विदेशी आक्रमणकारियों से हिंदू राजाओं के संघर्ष की गौरवशाली कहानी

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डॉ. विवेक आर्य

स्लाम के पैगम्बर मोहम्मद की 632 ई में मृत्यु के उपरांत अरब की संगठित इस्लामिक सेना ने तत्कालीन समय मे सबसे ताकतवर मानी जाने वाली Byzantine एम्पायर के फिलिस्तीन और सीरिया को महज 6 माह के भीतर 636-637 A.D. तक फतह हासिल कर लिया था । उसके बाद पर्सिया के Sassanid Empire जिसकी ताकत के किस्से दुनिया भर मशहूर है , जो साइरस और डेरियस जैसे बेहद ताकतवर राजाओ के शासन कe कारण प्रसिद्ध हुआ करते था , परन्तु अरब की इस्लामिक सेना ने Sassanid Empire ( आज का इराक , ईरान और खुरासान) को भी 637 ई में परास्त कर दिया था ।
इस प्रकार कुछ ही वर्षो में पूरा पर्सियन एम्पायर नेस्तनाबूद हो गया । उसके बाद 643 ई में दुनिया की सबसे ताकतवर माने जा रही अरब खलीफा के अंडर में अरबी सेना ने भारतीय उपमहाद्वीप को जीतने का लक्ष्य रखा । यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य जोड़ना चाहूंगा अति महत्वपूर्ण है , कि उस समय तुर्किश भाषा बोलने वाले मंगोलिया ,बुखारा , ताशकन्द और समरकन्द को भी अरबी सेना ने 650 ई में फतह कर लिया था ।
बाइजेंटाइन एम्पायर के पश्चिम में इजिप्ट (मिश्र) भी 640 ई में मुस्लिम अरब द्वारा परास्त किया जा चुका था । अरब की सेना उत्तरी अफ्रीका से होते हुए इंदुलुसिया (स्पेन) में 709 ई में उसे भी फतह कर लिया था ।
एक इस्लामिक सेना की यह विजय कोई साधारण या आसान नही थी । एक बार पराजय के बाद ही विभिन्न पहचान , संस्कृति और भाषा वाली इन तुर्क , पारसी , सीरियन , बर्बर्स (अफ्रीकी जाती) कौम के लोग इस्लाम मे बहुत ही कम समय मे तलवार के दम पर मतांतरित कर दिए गए और उनकी परम्परा , संस्कृति और भाषा का अरबीकरण कर दिया गया ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसी इस्लामिक सेना ने भारत पर 69 वर्षो तक हमला किया और वे सीमा पार करने में भी असफल रहे । उसके बाद लगभग 300 सालो तक उन्हें भारत के उत्तर और पश्चिम के विभिन्न क्षेत्रों से जोरदार प्रतिरोध सहना पड़ा ।
सर्वप्रथम खलीफा उमर बिन खत्ताब के समय मे अरबो की समुद्री सेना ने महाराष्ट्र के समुद्र तट थाने और गुजरात के तट भरूच पर 634 – 644 ई तक हमला किया जिसका भारतीय सेना ने जबरदस्त प्रतिकार किया , अरबो को सिंध के देवल में भी इसी प्रतिकार का सामना करना पड़ा , जब अरब सेनापति Mughirah परास्त होकर युद्ध में मारा गया । इसके बाद खलीफा उमर बिन खत्ताब ने हिंदुस्तान के सिंध प्रांत के मकरान पर चढ़ाई करने के लिए दूसरी सेना भेजने का निर्णय लिया । लेकिन उसे इराक के गवर्नर का सुझाव दिया कि ,’उन्हें अब हिन्द पर चढ़ाई के विषय मे नही सोचना चाहिए’ ।
इसके उपरांत अरब के भीतर इस्लाम के अगले खलीफा हजरत उस्मान ने भी 646-656 ई तक इस सुझाव का पालन किया , और अपनी सेना को सिंध पर किसी भी तरह की जमीनी या समुद्री हमला करने की जहमत नहीं उठाई ।
इसके बाद अरबो के चौथे खलीफा और शियाओ के पहले इमाम हजरत अली ने भारत को फतह करने के लिए 660 ई में सेनाये भेजी परन्तु उनके सिंध पर भेजी गई सेना का भी भारतीय सेना ने किकान की जमीन पर वध किया , अंतत्वोगत्वा इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली भी हिन्द और सिंध की फतह की खबर सुने बिना ही मर गए ।
उसके बाद 661 – 680 ई तक अरब के अगले खलीफा हजरत माविया ने भी 6 बार सिंध पर जमीनी सेना भेजी । इन 6 युद्धों में भी अरबो को पराजय मिली , सिवाय 6 वे युद्ध के जिसमे भारत के सिंध प्रांत का मकरान का हिस्सा 680 ई में फतह कर लिया गया था ।
इसके बाद 28 वर्ष तक अरबो ने भारत पर हमला करने की कोई भी जहमत न उठा पाई ।
अब अरब अक्रांताओ ने भारत पर अगला हमला 708 ई में देबल में किया । परन्तु इसमें भी अरब कमांडर इन चीफ उबैदुल्लाह और बुदैल मारे गए और अरब सेना भाग खड़ी हुई ।
अगली बार जब हज्जाज बिन यूसुफ इराक का गवर्नर बना तो उसने खलीफा से हिंदुस्तान पर हमला करने की अनुमति मांगी , लेकिन खलीफा ने उसे लिखकर भेजा कि हमे हिन्द फतह करने की योजना छोड़ देनी चाहिए क्योंकि हमारी सेना कई बार उन पर चढ़ाई करती है , और प्रत्येक बार हमारी हार होती है जिसमे भारी संख्या में मुसलमान मारे जाते है , तो कृपया इस प्रकार के किसी भी योजना को अपने मन निकाल दो , लेकिन हज्जाज बड़ा ही अक्रामक साम्राज्यवादी मानसिकता का था । उसने 4 वर्षो तक एक मजबूत आर्मी को बनाने में लगाया , जो अब तक सिंध में भेजी गई सेनाओ से कहि ज्यादा ताकतवर थी ।
उसके बाद उसने अपने दामाद एव भतीजे मुहम्मद बिन कासिम को 712 ई में सिंध को फतह करने के लिए भेजा ।
हज्जाज ने कासिम से कहा कि, ‘मैं अल्लाह की कसम खा कर कह रहा हु की मैं मेरे इराकी साम्राज्य का सम्पूर्ण धन इस आक्रमण में लगाने को तैयार हूं ।”
इस प्रकार मुहम्मद बिन कासिम ने हिंदुस्तानी सेना के जोरदार प्रतिरोध के बाद भी सिंध को फतह कर लिया उसके बाद 713 ई तक उसने संपूर्ण सिंध सहित मुल्तान पर भी कब्जा कर लिया , लेकिन भारतीय सेना के प्रतिरोध के बाद 714 ई में वह भाग खड़ा हुआ , जिसके बाद खलीफा के पास देबल से Salt Sea तक का ही हिस्सा हाथ आया , जो कि महज सँकरी
समुद्री सीमा मात्र थी ।
इसके बाद अरबो ने पुनः सिंध पर हमला किया और पूर्व में राजपूताने से उज्जैन और दक्षिण में भरूच की ओर बढ़े । लेकिन उनकी सफलता अल्प सामयिक ही रही । उनके आक्रमण पर दक्षिणी गुजरात (Lat) के चालुक्य राजकुमार पुलकेशिन अवनीश जनस्राय ने प्रतिरोध किया ।
738 ई नवसारी शिलालेख के अनुसार पुलकेशिन ने उस अरब सेना को पराजित किया जिसने सिंध , कच्छ , सौराष्ट्र , कावाटोका , मौर्य और गुर्जर राजवंश को परास्त किया था ।
इसके बाद राजकुमार पुलकेशिन अपने गृह नगर नवसारी वापस लौटे , जहाँ उनका भव्य तरीके से स्वागत किया गया और उन्हें दक्षिणापथ साधिता (Solid Piller Of Dakshinapath) और अनिवर्तका निवार्त्तयी (the Repeller of the Unrepellable) की उपाधि से विभूषित किया गया ।
ग्वालियर शिलालेख के अनुसार , गुर्जर-प्रतिहार राजा भोज प्रथम को अरब इतिहासकार कीng of Jurg कहकर बुलाते है । अरब इतिहासकार लिखते है कि भारत के किसी भी राजा में कोई भी उतना बड़ा प्रतिद्वंदी नही था सिवाय भोज प्रथम के ।
इसके बाद अरब सेना उत्तर पश्चिम में पंजाब और कश्मीर की ओर भी बढ़े , लेकिन उन्हें वहां भी ललितादित्य मुक्तपीड़ा (724-760 ई ) द्वारा उन्हे परास्त होना पड़ा ।
इस युद्ध मे ललितादित्य का गठबंधन मध्य भारत के शासक यशोवर्मन के साथ था ।
10वीं शताब्दी के अरब इतिहासकार , लिखते है कि खलीफा के पास भारत में केवल दो स्थान है एक मुल्तान और दूसरा उनकी राजधानी मनसुरा , जिसके कारण प्रतिहार राजाओ ने अरब के मुल्तानी राजकुमार पर जोरदार हमला किया । इस प्रकार मुल्तान भी अरबो के हाथ से निकल गया , सिवाय एक मंदिर के ।
अरब इतिहासकार अल इसतिखारी ने 951 ई में लिखा , कि मुल्तान में एक मंदिर था जो हिन्दुओ के द्वारा अत्यंत सम्मानित और पूजित था जहां पर हर वर्ष भारत के विभिन्न हिस्सों से तीर्थयात्री पूजा उपासना के लिए आते थे । जब भारतीयों ने मुल्तान में अरबो पर हमला कर मूर्ति को मुक्त करा ना चाहा तो अरब आक्रमण करियो ने मूर्ति को तोड़ने व जलाने की धमकी दी । जिसके बाद हिन्दुस्तानियो ने उन्हें छोड़ दिया नही तो वे मुल्तान को तबाह कर देते ।
इस प्रकार 300 सालों के अनवरत आक्रमणों के बाद भी अरबो को केवल 2 स्थान ही प्राप्त हुए एक मुल्तान दूसरा मनसेरा , वह भी अरबो के मजहबी बुतशिकन राजनीति के कारण न कि युद्ध के ।
यहाँ सभी को एक बात को अपने मन मे अवश्य रखना चाहिए कि यह वो समय था जब अरब खिलाफत एम्पायर दुनिया की सबसे ताकतवर और विशाल थी , जिसने दुनिया की कई बड़ी ताकतवर साम्राज्यों को धूल में मिलाकर विश्व भूगोल से समूल नेस्तनाबूद कर दिया था, अर्थात् उसके बाद दुबारा उन स्थानों पर रहने वाले लोग अपने पुराने मजहब एव संस्कृति को नही लौट पाए , आज की भाषा मे कहूँ तो वहां सदा के लिए Complete Arab Hagemenoy स्थापित हो गई ।
वही दूसरी ओर विशाल ताकतवर अरब खिलाफ़ती सेना भारत के जिन सिंध और कोस्टल (समुद्र तटीय) राजाओ से लड़ रहे थे वे तो अरबो की विशालता के सामने बेहद बौने थे ।
इस तरह सिंध , पंजाब जैसे छोटे राज्यो के जिन भारतीय हिन्दू राजाओ ने जिस अलेक्जेंडर को धूल में मिलाकर वापस यूनान भेजा था , वह कथा भी अब पुरानी हो गई ।और यह गाथा आज एक बार फिर इस आर्यावर्त के इतिहास में अमर हो गई ।
Ref –
(1) Heroic Hindu Resistance
to Muslim Invaders
(636 AD to 1206 AD) by Sitaram Goel
(2) Ram Gopal Misra, Indian Resistance to Early Muslim Invaders up to 1206 A.D.

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