10 लाख नौकरियां देने की प्रधानमंत्री की घोषणा
निसंदेह देश में बेरोजगारी चिंता के खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है। उसके दृष्टिगत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जिस प्रकार युवाओं को 10 लाख नौकरियां देने की दिशा में ठोस और सकारात्मक कदम उठाया गया है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण और सरहनीय है। सरकार की इस अच्छी नीति का जहां हम स्वागत करते हैं वहीं हम यह भी जानते और मानते हैं कि इसके उपरांत भी देश की बेरोजगारी की स्थिति में कोई बहुत अधिक सुधार नहीं आएगा।
पीएम नरेंद्र मोदी ने देश के बेरोजगार युवाओं को अगले डेढ़ वर्ष में 10 लाख सरकारी नौकरियां देने की घोषणा की है। मोदी की इस घोषणा के पश्चात सभी विभाग और मंत्रालय अपने यहां रिक्तियों की संख्या घोषित करने की तैयारी में जुट गये हैं।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 3 फरवरी और 30 मार्च को संसद में एक प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय और विभागवार रिक्तियों की संख्या बताई थी। केंद्र सरकार के अनुसार, केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में 1 मार्च 2020 तक 8.72 लाख पद रिक्त हैं। इसमें 21,255 पद ग्रुप ए समूह के हैं। 98,842 पद ग्रुप बी के हैं और 7.56 लाख पद ग्रुप सी के हैं। मंत्रालयों में भी लाखों पद खाली हैं। सिविल डिफेंस में 2.47 लाख, रेलवे में 2.37 लाख, गृह मंत्रालय में 1.28 लाख, डाक विभाग में 90,050 पद, इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स डिपार्टमेंट में 28,237 पद खाली हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि सभी सरकारी विभागों में स्वीकृत पदों की कुल संख्या 40.05 लाख है।
हमारे देश में राजनीतिक उदासीनता के चलते अधिकारी लोग सरकारी नौकरियों की रिक्तियों को भरने की ओर समय पर सही कदम नहीं उठाते। उनका प्रयास रहता है कि तदर्थ आधार पर कुछ लोगों को रख लिया जाए या प्राइवेट लोगों को रखकर उन से काम लिया जाए। इसके पीछे कारण एक होता है कि जहां एक व्यक्ति सरकारी नौकर के रूप में ₹100000 प्राप्त करेगा वहीं उसके स्थान पर 20 – 20 हजार के 5 आदमी मिल जाएंगे जो और भी अधिक काम करेंगे। इस प्रकार की मानसिकता सरकारी स्तर पर प्रत्येक विभागीय कार्यालय में देखी जाती है। इस बात की जानकारी संबंधित विभाग के उच्च अधिकारियों सहित मंत्रालय को भी होती है।
कई बार सरकारी रिक्तियों को भरने में अधिकारी इसलिए भी विलंब करते हैं कि उनका कोई अपना परिजन या प्रियजन कहीं उस पद की तैयारी कर रहा होता है। वे प्रतीक्षा करते हैं कि जब उनका वह संबंधित व्यक्ति तैयार होकर आ जाए तब इसकी रिक्ति भरने की सूचना जारी की जाए। रिक्ति भरने की सूचना भी बड़े नाटकीय अंदाज में की जाती है। ऐसी व्यवस्था करने का पूरा प्रबंध किया जाता है कि जिससे केवल अपने मनचाहे व्यक्ति को ही उस सीट पर बैठाया जा सके। इस प्रकार की सोच और मानसिकता प्रत्येक सरकारी विभाग में देखी जाती है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को 10 लाख की रिक्तियों को भरने की घोषणा के बाद यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन रिक्तियों पर पूर्ण पारदर्शिता बरतते हुए पात्र लोगों को ही लिया जाए।
प्रधानमंत्री और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को इस बात पर भी गंभीरता दिखानी चाहिए कि देश में जितने भी सरकारी स्कूल चल रहे हैं उनमें अध्यापकों की पूर्ति उतनी नहीं है जितनी अपेक्षित है या जितनी होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के 80000 गांवों में प्राइमरी स्कूलों में पूरा स्टाफ नहीं मिलता।
नहीं स्कूलों में यह भी देखा जा रहा है कि वहां पर दो अध्यापक हैं जिनमें से एक अध्यापक एक दिन तो दूसरे दिन दूसरा आता है। इस प्रकार एक अध्यापक महीने में 15 दिन छुट्टी मारता है और 15 दिन काम करता है।
इससे अलग यह स्थिति भी है कि एक अध्यापक सरकार से 60000 या ₹100000 प्रतिमाह वेतन के रूप में ले रहा है और वह अपने स्थान पर 10 या 15 हजार रुपए में किसी दूसरे आदमी को विद्यालय में बैठा देता है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस प्रकार की गतिविधियों की सारी जानकारी होती है। पर उनका ‘महीना’ घर पहुंच जाता है, इसलिए वह भी अपने स्तर पर कोई कार्यवाही ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध नहीं करते।
इसी प्रकार तहसीलों में भी अधिकारी प्राइवेट लोगों को बैठा बैठाकर काम करवा रहे हैं। ये प्राइवेट लोग अपने वेतन से अलग किसानों से भी पैसे वसूलते हैं। जिन्हें यह खतौनी देने में या किसी और कागज की नकल आदि देने में पूर्ति करते देखे जाते हैं। सरकारी अधिकारियों को भी इस प्रकार के भ्रष्टाचार की जानकारी होती है। पर वे जानते हैं कि इन लोगों की पूर्ति के लिए उन्हें पैसा तो देना ही पड़ेगा यदि वह लोगों से पैसे लेकर अपना गुजारा कर रहे हैं तो कोई बुरी बात नहीं है। इस प्रकार की प्रवृत्ति से भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने में सहायता मिलती है और यह बात निसंकोच कही जा सकती है कि भारतवर्ष में कई विभागों में भ्रष्टाचार संस्थागत हो चुका है। मानना है कि तहसीलों में इस प्रकार प्राइवेट रूप में जो लोग 10 – 15 वर्ष से कार्य कर रहे हैं उनका नियमितीकरण कर दिया जाए। इससे न केवल उनको सरकारी रोजगार मिल जाएगा बल्कि भ्रष्टाचार को भी कम करने में सहायता मिलेगी।
मिट्टी डालने या अन्य कुछ ऐसे ही दूसरे कार्य करने में इस समय सरकारी विभाग
के ठेकेदार जेसीबी या दूसरी मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रकार की मशीनों ने भी देश में बेरोजगारी को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त परंपरागत जुलाहे, नाई, बढई, लोहार आदि के कामों को छीनकर भी कुछ लोगों ने उनके कामों पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है। एकाधिकार की इस प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाकर लोगों को लघु उद्योग स्थापित कर उनसे तैयार माल लेने की सुविधा यदि सरकार अपने स्तर पर उपलब्ध करा दे तो देश से बेरोजगारी को भगाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हो सकती है।
मैंने ‘वैदिक धर्म में गौमाता’ नाम पुस्तक लिखी है। जिसमें सरकार को यह सुझाव दिया था कि गौ को भारत की अर्थव्यवस्था को केंद्र बना दिया जाए। इसके दूध, छाछ, घी, दही, गोबर , मूत्र आदि से जीवन रक्षक अनेकों औषधियां और साबुन, धूपबत्ती, अगरबत्ती, हवन की समिधाएं आदि प्रतिदिन प्रयोग होने वाली वस्तुओं के साथ-साथ कई प्रकार के खाद्य और पेय पदार्थ तैयार हो सकते हैं । उन सब पर यदि लोगों को काम कराने का प्रशिक्षण दिया जाए तो करोड़ों की संख्या में शिक्षित बेरोजगार भी रोजगार प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे ।
प्रधानमंत्री को 2024 के चुनावों से पहले इस दिशा में गंभीर पहल करनी चाहिए।
प्रत्येक विभाग में जिस प्रकार नौकरियों को छुपाकर बैठने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, उसके बारे में भी सटीक सर्वेक्षण कराकर ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना समय की आवश्यकता है। जाति, संप्रदाय, लिंग के नाम पर भेदभाव न करने की यद्यपि हमारा संविधान व्यवस्था करता है। पर व्यवहार में हम देखते हैं कि जाति, संप्रदाय, लिंग के आधार पर ही लोगों के बीच बहुत बड़ा भेदभाव होता है। इस दिशा में भी सारे राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार कर आवश्यक सुधार करने चाहिए। चुनावी घोषणाबाजी और चुनावों के दृष्टिगत लोगों को लुभाने की राजनीतिक दलों की चालाकियों को जनता समझ चुकी है। अब यथार्थ के धरातल पर कुछ ठोस कार्य होना चाहिए।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के पश्चात रेल मंत्रालय ने 1.48 लाख पदों को भरने के लिए तैयारी आरम्भ कर दी है। इन स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति 2023 दिसंबर तक पूरी होने की आशा है। सभी रेलवे जोन में 2.98 लाख पद रिक्त हैं। रेलवे में हर वर्ष नियुक्तियों का औसत 43,600 है। यदि इन सभी रिक्तियों को भरना है तो निश्चय ही बहुत बड़े स्तर पर पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है।
इस समय देश में सिविल डिफेंस- 2.47 लाख, रेलवे में 2.37 लाख, गृह मंत्रालय 1.28 लाख,डाक विभाग में 90,050 हजार,इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स डिपार्टमेंट- 28,237 हजार पद रिक्त हैं।
परमाणु ऊर्जा विभाग में 5,274 पद खाली हैं। विदेश विभाग में 2,204 पद खाली। कार्मिक और लोक शिकायत और पेंशन विभाग में 2,375 रिक्तियां हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में 8,227 पद खाली हैं। अंतरिक्ष विभाग में 2,688 और जल संसाधन, नदी विकास गंगा में 4,557 पद खाली हैं।
हमें आशा करनी चाहिए कि सरकार ऊपर दिए गए सुझावों पर भी काम करेगी।