दिन की शुरुआत प्रभात या भोर होने पर की जाती है । प्रातः काल में ब्रह्म मुहूर्त में उठना और अपनी दिन चर्या आरंभ करना ऋषियों के द्वारा हमें बताया गया है। यद्यपि आजकल स्थिति विपरीत हो गई है। वर्तमान समय में मनुष्य की जीवनचर्या इतनी बदल गई है कि मनुष्य अपने व्यवसाय के लिए रातों में जागता है और अपनी जीविकोपार्जन के लिए रातों में कम्पनी या कारखानों में भी काम में लगा रहता है। उसके लिए दिन और रात में कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता है । इस प्रकार के परिवर्तन से मनुष्य की आयु भी कम हो रही है और उसका स्वास्थ्य भी चौपट हो रहा है।
अधिकांशतः हमें ऐसे शहर भी देखने में आते हैं , जहां देर रात तक इन्सान भागदौड़ में लगा रहता है । लेकिन उनको भी आराम या विश्राम के लिए नींद की आवश्यकता है , उनके लिए प्रभात या भोर का समय निश्चित ही परिवर्तित हो जाता है , शेष इन्सान या जीव जो रात में व्यवसाय या जीविकोपार्जन के लिए नौकरी आदि नहीं करते, उनका भोर या प्रभात का समय सुबह 3-4 बजे से आरम्भ होता है ।
प्रत्येक इन्सान अपने जीवन को जीने के लिए अपनी -2 प्लानिंग से दिन की शुरुवात करता है। लेकिन आज भी दुनिया में ऐसे मनुष्य हैं जो अपनी आत्मा की उन्नति के लिए एकांत में बैठकर प्रभु का सिमरन करते रहते हैं। उनके लिए दिन कब आया और रात कब हो गई – उन्हें यह पता भी नहीं चलता। हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हमेशा प्रत्येक दिन और प्रत्येक दिन और प्रत्येक रात हमारे लिए कुछ संदेश और सहारा लेकर आती है । जिसके भीतर प्रत्येक दिन की भोर में इस नए संदेश को पढ़ने की क्षमता आ जाती है वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन उन्नति करता चल जाता है।
कर ( हाथ ) का अर्थ करना होता है , इसलिए मनुष्य को सोच समझकर बुरा भला सोचकर कार्य करना चाहिए। कार्य को सिद्ध करने में देर मत करो। मालूम नहीं फिर कैसा समय उपस्थित हो । क्योंकि समय से चूक जाने पर वह समय फिर दुबारा नहीं आ सकता।
हमने दिन की शुरुवात से बात आरम्भ की है , इसलिए समय का वर्गीकरण करना भी जरूरी है, दिन के समय के विभाजन में दिन और रात का विभाजन भी जरूरी है। दिन 12 घंटे का और 12 घंटे की ही रात होती है, इन्हें जोड़कर कुल 24 घंटे होते हैं। इसमें मनुष्य आयु के अनुसार सोने में अपना समय इस प्रकार व्यतीत करता है :-
एक वयस्क के सोने की या आराम की अवधि 7 या 8 घंटे होती है, वृद्ध या बुजुर्ग के लिए सोने का समय 5 या 6 घंटे माना गया है, जबकि बच्चों के सोने के लिए 8 से 9 घंटे पर्याप्त होते हैं। यदि रात में हम देर तक जागते हैं तो उसका प्रभाव सुबह उठने पर हम पर पड़ता है। यदि हम इससे ज्यादा सोते हैं तो हमारा शरीर आलसी हो जाता है। आलसी पुरुष आनंद को कभी प्राप्त नहीं कर सकता, ऐसा यजुर्वेद ( 3 /47 ) का आदेश है। विद्या और धर्म को बढ़ाने के लिए किसी को आलस्य नहीं करना चाहिए। यह भी यजुर्वेद (18 / 31) का निर्देश है। क्योंकि हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है।
हमने दिन-रात के 24 घंटों में सोने के समय का तो उल्लेख किया है, शेष समय का उल्लेख भी जरूरी है। हमारे उपरोक्त विवरण के आधार पर एक वयस्क के पास सोने से अलग 16 घंटे बचते हैं, एक बुजुर्ग के पास 18 घंटे शेष बचते हैं, इसी प्रकार किसी बच्चे के पास लगभग 15 घंटे अन्य कार्यों के लिए शेष बचते हैं।
एक बच्चा अपने बचे हुए शेष समय को खेलने, कूदने व पढ़ने में अधिक बिताता है। वयस्क और वृद्ध मनुष्य को अपना शेष समय अन्य कार्यों में बिताने के लिए अपनी एक नियमित जीवन चर्या बनानी होती है। इसी को हम दिनचर्या के नाम से भी जानते हैं। एक वयस्क सोने के बाद 8 या 9 घंटे अपने व्यवसाय या जीविकोपार्जन में लगाता है। तब भी उसको 7 घंटा का समय और बचता है। इसी प्रकार वृद्ध व्यक्ति भी अन्य कार्यों में अपना समय लगाकर भी नौ घंटा का समय शेष बचा लेते हैं। अब इस शेष समय में से चार घंटा अपनी रोज की जीवन चर्या में आदमी समय व्यतीत करने के बाद भी शेष बचाता है तो मनुष्य इंसान को इस समय का उपयोग भी उस परमपिता परमेश्वर, प्रभु , अल्लाह, खुदा, गॉड या मालिक कुछ भी कहिए- उसके लिए निकालना चाहिए।
परमपिता परमेश्वर ने यह सृष्टि बनाई है तो उसमें मनुष्य को बहुत ही महत्वपूर्ण प्राणी के रूप में बना कर भेजा है। इस मनुष्य योनि के लिए देवता भी तरसते हैं, क्योंकि मनुष्य योनि में ही आत्मोन्नति की जा सकती है। अतः सुबह या भोर काल में या जब भी समय मिले हमें अपनी आत्मा की उन्नति के लिए भी समय निकालना चाहिए। इसलिए हमें दिन की शुरुआत स्नान या हाथ या मुंह धोकर आत्मिक उन्नति के लिए करनी है। अमृत वेला में रात भर नींद लेने के बाद शरीर ताजा होता है। शाम का खाना हजम हो चुका होता है तथा खाली पेट भजन सुमिरन या नाम लेने के लिए उपयुक्त या लाभकारी होता है। वैसे मालिक की भक्ति या आत्मिक उन्नति के लिए सभी समय उचित है, परंतु जो लाभ अमृत बेला में है और किसी में नहीं है।
फरीद साहब कहते हैं :-
उठ फरीदा उजू सांझ सुबह निवाज गुजारि।
जो सिर सांई न निवे सो सिर कार्य उतारि।।
फरीदा पिछल रात जागियो जीव दड़ो मुई ओहि।
जो तू रब बिसारिया त रब न बिसरि ओहि।।
ऋषि राज नगर एडवोकेट
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