असहिष्णुता के प्रति सहिष्णु होना आत्महत्या के समान है।
विश्व मानचित्र पर भारत का अस्तित्व केवल इसलिए सुरक्षित है कि इसने किसी भी प्रकार की असहिष्णुता को सहिष्णुता के नाम पर कभी स्वीकार नहीं किया। जब-जब और देश के जिस जिस क्षेत्र में हिंदू कमजोर होकर असहिष्णुता के प्रति सहिष्णु हुआ , तब – तब और वहीं – वहीं इसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
आर्य / हिंदुओं के इसी प्रकार के राष्ट्र प्रेम और संस्कृति प्रेम से भरे कार्यों की प्रशंसा करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ( कंपलीट वर्क्स ,खंड 3, पेज 289 ) लिखते हैं कि तुमने सदियों के आघातों को सहन किया है, केवल इसलिए कि तुमने इस विषय में चिंतन बनाए रखा, और इसके लिए सभी कुछ की बलि भी दे डाली। तुम्हारे पूर्वजों ने साहस के साथ सभी कुछ सहा, हर प्रकार की यातनाएं झेलीं, यहां तक कि मृत्यु भी स्वीकार कर ली। किंतु अपने धर्म को सुरक्षित बनाए रखा।
विदेशी आक्रांताओं ने एक के बाद एक मंदिर तोड़ा किंतु जैसे ही आक्रमण की आंधी साफ हुई, तो मंदिर का शीर्ष पुनः खड़ा कर दिया जाता था। इनमें से दक्षिण भारत के कुछ प्राचीन मंदिर और गुजरात के सोमनाथ जैसे मंदिर तुम्हारे तुम्हें अपार बुद्धिमत्ता की शिक्षा देंगे और इनमें तुम्हें देश, धर्म व हिंदू समाज के इतिहास की गहनतम दृष्टि अनेकों की अपेक्षा कहीं अधिक प्राप्त हो जाएगी।
ध्यान से देखो। इन मंदिरों ने किस प्रकार सैकड़ों आक्रमणों के आघातों के चिन्हों को संभाला हुआ है, यानी कि उन पर सैकड़ों आक्रमणों के चिन्ह अंकित हैं और सैकड़ों पुनर्निर्माणों के भी चिह्न अंकित हैं, वे निरंतर ध्वंस किए जाते थे और ध्वंसावशेषो से नवजीवन युक्त और सदैव की भांति निरंतर पुनर्जीवित होते रहते थे।”
यदि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए हमारा चिंतन विकृत हो जाता या मिट जाता तो आज हम भी मिट गए होते। हम सतत जागरूक रहे और अपनी जागरूकता को निरंतर बनाए रखने में भी सफल रहे। उसी का परिणाम हुआ कि चाहे हमने जितने आघात सहे और चाहे हमारे मंदिरों या ऐतिहासिक स्थलों ने जितनी चोट खाई पर हम झुके नहीं, रुके नहीं, थमे नहीं और थके नहीं। हम चोट पर चोट खाते रहे और चोट पर चोट करते भी रहे। उसी का परिणाम रहा कि एक दिन चोट हार गई और हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक के रूप में गर्व और गौरव से भरे हुए शेष संसार के साथ जाकर बैठे।
इस समय राजस्थान के उदयपुर में जिस प्रकार एक हिंदू दर्जी की गर्दन काटी गई है और उसके बाद वैसी ही घटना को अमरावती में भी अंजाम दिया गया है वह चिंता का विषय है। उसके बाद अजमेर से सलमान चिश्ती नाम के व्यक्ति द्वारा भड़काऊ भाषण का वीडियो बनाकर जारी किया गया है। जिसमें वह नूपुर शर्मा का सर कलम करके लाने वाले को अपना मकान नाम कर देने की बात कह रहा है। उससे स्पष्ट हो रहा है कि एक वर्ग की असहिष्णुता इस समय देश के लिए बहुत ही खतरनाक होती जा रही है। जो लोग देश में कानून के राज की बात करते हैं और कहते हैं कि देश कानून से चलेगा, संविधान से चलेगा। उन्हीं की जुबान फिसलती है और कुछ लोग कानून को अपने हाथ में लेकर देश को अराजकता में धकेल देते हैं। इस प्रकार की असहिष्णुता के प्रति सरकार को अब कठोर निर्णय लेना ही होगा। हमारा मानना है कि जो लोग इस प्रकार के पाशविक कार्यों में लगकर देश को अराजकता, अस्थिरता और अफरातफरी में धकेल रहे हैं, उनके प्रति बहुत ही कठोरता से पेश आने की आवश्यकता है।
जो लोग कानून को अपने हाथों में ले रहे हैं और संविधान की धज्जियां उड़ाने में गर्व और गौरव की अनुभूति कर रहे हैं , यह वही लोग हैं जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के अपमान करने को भी संविधान प्रदत्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया था। आज एक मुस्लिम के द्वारा ही टीवी चैनल पर उकसाए जाने पर नूपुर शर्मा ने जो कुछ कह दिया है वह उकसावे में आकर कहने के उपरांत भी इनकी दृष्टि में भाषण और अभिव्यक्ति के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार की परिधि में नहीं आता।
गंगा जमुनी संस्कृति की बात करने वालों को अब सर कलम करने वालों के बारे में भी कुछ बोलना चाहिए कि उनका यह कृत्य बकौल उनके गंगा जमुनी संस्कृति की परिधि में आता है या नहीं ?
अब समय आ गया है कि स्वामी विवेकानंद जी के उपरोक्त चिंतन को अपने लिए प्रेरणास्पद मानकर राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए सारे देशवासियों को उठ खड़ा होना चाहिए। इस समय हमें यह भी ध्यान रखना है कि जो लोग देश की एकता और अखंडता के प्रति समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं या कार्य करने का आश्वासन देते हैं, उनको अपना भाई समझकर अपने साथ रखना होगा। जो लोग देश और समाज को शांति का संदेश देने में विश्वास रखते हैं वे सब देश की सामूहिक चेतना के अंग बनकर इस समय देश विरोधी शक्तियों के विनाश का कार्य करें। आतंकवादियों के समर्थक और आतंकवाद के पोषक लोग या उन्हें दूर से बैठकर मौन समर्थन देने वाले लोग यदि इस मुहिम में साथ आते हैं तो उनको साथ लेकर और यदि वे नहीं आते हैं तो उनके बिना भी अब एक राष्ट्रीय संकल्प होना चाहिए कि आतंकवाद और आतंकवादियों का पूर्ण सफाया करके ही राष्ट्र दम लेगा।
सुप्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान अनवर शेख ने ‘मुसलमानों द्वारा हिंदू मंदिरों का विनाश क्यों?’ नामक अपनी पुस्तक के पेज नंबर 38 पर लिखा है कि विनम्रता या सहनशीलता प्रभुत्व के इच्छुक आक्रांता का सामना या उससे संघर्ष न करने पर उससे भी बड़ा दोष हो जाता है । क्योंकि इसके कारण आक्रमणकर्ता और अधिक साहसी, दानवी और विनाशकारी हो जाता है। जुझारूपन के अभाव में एक भेड़िया भेड़ मात्र ही है, जो भोजन की मेज पर आहार के लिए ही उपयुक्त होता है। एक राष्ट्र जो अपनी रक्षा के लिए आत्मविश्वास खो देता है, फुटबॉल की तरह हो जाता है। जिससे जो चाहे, जैसे चाहे, खेले, यानी कि उसे हर गधा घोड़ा ठोकर ही मारेगा। अहिंसा को जीवन आदर्श बनाकर उन्होंने अपने आपको प्रत्येक आक्रमणकर्ता को लालच भरा निशाना बना दिया है। यह कोई धार्मिक गुण नहीं है वरन अपवित्रता का द्योतक है तथा एक अति निंदनीय दोष को सर्वश्रेष्ठ गुण के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास मात्र है। देवता अपने भक्तों को कायरों के रूप में नहीं चाहते । वे वैदिक देवता अपने देशभक्तों जो सम्मान की भावना से युद्ध करते हैं, को ही आशीर्वाद देते हैं।’
बात स्पष्ट है कि हमें राष्ट्र के संदर्भ में हिंसा का प्रचलित गलत गलत अर्थ अब अस्वीकृत कर देना चाहिए। प्रधानमंत्री जिस प्रकार ‘अग्निवीर’ योजना को लेकर आए हैं, निश्चय ही उसके भविष्य में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। जो लोग आज देश में किसी भी प्रकार से आग लगा रहे हैं उनके विरुद्ध सरकार द्वारा प्रशिक्षित यह ‘अग्निवीर’ देश की रक्षा का भार संभालने में आने वाले समय में देश के लिए बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे। वैसे भी यह अग्निवीर सरकार द्वारा प्रशिक्षित होने के कारण सात्विक वीरता के साथ समाज में पदार्पण करेंगे। कहने का अभिप्राय है कि इनके भीतर किसी प्रकार की पाशविकता, दानवता या तामसिकता नहीं होगी।
इस समय हम सबको केवल एक ही संकल्प लेना चाहिए कि हम उन सब राष्ट्रवादी शक्तियों के साथ खड़े होंगे जो देश से दानवता, आतंकवाद और प्रत्येक प्रकार की अराजकता को मिटाने के लिए कृत संकल्पित हैं। हम किसी भी स्थिति में देश विरोधी शक्तियों के बहकावे में नहीं आएंगे और ना ही अपने आपको भ्रमित होने देंगे जो भारत को विश्व गुरु बनने से रोकना चाहती हैं। हम प्रत्येक स्थिति में सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखकर देश की सामूहिक चेतना के वशीभूत होकर कार्य करते हुए चुन-चुन कर उन राष्ट्र विरोधियों देशद्रोहियों और कानून के राज को उखाड़कर अराजकता को फैलाने वाले लोगों का सफाया करने में सरकार का साथ देंगे जो देश की मुख्यधारा को गंदा कर रहे हैं। हम किसी भी स्थिति परिस्थिति में राजनीतिक सांप्रदायिकता के शिकार नहीं होंगे। क्योंकि राजनीतिक सांप्रदायिकता अर्थात दलीय भावना से सभी देशवासियों को देखना और देश से पहले दल के प्रति समर्पित होना देश के लिए एक बहुत बड़ी बीमारी सिद्ध हो चुकी है। हमारे लिए दल से पहले देश होगा।
हम यह भी संकल्प लें कि क्षेत्र ,भाषा, प्रांत, संप्रदाय, जाति, लिंग आदि हम सबके लिए गौण हैं । यदि देश के लिए किसी प्रकार का संकट आ रहा होगा तो हम उसके लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए आगे आएंगे। हम संकल्प लेते हैं कि हमारे देश के महान क्रांतिकारियों ने जिस विश्व गुरु भारत का संकल्प लिया था, हम उस विश्व गुरु भारत के निर्माण में अपना सर्वस्व समर्पित कर देंगे। हम अपने इतिहास के महापुरुषों, क्रांतिपुरुषों, बलिदानियों व देशभक्तों को साक्षी रखकर संकल्प लेते हैं कि जो लोग किसी वर्ग ,संप्रदाय आदि की शिक्षाओं या भावनाओं के वशीभूत होकर देश को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं उन सबका हम सामूहिक होकर प्रतिरोध करेंगे। अपने सैन्य बलों, सुरक्षाबलों और राष्ट्रवादी नेतृत्व का प्रत्येक परिस्थिति में समर्थन करेंगे।
राष्ट्रीय चेतना का जागरण करो, प्रत्येक प्रकार के मोह का संवरण करो, राष्ट्र पथ पर मिली मौत का भी सहर्ष वरण करो।
देश से लिया बहुत है – अब देने का कुछ ध्यान करो, इसकी महान विरासत पर अभिमान करो। ध्यान रखो कि देश तुम्हारा गुलाम नहीं है बल्कि तुम ही देश के गुलाम हो। कहने का अभिप्राय है कि देश के हितों के सामने तुम्हारे हित पूर्णरूपेण गौण हैं। राष्ट्र एक खुली किताब है, पर उसका हर पेज खून से साफ करके ही पढ़ा जा सकता है। राष्ट्र विरोधी शक्तियां उसे सदा धूमिल करने का प्रयास करती हैं ,जबकि राष्ट्रभक्त लोग राष्ट्र के प्रत्येक पेज को अपने बलिदानों से धो धोकर पढ़ते हैं और आने वाली पीढ़ियों को अपने खून से सींचे गए इतिहास को विरासत में देकर जाते हैं। हमारे पास खून से सींचा गया इतिहास है और महान राष्ट्रीय धरोहर है। हमने खून से सींचकर आजादी प्राप्त की है। किसी बाबा की अहिंसा से यह आजादी नहीं मिली है। खून से सींच कर ही आजादी को सुरक्षित रखना हमने सीखा है और आज उसी परंपरागत कार्य के एक बार फिर निर्वाह का समय आ गया है।
जहां बोलना जरूरी होता है वहां चुप्पियों का पांव पसारना महाभारत को आमंत्रण देता है। हम अपनी भूमिका स्वयं निश्चित करें कि हम सही बोलने के क्षणों में या अवसर पर चुप हैं या कुछ कर रहे हैं या हमें क्या करना चाहिए ?
– डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत