व्यक्ति का चिन्तन उसे,
देता है व्यक्तित्व ।
चिन्तन आला दर्जे का,
ऊँचा रखे अस्तित्व॥1721॥
चिन्तन जैसा होत है,
वैसा हो व्यक्तित्व।
सुई संग धागा चले,
वृत्ति संग के कृतित्त्व ॥1723॥
चिन्तन मति बिगारिये,
चिन्तन है बुनियाद्।
ऊँचे चिन्तन से उठै,
नीचे से बर्बाद॥1723॥
चिन्तन निर्मल राखिए,
प्रभु की पहली पसन्द।
निर्मल चिन्तन से मिले,
जग में सच्चिदानन्द॥1724॥
मन में उठते हैं कभी,
आवेगी तूफ़ान ।
मौन रहें चिन्तन करें,
समझदार इंसान॥1725॥
मनुआ होय अकाम तो,
रहते नहीं विषाद।
कृपा-कवच रक्षा करें,
करो प्रभु को याद॥1726॥
विविधा:-
बहुत हुआ अनुभव पका,
वाणी हो गई मौन।
मैं अब मैं से पूछता,
क्यों आया तू कौन ?॥1727॥
ओ३म्- नाम में मिठास है,
और अद्भुत आनन्द।
ध्यान लगा उस ब्रह्म में,
मिलेगा परमानन्द॥1728॥
मानस में उठती रहें,
अच्छी – बुरी तरंग।
जैसी भेजो लौटें वही,
ज्यों चिट्ठी बैरंग॥1729॥
मन बुद्धि और इन्द्रियाँ,
पकड़ न उसको पाय।
इसलिये मेरा प्रभु,
अतीन्द्रिय कहलाय॥1730॥
ईश्वर से मांगो सदा,
भक्ति का भण्डार।
घाटे का सौदा घना,
जो मांगे संसार॥1731॥
आर्जवता घटती गई,
ज्यों आयु बढ़ती जाय।
ये तो दौलत दिव्य थी,
हरि को दे रिझाय॥1732॥
साहस के संदर्भ में:-
साहस देवी सम्पदा,
बिरला पावै कोय।
पराक्रम का स्रोत है,
महान् – कार्य होय॥1733॥
अदने से इंसान को,
साहस श्रेष्ठ बनाय।
व्योम सिन्धु पर्वत सभी,
अपने राज़ बताय॥1734॥
साहस का इम्तहान ले,
जीवन में संघर्ष।
जो साहस से काम ले,
पाता अतुलित हर्ष॥1735॥
साहस को मत छोड़ना,
ये जीवन-पतवार।
साहसी लोगों ने किया,
भव – बाधा को पार॥1736॥
साहस से तू काम ले,
जब विपदा आ जाय।
जो साहस के हों धनी,
ईश्वर करे सहाय॥1737॥
मांगे भीख तो मिल सके,
मिलै नहीं सम्मान ।
हुनरमन्द को ही मिले,
दुनियां में सम्मान॥1738॥
मालामाल से श्रेष्ठ है,
व्यक्ति हो निहाल।
ऐसा धन देना प्रभु,
सदा रहूँ खुशहाल॥1739॥
क्रमशः