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कविता

गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या ….13 कामनाओं का त्याग


कामनाओं का त्याग

याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो।
दर्शक नहीं दृष्टा बनकर – जीवन की सब सामग्री भोगो ।।

कृष्ण बोले – अर्जुन ! आज तेरा परम सौभाग्य उदय हुआ।
योग में तेरी रूचि हुई, ऐसा सौभाग्य- किसे है प्राप्त हुआ।।
तू नहीं पथिक एक जीवन का – न जाने कितने युग बीते ।
कितने योद्धा यहां हार गए , न जाने कब कितने जीते।।
जो भी आया वह जाएगा यह सिद्धांत सदा अटल समझो ..
याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो ..

मिले ईश से फिर बिछुड़े – अब योग के लिए हैं लालायित।
अनवरत चला आता यही क्रम ,हैं युगों से इससे उत्पीड़ित।।
कहीं गिरे उठे- कहीं बैठ गए- कहीं दौड़ लगा दी मिलने को,
कहीं उदास हुए मन में भारी, कहीं तैयार हुए थे खिलने को।।
जब संसार असार लगे दीखने – सौभाग्य इसे अपना समझो,
याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो …

पकड़ योग की सीढ़ी अर्जुन ! लक्ष्य बना सदा आगे बढ़ना।
जो योग मार्ग को अपना लेते – पड़ता नहीं उन्हें भटकना ।।
तू तो जन्मा क्षत्रिय कुल में कुछ योग में अपना ध्यान लगा।
उस परमतत्व को पा ले अर्जुन ! उसको ही अपना गेह बता।।
जो नहीं बना सकते अपना – उन्हें सदा अभागा ही समझो..
याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो …

योग है एकमात्र धर्म मानव का, सब उन्नतियों का है मूल।
जो भी इस को अपना लेता , सर्वत्र बिखरते उस पर फूल।।
इसी धर्म को अपना ले तू भी कल्याण यदि जग में चाहता।
श्रुति और स्मृति गातीं – गायी हर युग में ऋषियों ने गाथा।।
हे पार्थ ! आत्मा को आत्मा से संतुष्ट अपनी तुम करो …
याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो..

जुड़ जाओ ! अपने आपसे , स्थितप्रज्ञता कही जाती यही।
विषय भोग से हटाना स्वयं को बुद्धिमत्ता कही जाती यही।।
यदि विजय चाहते कामना पर तो अध्यात्म से जुड़ जाइए ।
वश में करो निज प्राण को, समाधि का अनंत सुख पाइए ।।
जीवन के इस गूढ़ रहस्य को बड़ी गहराई से सीखो समझो..
याचक नहीं उपासक बनकर जीवन को तुम जीना सीखो…

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