भारत के राष्ट्रपति का चुनाव : प्रक्रिया और राष्ट्रपति पद का महत्व
इस समय देश के जनमानस की निगाहें रायसीना हिल्स की ओर हैं। देखना केवल एक ही है कि भारत के गणतंत्र के प्रतीक इस सोने के पिंजरे अर्थात राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए भारत के 16 राष्ट्रपति के रूप में किसका नाम लिया जाता है ? इस कार्य के लिए चुनावी हलचल है बड़ी तेज हो गई हैं। चुनावी प्रक्रिया आरंभ हो जाने के कारण सभी राजनीतिक दलों में गरमा गरम बैठकों का दौर चल रहा है। जहां विपक्ष अपना पूरा दमखम दिखा कर सत्ता पक्ष की नाक में नकेल डालने की तैयारी कर रहा है, वहीं सत्ता पक्ष भी अपना सम्मान और प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपनी सारी युक्तियां चला रहा है। विपक्ष की ओर से जहां फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के नाम रायसिना हिल्स भेजने के लिए ममता बनर्जी ने प्रस्तावित किए हैं, वहीं सत्तापक्ष अभी इस बिंदु पर अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है। इस संबंध में यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि ममता बनर्जी ने सभी विपक्षी दलों की ओर से संयुक्त प्रत्याशी के रूप में एनसीपी के नेता शरद पवार का नाम भी चलाया था, परंतु राजनीति के कुशल खिलाड़ी शरद पवार ने अपना नाम विनम्रता से पीछे हटवा लिया।
कांग्रेस की अध्यक्षा इस समय कोरोनावायरस से पीडित चल रही है। उनके पुत्र राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नेशनल हेराल्ड केस में ईडी के द्वारा की जा रही पूछताछ में व्यस्त हैं।
फिर भी कांग्रेस विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी राष्ट्रपति के चुनाव जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में शांत नहीं रह सकती है।
वैसे भी विपक्ष में अकेली कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जिसके पास राष्ट्रपति के चुनाव में मत देने के लिए ढाई लाख से अधिक मत हैं।
कांग्रेस की अध्यक्षा अस्वस्थ होते हुए भी विपक्षी नेताओं के संपर्क में हैं और राष्ट्रपति के चुनाव के लिए चर्चाएं कर रही हैं। वह अपनी पूरी राजनीतिक शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग करते हुए भाजपा को अपना मनपसंद राष्ट्रपति बनाने से रोकना चाहेंगी। लोकतंत्र में अपने विरोधी को शिकस्त देने की पूरी छूट होती है। ऐसे में कांग्रेस भी यदि ऐसा कर रही है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कांग्रेस को करना भी चाहिए । हम सभी जानते हैं कि पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बहुत ही अधिक महत्वाकांक्षी नेता हैं। इस बात को कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी भी भली प्रकार जानती हैं कि ममता बनर्जी जल्दबाजी में निर्णय लेती हैं और यदि उनके साथ समन्वय किया गया तो वह अपनी राजनीति अधिक करेंगी, इसलिए सोनिया गांधी ममता बनर्जी को पसंद नहीं करती ।
यहां पर एक और भी राजनीतिक पेंच फंसा हुआ है कि यदि ममता बनर्जी के द्वारा प्रस्तावित नामों पर कांग्रेस ने अपनी सहमति दी तो कांग्रेस की राजनीति फेल हो जाएगी। तब राष्ट्रीय पटल पर सोनिया गांधी की बूझ न होकर ममता बनर्जी की बूझ बढ़ेगी, और इस बात को सोनिया गांधी कभी नहीं चाहेंगी। ऐसे में विपक्ष के सारे मेंढक एक साथ तोले जा सकेंगे, इस बात में अभी भी संदेह है। बस,विपक्ष की यही कमजोरी भाजपा के लिए रायसिना हिल्स में अपना पसंदीदा राष्ट्रपति भेजने में सहायक होगी।
29 जून नामांकन की अंतिम तिथि है ,तथा दिनांक 18 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति का चुनाव, यदि सर्वसम्मति से नहीं चुना जाता है तो, सांसद और विधायकों के मतदान करने से संपन्न होगा। सर्व विदित है कि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी का कार्यकाल 24 जुलाई को पूर्ण हो रहा है। इसलिए उनके कार्यकाल से पूर्व ही देश के लिए नए राष्ट्रपति का चयन अथवा चुनाव किया जाना निश्चित है।
इससे पूर्व यदि 21 जुलाई को चुनाव निर्विरोध नहीं होता है तो मतों की गणना करके परिणाम चुनाव आयोग द्वारा घोषित किया जाएगा। जिसके लिए रिटर्निंग ऑफिसर राज्यसभा के महासचिव होंगे।
इस संबंध में यह जानना भी उचित और प्रासंगिक होगा कि राष्ट्रपति के चुनाव में कुल 4809 सांसद व विधायक अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं।
परंतु यह भी जानना आवश्यक है कि लोकसभा और राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों को मताधिकार प्राप्त नहीं होता है।
किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा व्हिप जारी करना प्रतिबंधित होता है। जिसका तात्पर्य है कि कोई भी सांसद अथवा विधायक किसी प्रत्याशी को अपनी स्वेच्छा से मताधिकार कर सकता है।
हमारी लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सांसद कुल 776 हैं।
तथा विधायक 4033 अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। एक सांसद के एक मत का मूल्य 700 होता है ।कुल सांसदों का मत 5 43200 होगा।
जितने निर्वाचित विधायक होते हैं उनकी कुल संख्या को निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या से भाग देने पर जो संख्या आती है वह एक सांसद का वोट का मूल्य होता है।
एक विधायक का मत का मूल्य संबंधित राज्य की जनसंख्या को वहां के निर्वाचित विधायकों की संख्या गुणा 1000 से विभाजित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश प्रांत की जितनी जनसंख्या है उसको उपरोक्त नियम के अनुसार गणना करने पर एक विधायक का मूल्य 208 आता है। क्योंकि उत्तर प्रदेश राज्य सभी प्रदेशों में जनसंख्या के अनुपात से सबसे बड़ा प्रांत कहा जा सकता है। इसलिए उत्तर प्रदेश के एक विधायक का मूल्य अन्य सभी प्रांतों के विधायकों के मूल्य से अधिक होता है।
प्रत्येक प्रांत में अपने-अपने विधान परिसर में ही विधायक वोट डाल सकते हैं। प्रत्येक सांसद व विधायक को वरीयता क्रम से मतदान करना होता है। उदाहरण के तौर पर यदि 3 प्रत्याशी हैं तो प्रथम मत इसको, द्वित्तीय मत किसको और तृतीय मत किसको रहेगा, ऐसा दिया जा सकता है।
सन 1952 में डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति निर्वाचित हुए जो 1962 तक देश के राष्ट्रपति रहे।
1962 में सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति हुए। 1967 में डॉ जाकिर हुसैन निर्वाचित हुए, लेकिन राष्ट्रपति रहते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी और 1969 में चुनाव हुआ तो वीवी गिरी राष्ट्रपति हुए ।1974 में फखरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति निर्वाचित हुए उनकी भी मृत्यु राष्ट्रपति रहते हुए हुई। इसलिए 1977 में पुन: चुनाव हुए और नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध निर्वाचित हुए। 1982 में ज्ञानी जैल सिंह, 1987 में आर वेंकटरमन, 1992 में डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ,1997 में के आर नारायणन, 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम ,2007 में प्रतिभा पाटिल ,2012 में प्रणब मुखर्जी और 2017 में वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का निर्वाचन हुआ।
उपरोक्त सभी राष्ट्रपतियों में कुछ के क्रियाकलाप राष्ट्रपति की गरिमा के विपरीत रहे जो आलोचना के शिकार भी हुए। परंतु इसके साथ ही कुछ राष्ट्रपतियों ने अपनी छवि सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मामलों में देश के संरक्षक जैसी निभाई है। क्योंकि देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। संविधान का सर्वोच्च संरक्षक है।
भारत का जनमानस अपने राष्ट्र के संरक्षक और संवैधानिक प्रमुख से यही अपेक्षा करता है कि उनकी भूमिका देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है और वह अपनी इस भूमिका को गंभीरता से समझने का प्रयास करें।
राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के प्रधान हैं अर्थात उनको सर्वोच्चता प्राप्त है। अनावश्यक सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप भी ना हो तो अनावश्यक चुप्पी भी नहीं हो। अर्थात रबर स्टैंप बन कर न रह जाए।
डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति ने हिंदू कोड बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से पत्र लिख कर विरोध जताया था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए पत्र लिखा था। राष्ट्रपति वी0वी0 गिरी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लोकसभा भंग करके चुनाव कराने की मांग यह कहकर बात ठुकरा दी थी कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं ना कि अकेले प्रधानमंत्री की।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में ज्ञानी जैल सिंह ने पोस्टल बिल वापस कर दिया था। ये भी राष्ट्रपति हैं जो अपने स्वतंत्र कार्यों के लिए और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए जाने जाते हैं। वहीं फखरुद्दीन अली अहमद ने अकेले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर 25 जून 1975 को बिना मंत्रिपरिषद की सलाह लिए इमरजेंसी की घोषणा देश में कर दी थी। जिस पर उनकी काफी आलोचना हुई। क्योंकि मंत्री परिषद की सलाह अगले दिन 26 जून को प्राप्त हुई थी, उससे पहले इमरजेंसी लग चुकी थी।
जनता क्या चाहती है? भारतीय जनमानस की इच्छा क्या है?उत्पन्न परिस्थितियों में विवेकपूर्ण निर्णय क्या हो?- यह राष्ट्रपति के ऊपर ही निर्भर करता है। भारतीय जनमानस चाहता है कि जहां प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के कार्यों से, तथा उनकी सलाह से राष्ट्रपति बाध्य है। वहीं भारतीय समाज से भी राष्ट्रपति का नाता जुड़ा रहना चाहिए, और उस में सामंजस्य स्थापित करते हुए तभी विवेकपूर्ण निर्णय आना चाहिए। देश के लिए अच्छी योजनाएं बनाने वाले प्रधानमंत्री को एवं उनके सपनों को साकार करने में राष्ट्रपति की भूमिका सकारात्मक होनी चाहिए। राष्ट्रपति का व्यक्तित्व बहुत ही बड़ा होता है । उनके व्यक्तित्व में बहुत सारे आयाम समाए हुए होते हैं। राष्ट्रपति पूरे भारत का प्रतीक होता है। वह एक चलती फिरती संस्था होती है। कार्य करने और निर्णय लेने की सम्यक क्षमता और व्यापक समझ राष्ट्रपति के लिए आवश्यक है।
भारतीय लोकतंत्र में राष्ट्रपति का पद बहुत आवश्यक भी है क्योंकि राष्ट्रपति देश के गौरव का प्रतीक भी होते हैं। भारत का राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के प्रमुखों को, राजदूतों को, तथा प्रांत के राज्यपालों को नियुक्त करते हैं। किसी अन्य देश का आने वाला राजदूत भी सर्वप्रथम राष्ट्रपति के पास जाकर अपने परिचय प्रमाण पत्र आदि प्रस्तुत करता हैं।
भारत की प्राचीन गरिमा को, भारत के प्राचीन इतिहास को,भारत के नए भविष्य को,भारत के विकास को,भारत की जनता की आवाज को और नब्ज को जो भली-भांति पहचानता हो ऐसा राष्ट्रपति हमें चाहिए।
14 अप्रैल 2013 को ‘उगता भारत’ समाचार पत्र का एक प्रतिनिधिमंडल लेखक एवं उगता भारत समाचार पत्र के प्रमुख संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य एवं अन्य गणमान्य लोगों के साथ तत्समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय श्री राजनाथ सिंह जी (वर्तमान में केंद्र सरकार में भारत के गृह मंत्री हैं)से मिलने के लिए नई दिल्ली उनके निवास स्थान पर गया। हम लोगों ने मा ० राजनाथ सिंह जी से प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी जी का नाम चलाने का सुझाव दिया था ,जिसको तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष ने सहर्ष स्वीकार किया था । इस प्रकार देश को एक अच्छा प्रधानमंत्री मिला। हम यह दावा नहीं करते हैं कि मात्र हमारे कहने पर ही माननीय राजनाथ सिंह जी ने यह निर्णय लिया हो, हो सकता है उनका भी अपना मन हो और पार्टी के विचार मंथन में बात चल रही हो, लेकिन हमने जन भावनाओं को माननीय राजनाथ सिंह जी तक पहुंचा दिया था।
वर्तमान दौर में भारतीय जनता पार्टी जो कि केंद्र में शासन में हैं तथा अन्य प्रदेशों में भी उनकी सरकार है ,उनके पास इतना बहुमत है कि वह जिनको चाहे राष्ट्रपति बना सकते हैं।
वर्तमान समय में भाजपा को चाहिए कि राष्ट्रपति पद के लिए केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान को राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाएं,जिससे कि भाजपा को अप्रत्याशित लाभ होगा। निस्संदेह हमारे पड़ोसी मुल्क पाक द्वारा कुछ मुस्लिम देशों में भाजपा की छवि को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है तो उसमें सुधार आएगा और भारत की धर्मनिरपेक्षता की नीति सुदृढ़ होगी।
श्री आरिफ मोहम्मद खान में भारत की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता को समझने और उसके प्राचीन गौरव को पुन: स्थापित करने की भावना है। वह भारतीय आर्ष साहित्य के ज्ञाता भी हैं।
संस्कृत भाषा को भी जानते हैं। हिंदी भी बहुत शुद्ध ,धाराप्रवाह बोलते हैं। वेद और शास्त्रों के भेदों को खोलते हैं। बोलते हैं तो
लोगों को प्रभावित करते हैं
उर्दू ,अरबी आदि का भी उनको पूर्ण ज्ञान है। अंग्रेजी भी उनको बखूबी आती है। उनका आचरण, उनका व्यक्तित्व ,उनकी विद्वता, उनका व्यवहार ,उनका प्रस्तुतीकरण देश के लोगों को भाता है।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।