्हें बच्चे की खबर से खुशी भी हुई लेकिन अफ़सोस भी हुआ कि कैसे उनकी पत्नी मरते मरते बचीं। उन्होंने गंगा राम का हाथ पकड़ कर कहा कि तुम्हारा एहसान कभी नहीं भुलूँगा। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ।*
*गंगा राम ने कहा कि सर, जब आप जैसे पदाधिकारी को इतनी दिक्कत है तो समझिए कि आम जनता को कितना कष्ट होता है? अगर मदद करना चाहते हैं तो यहाँ एक अस्पताल बना दीजिए!*
*गंगा राम ने डिजाइन किया और अंग्रेजी हुकूमत ने पैसे दिए। लाहौर का पहला अस्पताल बन गया जो बाद में मेडिकल कॉलेज बना। फिर तो गंगा राम ने स्कूल कॉलेज चौक चौराहे बाजार म्यूजियम से लाहौर को पाट दिया। ऐसी खुबसूरत इमारतें बनाईं कि लाहौर को पूर्व का वेनिस कहा जाने लगा।*
*अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा राम को सर की उपाधि दी। दिल्ली का सर गंगाराम अस्पताल भी उन्ही की देन है। सर गंगा राम की मृत्यु सन् 1926 में हो गई। लाहौर को पहचान देने वाले रचनाकार की याद में उनकी आदमकद मूर्ति उसी मेडिकल कॉलेज के प्रांगण में लगाई गई जो उनका पहला निर्माण कार्य था।*
*वर्ष 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक नया देश बन गया। आजादी के दिन लाहौर की सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी। भीड़ जब सर गंगाराम अस्पताल के पास पहुँची तो एक मौलवी ने कहा कि चूँकि अब हमारा मुल्क एक इस्लामिक मुल्क है इसलिए यह मूर्ति यहाँ नहीं रह सकती है। और भीड़ ने मूर्ति को तोड़ना शुरू कर दिया। उसी अस्पताल में पैदा हुए लड़के तोड़ रहे थे उस शख्स की मूर्ति जिसने उनके शहर को एक शक्ल दी थी क्योंकि सर गंगाराम हिंदू था। मशहूर लेखक सादात मंटो ने लिखा है मूर्ति के मुख पर कालिख पोती गयी और जूतों की माला पहनाया गया तभी पुलिस आयी और पुलिस करवाई में वही शख़्स घायल हो कर गिरा जिसने जूतों की माला पहनाई थी और भीड़ चिल्लाई इसे इसे सर गंगा राम अस्पताल ले जाओ…..*
*उस समय के कलक्टर ने अपनी डायरी में लिखा… कि “कितनी नमकहराम कौम है ये जो अपनी जान बचाने वाले शख्स को भी नहीं बख्शती है। इस कौम का सर्वनाश निश्चित है।”*
*इतिहास सिखाती है …..ख़तरे से आगाह करती है …..लेकिन कोई समझना चाहे तभी तो….!*
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