कश्मीर पर बीजेपी ने अति उत्साह में आकर अपनी निष्ठाओं,परम्परागत आधार व राष्ट्रहित के मुख्य बिन्दुओ की अवहेलना करके बड़े सोच समझ कर अपने घुर विरोधी पी डी पी के साथ गठबंधन करके जो सरकार बनायी है उसमे मुफ़्ती मोहम्मद सईद ही एक प्रकार से सर्वेसर्वा बन कर उभरे है । उन्होंने अपने आपको एक सधे हुए राजनीतिज्ञ के समान अधिकार पूर्वक अपने आग्रही स्वरूप को दर्शा कर बीजेपी के लिए असमंजस की स्थिति बना दी है । पीडीपी की प्राथमिकता तो केवल कश्मीर घाटी के नागरिको के मन की बात को ही आगे बढा कर अपनी राजनीति की धार तेज करनी है।जबकी बीजेपी भले मन से विकास की बात करते हुए आत्मसम्मान , सुरक्षा व समानता आदि से त्रस्त जम्मू व लद्धाख के नागरिको की प्राथमिकता को समझने में कही कुछ भूल करके अपनी उपस्थिति का वहां के लोगो में प्रभाव जमाने में असफल लग रही है।
कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि लोकसभा चुनाव में हुई ऐतिहासिक जीत का कारण समझने में अनभिज्ञता प्रकट करके बीजेपी अपने राष्ट्रवादी स्वरूप से बचना चाह रही हो।क्या किसी अन्य राजनैतिक दल ने अपने अपने परंपरागत सिद्धान्तों जैसे मुख्य रूप से छदम् धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण , क्षेत्रीय, धार्मिक व जातिगत आधार आदि की कभी कोई अवहेलना करी है ?
सन् 2004 के लोकसभा चुनावो में कांग्रेस की जीत बीजेपी की इसी भूल का परिणाम थी जिसको अनेक अवसरों पर स्वीकार भी किया गया था।परन्तु कांग्रेस ने बीजेपी की इस भूल का लाभ लेते हुए 2004 की जीत को आगे बनाये रखने के लिए अल्पसंख्यको को वरीयता देते हुए अगले 2009 के चुनाव भी जीते।
लेकिन कांग्रेस के इस अति अल्पसंख्यक मोह से जब बहुसंख्यक भूमि पुत्रो की निरंतर उपेक्षा करते हुए प्रताड़ना के षड्यंत्र रचे जाने लगे तो सोई हुई भारत भक्ति चेती और रोम के स्थान पर राम राज्य के लिए मोदी जी की राष्ट्रवादी आक्रामक शैली पर मुग्ध होकर ही बीजेपी की अभूतपूर्व ऐतिहासिक विजय का मार्ग सुगम हुआ ।
अतःअब बीजेपी को चाहिए कि वह कश्मीर के साथ साथ समस्त राज्यो में विकास को तो महत्त्व दे परंतु अपनी राष्ट्रवादी राजनीति के ठोस आधार को बनाये रखने के लिए ढोंगी धर्मनिरपेक्षता, जिहादी आतंकवाद व पाकिस्तान के षडयंत्रो पर कड़े प्रहार करने में कोई संकोच न करें।
विनोद कुमार सर्वोदय