रूढ़ीवादी परंपराओं को तोड़ हरिजनों को साथ लेकर चलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गांव छांयसा के लोगों ने
(यह फोटो प्रतीकात्मक रूप में गूगल से लेकर साभार प्रस्तुत किया गया है)
दादरी । ( संवाददाता ) यहां स्थित गांव छांयसा में एक विशेष बैठक में गांव के सभी संभ्रांत लोगों ने उस समय ऐतिहासिक निर्णय लिया जब हरिजन भाइयों को भी साथ लेकर चलने और मृत्यु भोज या सहभोज में उनके लिए एक साथ व्यवस्था करने पर पूर्ण सहमति व्यक्त की। इस संबंध में गांव की एक आम बैठक हुई। जिसके बारे में उगता भारत को विशेष जानकारी देते हुए राकेश यादव ने बताया कि गांव के सभी लोगों ने एक स्वर से इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि हिंदू समाज के अभिन्न भाग हरिजन भाइयों को भी एक साथ एक ही पंडाल में भोजन करा कर साथ रखने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
गांव समाज के मुखिया लोगों ने इस ऐतिहासिक निर्णय को लेते हुए कहा कि पुराने जमाने की बातों को छोड़कर आधुनिक समय में हमें खुले दिल से विचार करना चाहिए। इसलिए अपने हिंदू वैदिक समाज के अभिन्न अंग हरिजन भाइयों को साथ लेकर चलने में कोई बुराई नहीं है। गांव के लोगों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हिंदू समाज की एक शाखा के रूप में हरिजन भाई सदा हिंदू समाज के लिए अपना योगदान देते रहे हैं। ऐसे में किसी भी सभ्य समाज के लिए यह उचित नहीं है कि कि अपने ही भाइयों को उनके सामाजिक अधिकारों से वंचित किया जाए।
यद्यपि इस संबंध में कानून बहुत पहले से कार्य कर रहा है परंतु इसके उपरांत भी गांव देहात में बहुत से लोग अभी भी अपने हरिजन भाइयों के साथ भेदभाव करते हैं। सचमुच गांव छांयसा के लोगों का यह ऐतिहासिक निर्णय है। जिन्होंने इस प्रकार के सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने की सौगंध उठाई है।
श्री यादव ने बताया कि हमारे गांव की यह विशेष परंपरा रही है कि यहां के सब लोग मिलकर निर्णय लेते हैं और उस निर्णय को सामूहिक रूप से लागू करते हैं। इसलिए यदि ऐसा निर्णय ले लिया गया है तो इसे सभी लोग सहर्ष अपनाएंगे। उन्होंने कहा कि हरिजन समाज के लोगों को गले लगाना पूरे हिंदू समाज के लिए आवश्यक है।
हिंदू समाज को समाप्त करने की राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें की जा रही हैं। इन सब का सामना करने के लिए हम सबको सामूहिक प्रयास करने होंगे और अपनी सामाजिक राष्ट्रीय एकता का परिचय देना होगा। इसलिए दकियानूसी की रूढ़िवादी बातों से बाहर निकलकर बड़ी सोच दिखाकर काम करने की आवश्यकता है। देश की तरक्की में सभी का योगदान तभी सुनिश्चित हो सकता है जब देश के सभी वर्ग के लोग अपने मौलिक सामाजिक अधिकारों का स्वाभाविक रूप से उपयोग करने वाले हो।