#जब_मोरारजी_देसाई की सरकार में धर्मांतरण के विरुद्ध बिल पेश हुआ तो #मदर_टेरेसा ने प्रधान मंत्री को पत्र लिख कर कहाँ था की ईसाई समाज सभी समाज सेवा की गतिविधिया जैसे की शिक्षा, रोजगार, अनाथालय आदि को बंद कर देगा अगर उन्हें अपने ईसाई मत का प्रचार करने से रोका जायेगा। तब प्रधान मंत्री देसाई ने कहा था इसका अर्थ क्या यह समझा जाये की ईसाईयों द्वारा की जा रही समाज सेवा एक दिखावा मात्र हैं और उनका असली प्रयोजन तो धर्मान्तरण हैं ।।
यही मदर टेरेसा दिल्ली में दलित ईसाईयों के लिए आरक्षण की हिमायत करने के लिए धरने पर बैठी थी।
#महात्मा_गाँधी ने एक बार कहा था कि —
“यदि ईसाई मिशनरी स्वयं को मानवीय कार्य एवं गरीबो को भौतिक सेवाएँ देने में लगाने के स्थान पर चिकित्सा ,सहायता ,शिक्षा का उपयोग धर्मान्तरण के लिए करती है ,तो मै निश्चित रूप से उन्हें देश छोड़ कर जाने के लिए कहूँगा ।प्रत्येक राष्ट्र का धर्म उस राष्ट्र के लिए उपयुक्त होता है ,भारत का भी धर्म निश्चित रूप से भारत के लोगो के लिए उपयुक्त है ।हमें धर्मान्तरण करने वाली आध्यात्मिकता की आवश्यकता नहीं ।”
#ईसाई_मिशनरियो द्वारा धर्मान्तरण स्वैच्छिक नहीं होता ।व्यक्ति को बहका कर ,अथवा लालच देकर ,या उसकी मजबूरियों को सहला कर किया जाता है ,आखिरी रास्ता बलात् धर्मान्तरण का होता है । एवरेट कैरल ने इस सम्बन्ध में संकेत दिया था कि”यदि किसी व्यक्ति को ईसाई धर्म की शिक्षा देना चाहे ,तो सर्व प्रथम हमें यह देखना चाहिए ,कि उसकी आवश्यकतायेँ क्या हो सकती है ?और तब उसे ईसा के सम्बन्ध में बतावें,
“#मिशनरी अस्पतालों में पीड़ित रोगी को मर्फिया का इंजेक्शन यह कह कर दिया जाता है, कि हे प्रभु ईसा इसे ठीक कर दो । चूँकि मार्फिया से दर्द की अनुभुति समाप्त हो जाती है ,अत: रोगी स्वयं को स्वस्थ समझता है । वह अज्ञानी धर्मांध समझता है की उसे प्रभु ईसू ने ठीक किया ।
धर्मांतरण_को_रोकने के लिए 19फरवरी 1960 में प्रकाश वीर शास्त्री ने और 21नवम्बर 1979श्री ओम प्रकाश त्यागी ने लोक सभा में धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बंधित विशेष विधेयक प्रस्तुत किया ,जिसका समर्थन भी जोर दार हुआ और विरोध भी ! आश्चर्य होता है कि ओम प्रकाश त्यागी के विधेयक का विरोध करने वालो में शांति के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित करुणा की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा भी थी ।
धर्म_के_बिकने के साथ ही मनुष्य की सांस्कृतिक और नैतिक आख्या भी बिक जाती है ,और फिर ये बिका हुआ व्यक्ति यदि एक दिन अपनी जन्म भूमि ,अपना राष्ट्र भी बेचने को तैयार हो जाये तो क्या आश्चर्य । क्योकि फिर बेचना और बिकना ही उसका सहज धर्म बन जाता है !ईसाई मिशनरियाँ इसी लिए भारत की गरीबी और जनता की बदअकली का लाभ उठाती है ।।
जनजातियाँ, जंगली जातियों की अविकसित अर्धविकसित , चेतना उनके इस कार्य में अधिक उपयुक्त होती सिद्ध होती है आदिवासियों के धर्म परिवर्तन पर ,वैरियर एलविन ने लिखा है, कि ‘यदि आदिवासी ईसाई बन जाता है तो ,सामान्य रूप से वह उन समस्त नैतिक व् सामाजिक मुक्त मनोरंजन से वंचित हो जाता है ,जिसका प्रारंभ से उपयोग करते रहने के कारण वह आदी हो चुका होता है ,बहुत बार उसमे नैतिक और आर्थिक रूप से गिरावट भी आ जाती है । ‘ ईसाई मिशनरियाँ भारतीय धर्म ,भारतीय संस्कृति और भारतीय मानसिकता से किस सीमा तक घृणा कर सकती है इसका एक इतिहास रहा है ,।।
1898 में गोवा के गवर्नर अल्बुर्क ने हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ जलाने का आदेश दिया था,1946 में शासको ने फरमान जारी किया की गोवा प्रदेश में जो मंदिर है,उसे तोड़ दो ,हिन्दुओ के उत्सव बंद करो और ब्राहमणों को देश से बाहर निकाल दो । 1960 में केरल का सबरी मलाई मंदिर जलाने और भगवान् की मूर्ति तोड़ने के पीछे भी ईसाई मिशनरियो की घृणित मानसिकता थी ।
आजादी_के_बाद देश के इंग्लिश स्कूलों में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से छात्रो का ब्रेन वाश करने की मुहिम चलाई जा रही है । अधिकांश स्कूलो में हिंदी में अनौपचारिक बातचीत करने पर ,हाथ में मेहँदी लगाने जैसे विशुद्ध भारतीय परम्परा पर दण्ड देने की व्यवस्था है । इन मिशनरी स्कूलो में पढने वाले छात्र ऐसे बहुत से उदहारण रोज ही अपने घरो में बताते भी होंगे ,और भुगतते भी होंगे । सरकार को धर्मान्तरण निरोधक सम्बन्धी ठोस व कठोर कानून बनाने चाहिए ।।
और गरीब व् अति पिछड़े लोगो को सामान्य जीवन निर्वाह की अधिकतम सुविधाएँ देकर ,उन्हें शिक्षित और जागरूक बनाना चाहिए । इस दिशा में समाज सेवी संस्थाएँ संस्कृतिक गति विधि केंद्र व् प्रचार प्रसार माध्यम इन्टर नेट का अपने पक्षमें प्रयोग सार्थक और प्रसांगिक सिद्ध हो सकता है ।इसके अतिरिक्त बुद्धिजीवी वर्ग रुढियों के अँधेरे में खोई हुई स्वस्थ भारतीय पर म्पराओ के ध्वंसावशेष को पुनर्जीवन देकर उनकी सामयिक आवश्यकताओ को जन मंच पर प्रस्तुत करे ।घोषित करे ।
विशेष —
भारत मे सेंट थॉमस द्वारा धर्मान्तरित किए गए लोग खुद को नम्बूदरी ब्राह्मण बताते हैं और इसीलिए ये भारत के ईसाईयों में सबसे उच्च होते हैं। इनके ईसाईयत वर्ग को Syrian_Christian कहा जाता है, ये अन्य जातियों के ईसाईयों के स्पर्श होने पर Holy Bath लेते हैं, ये शादियां भी सिर्फ खुद की जाति में ही करते हैं।
इसी तरह से केरल में Latin_Christian भी खुद को ऊँची जाति का मानते हैं। इसी तरह गोवा में पुर्तगालियों ने जब जबरन धर्मान्तरण किया तो वाहन के ब्राह्मण धर्मान्तरित होकर Bamonns बन गए, वहां के Vaishya_Vanis धर्मान्तरित होकर Chardos बन गए उनसे नीचा दर्जा Gauddos को दिया गया। शुद्र अर्थात तथाकथित दलित को जातिविहीन ईसाईयत में धर्मान्तरित करने के बाद Sudir नाम दिया गया और शेष बचे हुए लोग ईसाई धर्मान्तरण के बाद भी चमार और महार ही कहलाए। Pastor के पद पर Gaonkar ईसाई लोगों का ही दबदबा है ।।
तमिलनाडु का तो हाल इससे भी बुरा है वहां के नाडर समुदाय के लोग संख्याबल में तो तमिलनाडु के ईसाईयों का केवल 3 प्रतिशत हैं लेकिन चर्च पर पूरा नियंत्रण उनका ही रहता है। भारत के ईसाईयों में 80% दलित हैं लेकिन 156 कैथोलिक Bishop में केवल 6 बिशप ही दलित हैं।अंतरजातीय विवाह तो दूर की बात है इनमें तो दलितोँ को उच्च जातीय ईसाईयों के कब्रिस्तान में शव भी नहीं दफ़नाने देते। रोमन कैथोलिक चर्च में तो बैठने की सीट से लेकर Chalice(प्याला)भी अलग होता है, बल्कि कुछ जगह तो चर्च ही अलग होते हैं।
दलित ईसाईयों के हजारों लोग तो वापिस हिन्दू धर्म में आ रहे हैं उनका कहना है कि “इतना भेदभाव तो हिंदुओं में ही नहीं होता और कम से कम वहां आरक्षण तो मिलता है।”
सोशल मीडिया से साभार
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