आम आदमी पार्टी, जनता का विश्वास और संगरूर की घटना
राकेश सैन
सौ दिन पहले ‘आम आदमी पार्टी’ ने पंजाब चुनाव में रिकार्ड जीत हासिल की थी। खासकर संगरूर, जो पंजाब के मुख्यमन्त्री भगवंत मान का क्षेत्र है, वहां के नौ विधानसभा क्षेत्रों में ‘‘आम आदमी पार्टी’’ को चार लाख से अधिक वोटों की लीड मिली थी और अब लोकसभा उपचुनावों में पार्टी हार गई है।
पंजाब में संगरूर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए हुए उप-चुनाव के दौरान राज्य में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा है। यहां अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने 253154, आम आदमी पार्टी के गुरमेल सिंह घराचों ने 247332, कांग्रेस के दलबीर सिंह गोल्डी ने 79668, भाजपा के केवल सिंह ढिल्लों ने 66298 और शिरोमणि अकाली दल (बादल) की कमलदीप कौर राजोआणा ने 44428 मत प्राप्त किए हैं।
किसी को समाचार सामान्य लग सकता है परन्तु इसके सन्देश गहन हैं। संगरूर कोई सामान्य निर्वाचन क्षेत्र नहीं बल्कि इसको आम आदमी पार्टी की राजधानी कहा जाता है और यह मुख्यमंत्री भगवंत मान का गृहक्षेत्र है जहां से वे 2014 व 2019 में देश में चली भाजपा लहर के बावजूद पहले सवा दो लाख और दूसरी बार एक लाख से अधिक मतों से जीते। केवल इतना ही नहीं इसी साल मार्च में हुए विधानसभा चुनावों में इसके अन्तर्गत आने वाले 9 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी को कुल मिला कर चार लाख से अधिक मतों की लीड मिली थी परन्तु केवल तीन महीनों में ही अरविन्द केजरीवाल के स्वामित्व वाली पार्टी तीन-तेरह होते दिखने लगी है।
पंजाब में ‘आम आदमी पार्टी’ की उतर रही पॉलिश का अनुमान इन आंकड़ों को जानकर लगाया जा सकता है। केवल सौ दिन पहले ‘आम आदमी पार्टी’ ने पंजाब विधानसभा चुनाव में रिकार्ड जीत हासिल की थी। खासकर संगरूर, जो पंजाब के मुख्यमन्त्री भगवंत मान का क्षेत्र है, वहां के नौ विधानसभा क्षेत्रों में ‘‘आम आदमी पार्टी’’ को चार लाख से अधिक वोटों की लीड मिली थी और अब लोकसभा उपचुनावों में पार्टी हार गई है। जमीनी स्तर पर परिस्थितियां ऐसे बदलीं कि सुनाम विधानसभा क्षेत्र जहां से आप के अमन अरोड़ा 75 हजार मतों से जीते थे, वहां अब ‘आम आदमी पार्टी’ को केवल 1483 मतों की लीड मिली। संगरूर लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें संगरूर शहरी, दिबड़ा, बरनाला, भदौड़, मलेरकोटला, धूरी, महिलकलां, लहरागागा और सुनाम शामिल हैं। ये क्षेत्र ‘आम आदमी पार्टी’ का गढ़ माने जाते हैं। धूरी तो भगवंत मान का खुद का विधानसभा क्षेत्र है, जहां से वह 58 हजार 206 मतों से जीतकर मुख्यमन्त्री बने लेकिन अब वहां ‘‘आम आदमी पार्टी’’ की लीड 12 हजार रह गई है।
हरपाल चीमा दिड़बा विधानसभा हलका का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं और इस क्षेत्र से 7553 मतों से ‘आम आदमी पार्टी’ उम्मीदवार गुरमेल सिंह हार गए। हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में चीमा को 82630 वोट मिले, जबकि शिअद (ब) के गुलजार सिंह को 31975 वोट मिले। यानी चीमा करीब 51 हजार मतों से विधायक बने थे और उनको वित्तमंत्री बनाया गया लेकिन अब उसी दिड़बा में ‘आम आदमी पार्टी’ 7553 मतों से हार गई है और सिमरनजीत सिंह मान को मुख्य लीड इसी क्षेत्र से मिली है। वहीं पंजाब के शिक्षा मन्त्री मीत हेयर के निर्वाचन क्षेत्र बरनाला में भी ‘आम आदमी पार्टी’ की हवा निकल गई। 100 दिन पहले चुनाव में मीत हेयर ने बरनाला से शानदार जीत हासिल की थी। वह बरनाला से दूसरी बार विधायक बने थे। हेयर ने अपने प्रतिद्वंद्वी शिअद-बसपा के उम्मीदवार कुलवंत सिंह कीतू को 37622 मतों के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी। लेकिन अब 100 दिन बाद बरनाला में उलटफेर हो गया। यहां से ‘आम आदमी पार्टी’ के उम्मीदार गुरमेल सिंह 2295 वोट से हार गए।
पंजाब के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मलेरकोटला में भी ‘आम आदमी पार्टी’ की हवा बुरी तरह से निकली है। यहां से सिमरनजीत सिंह मान को 8101 मतों की लीड हासिल हुई है। भदौड़ विधानसभा क्षेत्र में ‘आम आदमी पार्टी’ उम्मीदवार 7125 मतों से हारे हैं। पंजाब सरकार में भगवंत मान के बाद अगर कोई शक्तिशाली मंत्री है तो वह शिक्षा व खेल मंत्री मीत हेयर और वित्त मंत्री हरपाल चीमा हैं। दोनों अरविंद केजरीवाल के काफी निकट हैं। मीत हेयर युवा ‘आम आदमी पार्टी’ के प्रदेश प्रधान रह चुके हैं जबकि हरपाल चीमा कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष थे।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पंजाब में लोगों ने ‘आम आदमी पार्टी’ को उसकी कोई नीति या नेता के आकर्षण में आकर नहीं बल्कि कांग्रेस और अकाली दल के विकल्प के रूप में मौका दिया था। ‘आम आदमी पार्टी’ ने नई तरह की राजनीति व कार्यप्रणाली के नाम पर मत हासिल किए थे परन्तु सत्ता में आते ही यह नई तरह की पार्टी और भी ज्यादा दकियानूसी मार्ग पर चलती दिखने लगी। यूं तो नवजात ‘आम आदमी पार्टी’ को हुए पक्षाघात के अनेक कारण गिनाए जा सकते हैं परन्तु सबसे बड़ा कारण भगवन्त सिंह मान की छवि ‘रिमोट कण्ट्रोल मुख्यमन्त्री’ बनना रही जो दिल्ली की टीम के इशारों पर चलते हैं। पंजाब के लोग भगवन्त मान को दूसरा मनमोहन सिंह कहने लगे हैं जिनकी छवि भी कांग्रेस हाईकमान के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते कठपुतली प्रधानमन्त्री की बन गई थी। ‘आम आदमी पार्टी’ के सर्वेसर्वा केजरीवाल ने पंजाब सरकार का गठन होते ही बिना राज्य सरकार की अनुमति व राज्य के नेताओं की अनुपस्थिति में पंजाब के उच्चाधिकारियों की बैठक बुला ली। पार्टी ने इस पर खूब लीपापोती की परन्तु इस घटना ने भगवंत मान की छवि को बड़ी ठेस पहुंचाई। अभी संगरूर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उपचुनाव में भी देखने को मिला कि प्रचार के दौरान निकाले गए रोड शो के दौरान जहां केजरीवाल सनरूफ कार से प्रचार करते रहे जबकि भगवन्त मान खिड़की से लटकते नजर आए। इससे लोगों में सन्देश गया कि केजरीवाल के सामने मान का ‘मान’ गौण हैं।
‘आम आदमी पार्टी’ पंजाब में नशा और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुद्दों पर वोट मांग कर सत्ता में आई परन्तु सरकार का गठन होते ही इन गम्भीर मुद्दों को मजाक में लिया जाने लगा। पंजाब सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हैल्पलाइन नम्बर जारी करके ही दावा करना शुरू कर दिया कि राज्य भ्रष्टाचार मुक्त हो चुका है। मुख्यमन्त्री ने अपने ही स्वास्थ्य मन्त्री विजय सिंगला को भ्रष्टाचार के आरोप में खुद ही निकालने का दावा कर वाहवाही लूटने का प्रयास किया परन्तु बाद में पता चला कि अगर स्वास्थ्य मन्त्री की कथित भ्रष्टाचार की ऑडियो सार्वजनिक हो जाती तो पंजाब सरकार का स्वास्थ्य और भी खराब हो जाता। ऊपर से दिल्ली के स्वास्थ्य मन्त्री की प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की गई गिरफ्तारी ने ‘आम आदमी पार्टी’ के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की धज्जियां उधेड़ कर रख दीं। नशों की हालत यह है कि ‘उड़ता पंजाब’ अब लोटपोट होता भी दिखने लगा है, ओवरडोज से युवाओं की मौत का क्रम बढ़ता जा रहा है। सरकार नई आबकारी नीति ला कर राज्य में सस्ती शराब देने की बातें करने लगी है।
पंजाब में ‘आम आदमी पार्टी’ सरकार को सबसे बड़ी परेशानी कानून व्यवस्था के मोर्चे पर झेलनी पड़ी है। राज्य में गुण्डा तत्वों की सक्रियता के बावजूद कुछ प्रमुख लोगों की सुरक्षा वापिस लेने और इसका प्रचार करने की गलती ने विवादित गायक सिद्धू मूसेवाला सहित कईयों की जान ले ली। चाहे राज्य में गुण्डा तत्वों की सक्रियता की फेरहिस्त काफी लम्बी है परन्तु मूसेवाला की हत्या इसका प्रतीक बन गई और ‘आम आदमी पार्टी’ की लोकप्रियता सोडे की बोतल में आया उफान बन कर अब उतरती दिखने लगी है।
आर्थिक मोर्चे पर भी ‘आम आदमी पार्टी’ का प्रदर्शन फिसड्डी रहा, क्योंकि दूसरे दलों की सरकारों पर पंजाब को कर्जदार करने के आरोप लगाने वाली झाड़ू वाली पार्टी की सरकार राज्य में तीन महीनों में 9000 करोड़ का नया ऋण ले चुकी है। राज्य में अवैध खनन का काम कम होने की बजाय बढ़ा है, रेत-बजरी के दाम पांच गुणा तक बढ़ गए हैं। इससे निर्माण उद्योग पूरी तरह प्रभावित हुआ है। रोचक बात तो यह है कि गम्भीर आर्थिक संकट के बावजूद ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा में अपने प्रचार-प्रसार पर 24.4 करोड़ रुपये पानी की तरह बहा चुकी है। भगवन्त मान सरकार व उनके मन्त्रियों की कार्यशैली बताती है कि नई तरह की राजनीति करने वाली ‘आम आदमी पार्टी’ असल में उस कांग्रेस संस्कृति की प्रतीक है जिसे पिछले आठ सालों से देश नकारता आ रहा है।
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