विपक्ष द्वारा सरकार की विकास नीति में अडंगा
सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में लगभग निर्वासन की स्थिति में पहुंच चुका भारत का राजनीतिक विपक्ष अपने आपको राष्ट्रीय परिदृश्य में उभारने के लिए एक बार फिर भरसक प्रयत्न कर रहा है। राहुल गांधी के कथित जासूसी मुद्दे की हवा निकलने के बाद कांगे्रसी नेताओं के स्वरों में जो बेचैनी देखी जा रही है, उसके कारण कांगे्रस सहित सभी विपक्षी दल अपने आपको खबरों में बनाए रखने के लिए मार्ग तलाशने में जुट गए हैं। लेकिन एक बात तो साफ है कि राजनीतिक विपक्ष किसी मुद्दे पर गहन चिन्तन मनन करना ही नहीं चाह रहा। अगर वास्तव में चिन्तन मनन करता तो संभवत: भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विरोध करने का अवसर ही नहीं आता। इस भूमि अधिग्रहण को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जिस प्रकार का प्रचार किया जा रहा है, वास्तव में वह वैसा नहीं है। इसकी वास्तविकता का अध्ययन किया जाए तो इसका स्वरूप केन्द्र सरकार की उस नीति पर खरा उतरता दिखाई देगा, जिसमें सबका साथ, सबका विकास की प्रतिध्वनि सुनाई देगी।
भूमि अधिग्रहण मुद्दे को लेकर जिस प्रकार से विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा संसद से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च किया गया, उसे एक महज दिखावा निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कही जाएगी। क्योंकि यह सभी वही राजनीतिक दल हैं जो हमेशा से ही सत्ता में अपना प्रभाव दिखाना चाहते हैं। इसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो यही होगा कि यह दल बिना सत्ता के जीवित ही नहीं रह सकते। वास्तव में यह प्रदर्शन केन्द्र सरकार पर जबरदस्ती दबाव बनाने का असफल प्रयास ही है। यह राजनीतिक दल इतना अवश्य जानते हैं कि वर्तमान में केन्द्र सरकार जिस नीति के तहत कार्य कर रही है, उससे देश का ही भला होगा। विपक्षी दलों द्वारा जिस प्रकार से भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध किया जा रहा है, उसे प्रथम दृष्टया देशहित का विरोध ही कहा जाएगा। क्योंकि केन्द्र का यह कदम सबका साथ सबका विकास वाली अवधारणा पर ही आधारित था।
भूमि अधिग्रहण विधेयक के कुछ महत्वपूण बिन्दुओं पर विचार करें तो हम पाएंगे कि यह विधेयक देश की प्रगति के लिए महत्वपूण सोपान बनेगा। मोदी सरकार ने किसान हितों की सुरक्षा करने के लिए लोकसभा में इस संशोधन विधेयक में 9 संशोधन पारित किए हैं। इन 9 संशोधनों के अनुसार इस अध्यादेश में भूमि अधिग्रहीत परिवार के एक सदस्य को नौकरी, किसानों की बहु फसली जमीन की मुक्ति एवं सुरक्षा, किसानों को अपील का अधिकार, इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन का प्रावधान, सामाजिक अधो संरचना के लिए शासकीय मंजूरी, सरकार तथा सरकारी एजेन्सी को भी भूमि अधिग्रहण की अनुमति, बंजर जमीन का अलग से रिकार्ड रखने, जिला स्तर शिकायत निवारण प्रकोष्ठ, उपजाऊ जमीन को अंतिम विकल्प जैसे आवश्यक प्रावधान किए गए हैं। इन सभी प्रावधानों का अध्ययन किया जाए तो हमें स्पष्ट रूप से यह दिखाई देगा कि सभी संशोधन देश और किसानों के हित में ही हैं। वास्तव में विकास की अवधारणा को साकार रूप में परिणित करने के लिए इस प्रकार के कदम की आवश्यकता है।
विपक्ष द्वारा जिस प्रकार से प्रदर्शन किया गया, उसके पीछे उनके अपने स्वार्थ और निहितार्थ होंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि अपने फायदे के लिए देश के विकास के मार्ग को अवरुद्ध करना किस राजनीति का परिचायक है। इस विरोध को विपक्ष का बालहठ कहना ज्यादा न्यायोचित कहा जाएगा, क्योंकि इस प्रकार के हठ में यह दिखाई नहीं देता कि किसका कितना नुकसान होगा। वह तो विरोध ही करेगा।
एक लम्बे अरसे बाद संसदीय लोकतंत्र की परिपक्वता तथा परस्पर संसदीय सहयोग प्रदर्शित करने वाली एक सुखद खबर मिली। देश की आर्थिक प्रगति के लिए अति आवश्यक बीमा अध्यादेश 2015 राज्यसभा में विपक्ष के सहयोग से आखिरकार पारित कर दिया गया। 12 मार्च 2015 को राज्यसभा में पारित होने के बाद अब यह अध्यादेश राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद मान्य कानून का रूप लेगा। जबकि भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर देशभर में असमंजस एवं विरोध जारी है। संसद में भाजपा और विपक्षी दलों में तीखी नोंक-झोंक सहित विवाद जारी है। यह विधेयक गत दिनों लोकसभा में पारित हो चुका है अब इसे मान्य कानून का रूप देने के लिए 20 मार्च 2015 तक राज्यसभा में पारित किया जाना आवश्यक है। परन्तु संसद के द्वितीय सदन राज्यसभा में सत्तारूढ़ दल भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं है। संख्या बल की दृष्टि से राज्यसभा में कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का पलड़ा भारी है। राजनैतिक घटनाक्रम को देखते हुए बिना विपक्षी सहयोग के भूमि अधिग्रहण पारित होना संभव नहीं लगता है।
भूमि संशोधन विधेयक के लिए मोदी सरकार ने लचीला तथा सर्वग्राही रूप अपनाया परन्तु गेंद अब विपक्ष के पाले में है, बिना विपक्ष के पूर्ण सहयोग के राज्यसभा में इस अध्यादेश का पारित होना संभव नहीं लगता है। देश का सर्वाधिक दुर्भाग्य यह है कि इस राष्ट्रीय हित के लिए प्रतिबद्ध इस अध्यादेश को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दल उथली राजनीति कर रहे हैं। जबकि यह अध्यादेश देश के विकास बनाम अधो संरचना की दृष्टि से रेल लाइन, स्कूल, अस्पताल, बिजली कारखानों, औद्योगिक प्रगति के लिए जरुरी है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस विधेयक को पारित करने के लिए कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों से राज्यसभा में अपना सहयोग देने का विधिवत आग्रह किया है। उन्होंने किसानों के हित की सुरक्षा गारण्टी देते हुए कहा है कि वे तथा उनकी सरकार किसानों के हितों की पूर्ण रक्षा करेगी। उन्होंने किसान वर्ग के हितों तथा स्वत्व को सुरक्षित रखने हेतु भूमि अधिग्रहण विधेयक में 9 संशोधन लोकसभा में पारित किये हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों से किसान हित के सुझाव तथा संशोधनों के लिए विपक्ष को आमंत्रित किया है लेकिन विपक्ष अपने संख्या बल का लाभ लेते हुए इस अध्यादेश को पारित करने के लिए राज्यसभा में अडंगा डाल रहा है। यह स्थिति उचित नहीं है सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई अब इस मुकाम तक जा पहुंची है कि वहां से विपक्ष की वापसी अब संभव नहीं दिखाई देती है। जबकि भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर देश में विरोध की आंधी तथा आन्दोलनात्मक स्थिति है। इसी तारतम्य में अण्णा हजारे 25 मार्च 2015 से वर्धा दिल्ली तक पद यात्रा करेंगे। यह उनकी तथाकथित यात्रा देश की राजधानी दिल्ली में 27 अप्रैल को समाप्त होगी। खेद का विषय यह है कि मोदी सरकार की सहयोगी शिवसेना भी अपने दुराग्रहों के कारण विरोध की मुद्रा में है। कुल मिलाकर किसानों को उकसाने तथा राजनैतिक लाभ लेने की तैयारी है।
भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर मोदी सरकार सजग एवं राष्ट्रीय राजनीति करने के पक्ष में दिखाई देती है। उन्होंने कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों से इस प्रकरण में राष्ट्रीय राजनीति करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किए गए 9 संसोधनों के अलावा इस भूमि अधिग्रहण विधेयक में जो किसान हितकारी संशोधन होंगे उन्हें हर हालत में शामिल किया जायेगा। यह सच है कि देश विकास की राह पर चलना चाहता है, परन्तु मोदी सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध प्रतीत होती है किसी भी स्थिति में किसान हितों की अवज्ञा नहीं होनी चाहिए।
इस विधेयक को पारित करने के लिए 20 मार्च 2015 की अवधि निर्धारित है। यह भूमि अधिग्रहण बिल देश के विकास के लिए अति अनिवार्य विकास की गंगा है। इस हेतु मोदी सरकार और उसके प्रधानमंत्री विपक्ष के साथ समन्वय तथा सहयोग की आकांक्षी है। सरकार ने विपक्ष की मंशा के अनुरूप इस अध्यादेश में आवश्यक संशोधन कर लिए हैं तथा वह विपक्ष द्वारा अनुशंसित किसान हितकारी संशोधन को स्वीकृत करने के लिए तैयार है परन्तु राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से कांग्रेस सहित सारे विपक्षी दल एक साथ ही त्रिया हठ और बाल हठ के शिकार हैं। इस दृष्टि से विपक्षी दलों को पलायन वादी बनाम मात्र विरोध के लिए विरोध करने की नीति अपनाना उचित नहीं कहा जा सकता है। इस विधेयक को पारित करवाने में तथा आवश्यक संशोधनों को लेकर आम सहमति बनाते हुए विपक्ष को सरकार को पूर्ण सहयोग देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो एक ओर विपक्ष की अडंगापूर्ण नीति से देश के विकास का एजेण्डा प्रभावित होगा तथा दूसरी ओर इससे देश में विपक्ष का दायित्व भी कलंकित होगा। आज के परिप्रेक्ष्य में विपक्ष के लिए अपनी नकारात्मकता से उबरना ही सही ढंग से राजधर्म का निर्वाह होगा।
इस भूमि अधिग्रहण बिल की महत्ता इस देश के लिए अधिक प्रभावी तथा अत्यावश्यक इसलिए बन गई है कि यह अध्यादेश आगामी दिनों में विकास का मेग्नाकोर्टा बनने वाला है। इस अध्यादेश के बल पर ही 21वीं सदी के भारत की विकास गाथा लिखी जानी है। इसलिए इस अध्यादेश के निर्माण में सत्तारूढ़ दल भाजपा तथा विपक्ष की सहभागिता भी आवश्यक हो गई है। देश यह विश्वास करता है कि इस अध्यादेश के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति बनेगी और अभी हाल में बीमा अध्यादेश 2015 को सत्ता पक्ष और विपक्ष ने आम सहमति से पारित कर जिस सदाशयता का परिचय दिया उसी प्रकार की सहमति तथा सर्वसम्मति राज्यसभा में इस अध्यादेश के मतदान के दौरान देखने को मिलेगी। अगर ऐसा हुआ तो यह सत्तापक्ष सहित विपक्ष की देश के लिए अनुपम सेवा होगी।