सच को सच नहीं कह पाते
जमीरें बिकीं बाजारों में,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
मिटा दिए सिंदूर बहुत से
लाठी छीनी बापू की,
बहन से भाई जुदा किए
लाज लूट ली ममता की ,
मानवता हुई शर्मसार
नहीं तनिक भी लज्जा की,
पापों से धरती डोल गई
कुछ कहने में भी शर्माती।
जो अपने होकर धोखा देते
उन्हें कैसे गिनूं मैं यारों में,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
इतिहास के गौरव को
जो देश जाति भूला करती,
देश के हत्यारों की कब्रों
को जाकर पूजा करती,
अपने शौर्य की गाथा पर
दूजों को तरजीह दिया करती,
हकदार नहीं सम्मान की होती
गैरत धिक्कार किया करती।
मैं जो कुछ कहता समझ
लीजिए सारी बात इशारों में,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
कुछ नेता हीजड़ा बने हुए
जयचंदी सोच लिए फिरते,
कुछ देश तोड़ने को आतुर
सामने लिखा नहीं पढ़ते,
जर, जमीन, जमीर बेच दी
अब देश बेचने को फिरते,
वली नहीं जो बच्चों के
हम सबके वली बने फिरते।
कमजोर शाख पर बने घोंसला
यह बात नहीं हुशियारों की,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
जब शीश उतारे जाते हैं
या पीट-पीट मारा जाता,
जब मां की आंखों के आगे
बच्चे का कत्ल किया जाता,
जब बाप के आगे ही बेटी से
पशुता का काम किया जाता,
क्यों हो जाते तब मौन सभी
और पक्षाघात सबको खाता।
पशुता से आता जोश सदा
गीदड़ और सियारों में,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
जो अमन की बातें करके भी
चमन के दुश्मन होते हैं,
वह कभी नहीं अपने होते
वतन के दुश्मन होते हैं,
जिनकी फितरत में गद्दारी
वे जयचंद के वंशज होते हैं,
जिनके लिए मजहब पहले हो
वे बाबर के वंशज होते हैं।
‘राकेश’ गीत हम गाएंगे
हर जलसे और चौबारों में,
कोसेगा इतिहास उन्हें
नाम लिखेगा गद्दारों में।
डॉ राकेश कुमार आर्य