सर्वोच्च न्यायालय ने जाटों के आरक्षण को रद्द कर दिया है। पिछली सरकार ने जाटों की गिनती‘अन्य पिछड़ों’ में करके उन्हें आरक्षण दिया था। इस आरक्षण की वजह से पिछड़ों को मिलने वाले कुल 27 प्रतिशत आरक्षण में सेंध लग रही थी। वे नाराज हो रहे थे लेकिन कांग्रेस सरकार ने आम चुनाव के पहले नौ राज्यों में जाटों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दे दिया। इसका मकसद सिर्फ एक था− जाटों के थोक वोट प्राप्त करना। अपने स्वार्थ के लिए नेता लोग अपने देश को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं, इसका उदाहरण है, यह कदम।
हमारा समाज टुकड़ों में बंट जाए और विभिन्न समुदायों में ईर्ष्या−द्वेष फैल जाए, इसकी चिंता उन्हें नहीं है। जाट लोग भी चिंता क्यों करते? उन्हें जब सेंत−मेंत में कोई चीज़ मिल रही है तो वे मना क्यों करें। हां, कई चौधरियों को मैंने यह कहते भी सुना है कि ‘हमें कौन… पिछड़ा कहे हैं?’वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आर्थिक और सामाजिक मापदंडों के अनुसार जाटों को पिछड़ा नहीं माना जा सकता। पुराने अवैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर किसी भी समुदाय को आरक्षण देना उचित नहीं है।
मेरा निवेदन है कि जातीय आधार पर आरक्षण देना आरक्षण का मजाक है। आरक्षण का इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि आप आरक्षण देते समय अपनी आंख मींच लें। जिसे आरक्षण दे रहे हैं, उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन किए बिना ही उसे थोक में आरक्षण दे दें। वे मनुष्य हैं या जानवर हैं? जैसे जानवरों को थोक में हांका जाता है, वैसे ही आप थोक में रेवडि़यां बांट रहे हैं। मुलायमसिंह या लालू क्या पिछड़े हैं? मायावती क्या दलित हैं? मायावती तो बड़े से बड़े लोगों को दलती रही है।
ऐसे लोगों को या उनके रिश्तेदारों को आरक्षण देने की तुक क्या है? आरक्षण का आधार जाति को इसलिए बनाया गया था कि उस समय ठीक−ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। अब तो हर आदमी के बारे में आवश्यक जानकारी उपलब्ध है। इसीलिए थोक में आरक्षण तत्काल खत्म किया जाना चाहिए। सिर्फ शिक्षा में आरक्षण दिया जाना चाहिए और सिर्फ उन्हें ही दिया जाना चाहिए, जो गरीब हों, असमर्थ हों और सचमुच पिछड़े हों। जन्म से नहीं, कर्म से।