सुधीर मिश्र
सागर खय्यामी ने लिखा है-
इक घर में इतनी रोटियां खाए नहीं बनें
इक घर का है ये हाल कि सत्तू नहीं सने
लोगों ने जरूरत से ज्यादा रोटियां खायीं। इतनी खायीं कि अमेरिकी सर्जन प्रो. विलियम डेविस को व्हीट बेली किताब लिखकर लोगों को चेताना पड़ा। उन्होंने कहा कि मधुमेह और दिल के रोगों से बचना है तो गेहूं से बनी चीजें खाना बंद करो। और अब यह हाल है कि गरीबों का अनाज कहे जाने वाले जौ, चना, ज्वार, मकई, रागी और इस तरह के कई अन्न अब सुपरफूड कहे जा रहे हैं। पर सागर साहब तो सत्तू न सन पाने की बात कर रहे थे। राम जाने मिलेनियल्स कितना जानते होंगे सत्तू के बारे में। सत्तू के बारे मे भले न जानें लेकिन लिट्टी चोखा के बारे में तो उत्तर भारतीय युवा जानते ही हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार वाले इसे अपना राष्ट्रीय व्यंजन मानते हैं। आटे की लिट्टी के बीच में जो मसालेदार अवयव भरा जाता है, वह होता है सत्तू। इसे भुने हुए चने को पीस कर बनाया जाता है। जौ, मकई का सत्तू भी बनता है। अगर इसे फास्टफूड की तरह देखें तो यह कहने में किसी को भी कोई शक नहीं होना चाहिए कि गंगा के मैदानी इलाकों में बसे लोगों का सबसे पुराना फास्टफूड सत्तू ही है। ऐसा फास्टफूड जो पेट भी भरता है और लोगों को सेहतमंद भी बनाए रखता है।
पत्रकारिता के शुरुआती दिनों को याद करूं तो रिपोर्टिंग के लिए अक्सर बिना खाना खाए घर से निकलना होता था। ज्यादातर स्ट्रीट फूड यानी पूरी, कचौरी, समोसा और भटूरा आदि खाकर काम चलाना पड़ता था। ऐसे में अक्सर एसिडिटी रहने लगी। एक सीनियर डॉक्टर मित्र कार्डियोथोरोसिक सर्जन थे। एक दिन उनके सामने एसिडिटी से परेशान होकर डायजिन खाने लगा तो उन्होंने रोक दिया। उन्होंने अपने दफ्तर में ही कहीं से सत्तू मंगवाया और पानी में घोलकर पिला दिया। कुछ ही देर में एसिडिटी खत्म हो गई। उन्होंने कहा था कि एसिडिटी की इससे बेहतर दवाई नहीं। उस दिन से अब तक कभी भी एसिडिटी होने पर कोई दवा खानी ही नहीं पड़ी। एक दूसरे मित्र डॉक्टर ने एमडी परीक्षा के दौरान अपने साक्षात्कार का जिक्र करते हुए सत्तू की महिमा के बारे में बताया। उनसे पूछा गया था कि आप को अगर पता चले कि कुछ गांवों में प्रोटीन की कमी से बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित हैं तो आप क्या करोगे। उनका जवाब था सबको सत्तू खिलवाऊंगा क्योंकि इससे सस्ता और बढ़िया उपाय कोई हो नहीं सकता। इस जवाब पर उनका चयन हुआ था। अब वापस आते हैं सत्तू के सुपर फूड होने की बात पर।
भुना हुआ चना और जौ दोनों से ही सत्तू बनता है लेकिन जौ का सत्तू ज्यादा पाचक माना जाता है। जौ, गेहूं और मक्का तीनों ही एक ही घास प्रजाति की वनस्पति हैं। इसके बावजूद इनकी प्रकृति और गुणों में फर्क है। गेहूं के आटे के मुकाबले जौ का सत्तू ज्यादा पोषक और सुपाच्य होता है। मधुमेह, दिल के रोगियों, कोलेस्ट्राल और ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए इसे फायदेमंद बताया जाता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। इसलिए गर्मियों में खासतौर पर इसे खाना या पीना बेहतर माना जाता है। पहले इसे गरीब-गुरबा का खाना माना जाता था। अब इसके गुणों ने इसे सुपरफूड की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। यह तो हुए सत्तू के सुपरफूड वाले गुण। अब आते हैं फास्टफूड पर। अब अगर किसी व्यंजन के जल्दी से बनकर तैयार होने में लगने वाला समय फास्टफूड माने जाने का मानक है तो फिर सत्तू से जल्दी आखिर क्या तैयार हो सकता है। पुराने जमाने में तो लंबी यात्राओं पर निकले लोग सत्तू को गमछे में बांध लेते थे। जहां कुआं मिला, वहीं थोड़ा पानी मिलाकर नमक प्याज के साथ उसके गोले बनाकर खा लेते थे। नहीं तो पानी के साथ उसका मीठा या नमकीन शरबत बनाकर पी लेते थे। सत्तू के ऐसे स्वादिष्ट पेय अब बड़े शहरों में भी मिलने लगे हैं। मसालेदार सत्तू को पानी में घोलकर बारीक प्याज, पुदीना, नमक और मिर्च मिलाकर नींबू के साथ दिया जाता है। लिट्टी-चोखा तो खैर अब पटना, बलिया, गोरखपुर और लखनऊ होता हुआ दिल्ली के रास्ते सारी दुनिया में पहुंच चुका है। जहां बिहार के लोग हैं, वहां लिट्टी-चोखा है तो जाहिर है सत्तू तो वहां पहुंचगा ही। सत्तू ज्यादातर जौ से बनता है। जौ का इतिहास दस हजार वर्ष से पुराना है। वैदिक काल से भारत में धार्मिक संस्कारों में जौ के इस्तेमाल की परंपरा है। बैसाख के गर्म महीने में सतुवाई अमावस के दिन लोग सत्तू का दान और सेवन करते हैं। यानी जौ, चने और सत्तू से हमारा सबसे पुराना नाता है। तो फास्टफूड और सुपरफूड के शौकीनों सत्तू खाओ और बिना दवाओं के खुद को सेहतमंद बनाओ। चलते चलते सेहत और दवा के रिश्ते पर जॉन एलिया का यह शेर और सत्तू कथा खत्म कि-
दवा से फ़ाएदा मक़्सूद था ही कब कि फ़क़त
दवा के शौक़ में सेहत तबाह की मैंने