बिखरे मोती-भाग 91
गतांक से आगे….
वो रवि ही क्या जिसने अंधकार को नही भगाया।
वो कवि ही क्या जिसने कोमल भावों को नही जगाया।।
वो नबी ही क्या जिसने इंसानियत को नही बचाया।
वो छवि ही क्या जिसने यश को नही महकाया।।
नबी-फरिश्ता, पैगम्बर, देवता, मसीहा
प्रभुता मिले तो समझ लें,
प्रभु का आशीर्वाद।
नम्रता करूणा उदारता,
रखना प्रभु को याद ।। 903 ।।
व्याख्या : यदि मनुष्य को जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रभुता मिल जाए, अर्थात महानता प्राप्त हो जाए तो इसे अपनी उपलब्धि नही अपितु प्रभु की विशेष कृपा समझनी चाहिए। किसी भी प्रकार के बड़प्पन (महानता) को पाकर मनुष्य के व्यवहार में विनम्रता और हृदय में करूणा तथा उदारता का भाव होना चाहिए।
कर्म रूलावै मनुज को,
दुनिया हंसा न पाय।
प्रभु जब पकड़ै बांह तो,
कोई फंसा न पाय ।। 904 ।।
व्याख्या :- विधाता के इस सृष्टिक्रम में कर्मभोग चक्र गतिमान है। पूर्वजन्म में किये गये किसी पाप कर्म का फल जब सामने आता है तो साधन संपन्न होते हुए भी व्यक्ति घुट-घुटकर रोता है-यदि उसे कोई हंसाने का प्रयास भी करे तो वह हंस नही पाता है।
जैसा कि महाभारत में कुंती के साथ हुआ। वह राजमहल में रहती थी, रानी कहलाती थी, कौरवों की क्रूर कुचालों से पांचों पाण्डवों को बचाती फिरती थी और घुट-घुटकर रोती थी, जबकि गदाधारी भीम और गाण्डीव धारी अर्जुन जैसे महाबली बेटे उसके पुत्र थे। धर्म का पर्याय और महाविद्वान कहलाने वाला युधिष्ठिर उसका ज्येष्ठ पुत्र भी मौजूद था। किंतु वह फिर भी रोती रहती थी। यह कोई पूर्वजन्म के कार्य का दुष्परिणाम नही तो और क्या था?
दूसरा उदाहरण देखिए-जब प्रभु किसी पर अपनी कृपा बरसाते हैं तो कोई उसे नीचा दिखाने की कोशिश भी करे तो भी वह षडयंत्र के भंवर में फंसता नही है। जैसा कि द्रौपदी के चीरहरण के समय प्रभु ने अपनी कृपा बरसाई।
शीश सदा झुकता रहे,
ईश तेरे दरबार।
प्रभु मिलन की प्यास है,
करो इसे स्वीकार ।। 905 ।।
व्याख्या:-विवेकशील व्यक्ति जब भी याचना करता है तो वह यही कहता है कि हे प्रभु! किसी भी प्रकार का बड़प्पन पाने के बावजूद मैं अहंकारशून्य होकर सर्वदा तेरा आभार व्यक्त करता रहूं। मेरे हृदय में तुझसे मिलने की अभीप्सा चातक की चाह बन जाए ताकि मेरी आगोश का रसास्वादन कर सकूं। इसके अतिरिक्त मेरी और कोई प्रार्थना नही है। कृपा करके इन्हें स्वीकार कीजिए।
चिंता चिंगम मुख धरयो,
चर्बण करे दिन रैन।
भूल हुई कहीं कर्म में,
कैसे मिलेगा चैन ।। 906 ।।
व्याख्या:-प्राय: देखा जाता है कि बच्चे चिंगम को मुख में रखकर चूसते रहते हैं। उससे कोई लाभ नही होता है किंतु मुख चलता रहता है। ठीक इसी प्रकार कुछ व्यक्ति दिन रात समस्याओं को मन मस्तिष्क में रखकर उनके निदान पर तो चिंतन करते नही हैं, बार बार चिंता ऐसे करते हैं जैसे पशु जल्दी में खाये गये भोजन की जुगाली करता है। ऐसे लोगों पर हंसी भी आती है और तरस भी, क्योंकि यह ऊर्जा के अपव्यय के सिवाय और कुछ नही है।
जीवन की आपाधापी में कहीं न कहीं कोई चूक हुई होती है। उसको ठीक किये बिना ऐसे व्यक्ति को भला चैन (सुकून) कैसे मिल सकता है? अत: चैन से रहना है तो भूल सुधारिये।
क्रमश: