वैदिक सम्पत्ति तृतीय खण्ड अध्याय -ईसाई और आर्यशास्त्र

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गतांक से आगे…

इस तरह से उस नवीन शिक्षक के द्वारा शिक्षा दिलाकर संसार को ईसाई धर्म के अनुकूल बनाने और सब धर्मों में ईसाइयत का शासन जमाने का उत्तम साधन किया गया । परन्तु पाप की नाव बहुत दिन तक नहीं चलती । भूतप्रेत दिखलानेवाले यंत्रों का भण्डाफोड़ खुद उसी आर्टिस्ट ने कर दिया , जो उन यंत्रों को बनाया करता था और इस सारी हकीकत को यन्त्रों के फोटो सहित पियसँन्स मेगेजीन ने छाप दिया है , जो सबके सामने है । इसी तरह एफ ० टी ० ब्रूक्स ने Theosophical Bogyism नामी पुस्तक में इनके भीतरी अदृश्य प्लानों ( inner circle ) की पोल खोल दी है । नये संसार शिक्षक की उत्पत्ति और अनेकों ऐसी ही फरेबबाजियों से आरी आकर बाबू भगवानदास आदि विद्वानों ने थियोसोफीकल सोसाइटी से उपेक्षा कर लिया । फल यह हुआ कि थियोसोफी की पोल खुल गई और उसकी धार्मिक स्कीम एक प्रकार से गिर गई और कुछ दिन के लिए एनी वीसेन्ट का रङ्ग फीका पड़ गया – उसकी भद्द हो गई ।
धर्मप्रचार का बनाया खेल बिगड़ते देखकर उन्होंने दूसरा प्रपञ्च शुरू किया और विद्याप्रचार के काम में सर गर्मी दिखलाने लगीं , तथा कई एक नये कालेज खोल दिये । उस समय ऐसा मालूम होता था कि , वे हिन्दोस्थान भर की शिक्षा का भार अपने हाथ में ले लेंगी । शिक्षाप्रचार का काम हाथ में लेने के दो कारण थे । एक तो शिक्षा के साथ-साथ गुप्त रीति से ईसाई सिद्धांतों का सिखलाना , दूसरे अखण्ड ब्रह्मचर्य से विद्यार्थियों को उदासीन बनाना । जहाँ देश के हितचिन्तक गुरुकुल ऋषिकुल आदि खोलकर अखण्ड ब्रह्मचर्य का प्रचार करते थे , वहाँ ठीक इसके विरुद्ध इनके वहाँ इस प्रकार की शिक्षा होती थी । इस प्रचार का यही उद्देश्य होगा कि जितने लड़के ब्रह्मचारी हों कम से कम उतने ही लड़के ब्रह्मचर्य से उदासीन बना दिये जायँ , जिससे कभी भी यह जाति अँगरेजों के मुकाबिले में न तो पढ़ लिख सके और न शौर्य , तेज , बल और पराक्रम आदि धारण कर सके । सारांश यह कि , इस प्रकार की शिक्षा एनी बीसेन्ट के सहायक महाशय लेडबिटर के द्वारा जारी कराई गई । परन्तु भाग्य से यह सारा भेद प्रकट हो गया और इसके प्रकट होते ही सारे देश में इसी की चर्चा होने लगी और टीकाटिप्परिणयों से प्रत्येक जमात उपेक्षा दिखलाने लगी । लोगों ने अपने बच्चों को स्कूलों से उठाना शुरू कर दिया और देश में एनी बीसेन्ट की बुरी तरह से भद्द हो गई । स्कूलों और कालेजों से उनका सम्बन्ध छूट गया और उनकी यह वार भी खाली गई । धर्मप्रचार और विद्याप्रचार के द्वारा वे ईसाई धर्म और अँगरेज जाति की बहुत सेवा न कर सकीं ।

कुछ दिन के बाद आयरलैण्ड और इंगलैण्ड के बीच खटपट हुई । एनीबीसेन्ट आइरिश हैं , अतः वे अंगरेजों को बन्दरघुड़की देने और एक नई स्कीम के द्वारा भारतवासियों को अपने पंजे में फिर फँसाने के लिए अब की बार राजनैतिक रूप से दिखलाई पड़ीं । यह उनका तीसरा रूप है । आयरलैण्ड और भारत में पुजने के लिए उन्होंने गवर्नमेंट के विरुद्ध बड़े ही गर्मागर्म लेकचर देना शुरू किये और होमरूल नामी एक नई संस्था को जन्म दिया । उन्हीं दिनों में लोकमान्य तिलक और महात्मा गान्धी देश का राजनैतिक कार्य कुछ आगे बढ़ानेवाले थे । परन्तु एनीबीसेन्ट ने , इस डर से कि कहीं इन लोगों का उद्देश्य विशाल न हो जाय , चट होमरूल लीग के द्वारा गवर्नमेंट से परिमित अधिकार चाहने वाले नियम बनाकर और उनका नाम होमरूल रखकर लोगों को उसी की हलचल में चिपका दिया और लो ० तिलक तथा महात्मा गांधी की संयुक्त शक्ति के द्वारा होनेवाले काम को सदा के लिए नष्ट कर दिया ।
क्रमशः

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