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पर्यावरण

पहाड़ मनोरंजन के लिए नहीं

माना कि भारत का संविधान हर नागरिक को मौलिक अधिकारों के तहत देश में कहीं भी घूमने फिरने पर्यटन की आजादी देता है |संसार के पुस्तकालय की सबसे प्राचीन पुस्तक सृष्टि का सविधान वेद कहता है……..

उपह्वरे च गिरीणां संगमे च नदीनां |
धिया विप्रो अजायत ||
ऋग्वेद 8 |6 |28

“पहाड़ों की गुफाओं में और नदियों के संगम पर ध्यान करने से विद्वान दार्शनिक योगी बना करते हैँ ”

अर्थात पहाड़ केवल साधकों योगियों तपस्वी भौतिक शास्त्रीओं गणितज्ञों बुद्धिजीवियों के लिए है.. पहाड़ पर oxygen की किंचित कम मात्रा मनो नियंत्रण में सहायक बनती है चित्त की वृत्तियां शांत हो जाती है पहाड़ का खनिज लवण युक्त मैग्नेटाइज्ड पानी एनर्जी बूस्टर की तरह कार्य करता है यही कारण है प्राचीन योगियों का शरीर लोहे की तरह वज्र साली सोने की तरह दमकता था मजबूत बालों का भी खनिज लवण युक्त पानी से गहरा संबंध है.. पहाड़ मटरगश्ती मनोरंजन मनो विलास कदाचार के लिए नहीं बनाए…. प्रभु ने.. लेकिन जिसे देखो आज वह पहाड़ पर जा रहा है सेल्फी ले रहा है मानो उसने चांद और तारे तोड़ दिए हो.. भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार हिमालय की भू आकृति भू प्रकृति काफी संवेदनशील है.. हिमालय अभी अपनी युवावस्था में है.. उदाहरण के तौर पर पहाड़ की मिट्टी 10 व्यक्तियों का दबाव सह सकती है लेकिन आज वहां खास स्थान पर हजार से अधिक व्यक्ति जमघट लगा रहे हैं…. नदिया किसी एक मार्ग पर नहीं बहती उनके बाढ़ ग्रस्त मार्ग होते हैं जिन्हें वाहिका बोला जाता है आज वाहिकाओं पर होटल भवन बना दिए गए हैं नतीजा आपके सामने हैं 5 वर्ष पहली भयंकर त्रासदी जब देवभूमि देह भूमि बन गई…. इतना ही नहीं पहाड़ी नालों के मलबे से निर्मित विशेष स्थान जिन्हें वेदिका बोला जाता है उन पर भी मकान बना दिए गए.. राज्य सरकार हो या केंद्र सभी पर दबाव रहता है पर्यटन को बढ़ावा देने व सुख सुविधाओं को स्थापित करने का विकास के नाम पर शांत हिमालय को आज अशांत कर दिया गया है इसका खामियाजा हम चुका रहे हैं… पहाड़ों पर जैविक खेती से पहाड़ी व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सकता है पर्यटन के नाम पर विनाश को आमंत्रित नहीं किया जा सकता… वर्षा ऋतु में पहाड़ विकराल रूप धारण कर लेता है जो कि स्वाभाविक है प्राचीन ऋषि महर्षि भी वर्षा के 4 माह मैदानों पर आकर बिताते थे जिसे चातुर्मास बोला जाता है श्रावणी उपाकर्म( रक्षाबंधन )के पश्चात अपने आश्रमों में वापस लौट जाते थे.. हमने उनसे कुछ नहीं सीखा.. आज पहाड़ी नदियां पहाड़ों पर ही प्रदूषित हो गई है अत्यधिक पर्यटन गतिविधियों के कारण… भारत के संविधान को छोड़िए इस मामले में सृष्टि के सविधान की बात आपको माननी पड़ेगी.. हमें मनोरंजन के लिए नहीं मनो नियंत्रण साधना के लिए पहाड़ पर जाना होगा.. वह भी तब जब हम इस के योग्य हो जाएं… मेरी बातों को कोई मित्र अन्यथा ना ले हृदय के उद्गार थे जो व्यक्त कर दिए..!

आर्य सागर खारी ✒️✒️✒️

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