अनुराग गुप्ता
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार और पार्टी को ईमानदार पार्टी बताते हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी को लगता है कि उसकी छवि दूसरे दलों की छवि से मेल नहीं खाती है।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष सक्रिय हो चुका है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रिमो ममता बनर्जी की अगुआई में एक बैठक भी हुई। जिसमें राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर मंथन हुआ और अंतत: फिर से एक नाम सामने आया वो भी ‘शरद पवार’ का… जिन्होंने बैठक से पहले ही राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा इस बैठक में दो नाम और सामने आए और वो नाम थे- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का… लेकिन बैठक के बाद जब नेताओं के बयान सामने आए तो उससे यही प्रतीत हुआ कि सभी दल शरद पवार को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं और शरद पवार हैं कि एक्टिव पॉलिटिक्स से संन्यास नहीं लेना चाहते हैं।
खैर यह तो रही बैठक की बात लेकिन इस बैठक से तीन दलों ने किनारा भी किया। जिसमें आम आदमी पार्टी, बीजद और टीआरएस शामिल है लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा आम आदमी पार्टी की हो रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आम आदमी पार्टी एकला चलो की राह पर है। जिन राज्यों में कांग्रेस का प्रभुत्व दिखाई देता था, वहां पर आम आदमी पार्टी सेंधमारी करने में जुटी है। ऐसे में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के साथ मंच नहीं साझा करना चाहती है। कुछ वक्त पहले संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने पंजाब से कांग्रेस की सत्ता को उखाड़कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की और गोवा में भी अपनी हाजिरी दाखिल करा दी।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आम आदमी पार्टी ही कांग्रेस से दूरियां बना रही है। साल 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के वक्त कांग्रेस ने जब विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, उसमें आम आदमी पार्टी को न्यौता नहीं दिया गया था और 2022 की बैठक में आम आदमी पार्टी ने खुद को अलग ही रखा है।
छवि को लेकर सतर्क है पार्टी
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार और पार्टी को ईमानदार पार्टी बताते हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी को लगता है कि उसकी छवि दूसरे दलों की छवि से मेल नहीं खाती है। हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कई मौकों पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ दिखाई दी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी ने अपना रास्ता बदल दिया। इसके बाद कांग्रेस की स्थिति भी खराब हुई। उनके नेताओं ने धीरे-धीरे उनका साथ छोड़ दिया और कुछ ने तो पार्टी ही बदल दी।
2019 से पहले आम आदमी पार्टी ने लोकतंत्र बचाओ रैली में कांग्रेस नेताओं के साथ मंच साझा किया था। इससे पहले कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भी पार्टी नेता पहुंचे थे। लेकिन फिर आम आदमी पार्टी ने साझा कार्यक्रमों से दूरियां बना लीं और एकला चलो रे की राह अपनाई।
गोवा में हुए विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के रिश्ते काफी अच्छे थे लेकिन फिर चुनाव में दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ी और फिर तनाव ने जन्म लिया। कहा जाता है कि गोवा चुनाव के बाद ही दोनों रिश्तों में तनाव पैदा हुआ। क्योंकि दोनों पार्टियां वहां पर अपनी जमीन तलाश कर रही थी। हालांकि तृणमूल कांग्रेस के हिस्से में कुछ नहीं आया लेकिन ईमानदारी की बात कर-करके आम आदमी पार्टी दो सीटें जीतने में कामयाब हुई।