राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत द्वारा पर्यावरण में सुधार के उद्देश्य से “प्लास्टिक मुक्त ग्वालियर” का आहवान करते हुए समाज के विभिन्न वर्गों, संस्थानों, स्कूलों, कालेजों एवं सरकारी विभागों को अपने साथ जोड़ते हुए ग्वालियर महानगर को प्लास्टिक मुक्त करने का संकल्प लिया गया है। इस अभियान के प्रथम चरण में ग्वालियर महानगर के विभिन्न स्कूल, कालेज के विद्यार्थियों एवं सामाजिक, धार्मिक, व्यावसायिक तथा स्वयंसेवी संगठनों के सदस्यों को शपथ दिलाई गई है कि वे प्लास्टिक के उपयोग पर धीरे धीरे अंकुश लगाते हुए आने वाले समय में ग्वालियर महानगर को प्लास्टिक मुक्त कर देंगे। जब संघ जैसे स्वयंसेवी संगठन आगे आकर शहरों के पर्यावरण को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं तो आगे आने वाले समय में निश्चित ही भारत में पर्यावरण के क्षेत्र में अतुलनीय सुधार देखाई देने वाला है। उक्त अभियान के प्रथम चरण के अंतर्गत कुल 12 स्कूलों के 4500 छात्रों, 6 कालेजों के 3700 विद्यार्थियों एवं अन्य 7 संगठनों के 1800 सदस्यों को प्लास्टिक का उपयोग न करने की शपथ दिलाई गई है। इस प्रकार ग्वालियर महानगर के कुल 25 संस्थानों के 10,000 नागरिकों को अभी तक शपथ दिलाई जा चुकी है। अब इस अभियान के दूसरे चरण में “रोको टोको अभियान” की शुरुआत की जा रही है, जिसके अंतर्गत महानगर के नागरिकों को बाजारों में प्लास्टिक का उपयोग करते हुए देखने पर टोका एवं रोका जाएगा कि वे प्लास्टिक का उपयोग नहीं करें। साथ ही, भारत सरकार ने भी 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगा दी है। अतः नागरिकों को सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने दिया जाएगा। ग्वालियर महानगर में यह अभियान तब तक चलेगा जब तक ग्वालियर महानगर प्लास्टिक मुक्त नहीं हो जाता है।
शहरों को प्लास्टिक मुक्त करना भी पर्यावरण में सुधार का एक अच्छा तरीका है, और संघ जैसे स्वयंसेवी संगठन, समाज के विभिन्न वर्गों को अपने साथ लेकर, देश के पर्यावरण को शुद्ध करने हेतु प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर समाज के कुछ युवा अपने हाथों में पत्थर उठाकर देश का नुक्सान करने में लगे हैं। अब तो देश में मानसून आ चुका है अतः देश के इन युवाओं को पत्थरों के स्थान पर पौधे सौंपे जाने चाहिए ताकि वे पौधे रोपकर देश के पर्यावरण को शुद्ध करने में अपना योगदान दे सकें।
हमारे एक मित्र डॉक्टर राधाकिशन जी जो मूलतः अमृतसर के निवासी हैं एवं वे पर्यावरण में विशेष रुचि रखते हैं वे अक्सर कहते हैं कि इस पृथ्वी के अस्तित्व का आधार ही पर्यावरण है। इस धरा पर प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं एवं इस धरा पर प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। “प्रकृति” दो शब्दों से मिलकर बना है – प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है।
प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। पृथ्वी मां स्वरुप है। प्रकृति जीवन स्वरुप है। पृथ्वी जननी है। प्रकृति पोषक है। पृथ्वी का पोषण प्रकृति ही पूरा करती है। जिस प्रकार मां के आंचल में जीव जंतुओं का जीवन पनपता या बढ़ता है तो वहीँ प्रकृति के सानिध्य में जीवन का विकास करना सरल हो जाता है। पृथ्वी जीव जंतुओं के विकास का मूल तत्व है। प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। अतः विकास और आधुनिकता की दौड़ में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना ठीक नहीं है।
आजकल हम प्रकृति से दूर जा रहे हैं। झरना, नदी, झील और जंगल देखने के लिए हमें बहुत दूर जाना पड़ता है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का खामियाजा हम समय-समय पर भुगत भी रहे हैं। कभी बाढ़ आ जाती है तो कभी बादल फटते हैं। कहीं धरती में पानी सूख रहा है तो कहीं की जमीन आग उगल रही है। यह सब क्लाइमेट चेंज की वजह से ही हो रहा है। पेडों के कटने से हवा इतनी दूषित हो गई है कि शहरों में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। ग्लोबल वार्मिंग से गर्मी अपनी चरम सीमा पर है। अत्यधिक गर्मी का पड़ना डायरिया, ब्रेन स्ट्रोक आदि बीमारियों का कारण बनता है। शहरों में जीवन तो पर्यावरण और प्रकृति से बहुत दूर हो गया है। यहां रहने वाले लोगों को ऐसी बीमारियां हो रही हैं जो पहले न कभी सुनी गई हैं और न कभी देखी गई हैं।
जलवायु, पर्यावरण को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है। क्योंकि जलवायु से प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, जलराशि तथा जीव जन्तु प्रभावित होते हैं। जलवायु मानव की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली है क्योंकि यह पर्यावरण के अन्य कारकों को भी नियंत्रित करता है। कहने का तात्पर्य यह है की पृथ्वी का संरक्षण तभी संभव है जब हमारा पर्यावरण शुद्ध हो। विश्व में जलवायु परिवर्तन चिंता का विषय बना हुआ है। शहरों का भौतिक विकास जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है। मृदा संरक्षण में जलवायु परिवर्तन की भूमिका अहम् होती है।
अतएव समाज को प्रकृति से जोड़ने और समाज को प्रकृति के करीब लाने की आवश्यकता है। मृदा संरक्षण और प्रकृति के बारे में समस्त समुदायों को जागरूक होना होगा। पृथ्वी की सुरक्षा का घेरा है वायुमंडल। प्रकृति का पूरे मानव जाति के लिए एक सामान व्यवहार होता है। प्रकृति का सम्बन्ध धर्म विशेष से नहीं होता। अतएव सभी मानव जाति को प्रकृति को अपना मूल अस्तित्व समझना चाहिए। पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है। अतः पर्यावरण की जागरूकता, जलवायु परिवर्तन की मार से बचा सकती है। अतएव हम कह सकते हैं कि शुद्ध पर्यावरण ही पृथ्वी के अस्तित्व का आधार है।
भीषण गर्मी में समूचे भारत के शहर एक तरह से भट्ठी में भुनते हुए दिखाई दे रहे हैं। मौसम वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से उत्तर एवं पश्चिमी भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी और ज्यादातर शहरों के तापमान 40 से 50 डिग्री के आसपास बने रहेंगे। हो भी ऐसा ही रहा है। शहरों के तापमान में भी एक नया ट्रेंड देखने को मिला है। इस वर्ष 15 मई का दिन सर्वाधिक गर्म रिकॉर्ड किया गया। जिस तरह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है उससे साफ है कि आने वाले वर्षों में तापमान 50 डिग्री सैल्सियस से ऊपर जा सकता है। दिल्ली में 15 मई को सफदरजंग में अधिकतम तापमान 45.6 डिग्री दर्ज किया गया था जबकि मुंगेशपुर का अधिकतम तापमान 49.2 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच गया था।
परंतु, अब मानसून शीघ्र ही भारत को अपने आगोश में ले लेगा अतः पर्यावरण में सुधार लाने के उद्देश्य से हमें अधिक से अधिक पेड़ इस धरा पर लगाने चाहिए। विशेष रूप से उन पेड़ों का चुनाव किया जाना चाहिए जिनसे हमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक मिलती हो, जैसे पीपल, नीम, बरगद, जामुन, गूलर और चौड़ी पत्तियों वाले पेड़, आदि। ये पेड़ सर्वाधिक मात्रा में धूलकणों को भी रोकते हैं। पेड़-पौधों के सहारे ही अब हम प्रदूषण से जंग लड़ सकते हैं। नीम, पीपल, बरगद, जामुन और गूलर जैसे पौधे हमारे आसपास जितनी ज्यादा संख्या में होंगे, हम जहरीली हवा के प्रकोप से उतने ही सुरक्षित रहेंगे। ये ऐसे पौधे हैं, जो कहीं भी आसानी से मिल जाते हैं और इनका रख-रखाव भी मुश्किल नहीं है। ये न केवल पर्याप्त मात्र में ऑक्सीजन देते हैं बल्कि पीएम 2.5 और पीएम 10 को पत्तियों के जरिये सोख लेते हैं और हवा में बहने से रोकते हैं।
पेड़ों को परोपकार की प्रतिमूर्ति कहा जाता है एवं जिसका जन्म ही परोपकार के लिए हुआ है। “वृक्ष परोपकाराय शताम विभूतये” “वृक्ष स्वयं न खाद्यंति” – ऐसा वृक्ष के लिए ही कहा गया है। यदि आप वृक्ष के नीचे बैठेंगे तो आपको छाया मिलती है, पेड़ों से प्राणवायु (ऑक्सीजन) मिलता है, उसके पत्तों से औषधि मिलती है, साथ ही पेड़ों की पत्तियां वाष्पीकरण द्वारा वर्षा कराने में सहायक होती हैं, इसके पुष्पों से सुगंध व फलों से आहार मिलता है, पेड़ों के दूध से रबड़ मिलता है और बहुत सारे पेड़ों की लताओं से रस्सी बनती हैं, वृक्ष की लकड़ी (छाल) से ऊर्जा मिलती है और यदि जलायी जाए तो उसकी राख से शुद्धता मिलती हैं। अतः हम सभी को गंभीरता पूर्वक यह संकल्प लेना चाहिए कि जो सबसे ज्यादा परोपकार करता है अर्थात वृक्ष, उसका हम सभी विस्तार करें व संवर्धन करें। अतः शीघ्र ही आने वाले इस मानसून के समय में हम सभी कम से कम एक वृक्ष (पौधा) अवश्य लगाए और उसके बड़े होने तक उसकी देखभाल करें।