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मनमोहन अदालत में!

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को विशेष अदालत में पेश होने का आदेश जारी क्या हुआ,टीवी चैनलों के पर्दे जरूरत से ज्यादा हिलने लगे। तूफान-सा आ गया। यह स्वभाविक भी था, क्योंकि मनमोहन सिंह के बारे में उनके विरोधियों को भी विश्वास हे कि वे बेहद ईमानदार और सज्जन व्यक्ति हैं। लेकिन कानून तो कानून है। उसकी गिरफ्त में कोई भी आ सकता हे। वह राजा हो या रंक! यदि जज ने अपनी आरंभिक खोज में यह पाया कि पूर्व प्रधानमंत्री ने, जो उस समय कोयला मंत्री भी थे, सामान्य प्रक्रिया का उल्लंघन करके हिंडाल्को कंपनी को कोयले की खदान दे दी तो जज को पूरा अधिकार है कि अदालत में उनको बुलवा कर पूछे कि आपने ऐसा क्यों किया? पहले जो प्रक्रिया अपनाई गई,  उसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया है तो आप तो उससे भी आगे बढ़ गए। क्यों बढ़ गए?

 डॉ मनमोहनसिंह कहते हैं कि उनके पास इस सवाल का संतोषजनक जवाब है। भगवान जाने, उनके जवाब से जज को संतोष होगा या नहीं लेकिन यह तो तय है कि वह फैसला करते समय मनमोहनसिंह के दिमाग में व्यक्तिगत स्वार्थ की बात कतई नहीं रही होगी। यह आरोप तो जज ने भी नहीं लगाया है। भ्रष्ट्राचार तो तभी होता है, जब आप कोई फायदा उठाएं। इसलिए मनमोहनसिंह को भ्रष्टाचारी कहने वालों की ही छवि खराब होगी, उनकी नहीं।

हिंडाल्को को खदान दे देने का फैसला या तो उन्होंने पार्टी दबावों के कारण किया होगा या बिड़ला परिवार की असीम राष्ट्र-सेवाओं को देखते हुए। ओडिशा की इन खदानों को हिंडाल्को को दिया जाए, इसकी जोरदार वकालत वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी की थी। कारण जो भी हो, वे खदानें तो वापस हो गई हैं। अब उस मरे हुए घोड़े को पीटने की तुक क्या है? यदि वे खदानें हिंडाल्को को देने से सरकार को काल्पनिक घाटा हुआ है तो डॉ मनमोहनसिंह के कई फैसलों की वजह से सरकार को अरबो-खरबों का वास्तविक फायदा भी हुआ है। यदि मनमोहनसिंह वास्तव में दोषी है तो अदालत में इतना दम तो होना चाहिए था कि उनके प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनकी पेशी हो जाती। अब पता नहीं, न्याय कितना होगा? जो हो, इतना अच्छा तो हुआ कि अधमरी कांग्रेस में कुछ हरकत हुई।

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