अमित सिवाहा
हरियाणा में शुद्धि का आन्दोलन आर्यसमाज के आविर्भाव के कुछ काल पश्चात् ही आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम यह कार्य स्वामी श्रद्धानन्द के नेतृत्व में आरम्भ हुआ। सन् १ ९ २२ में रिवाड़ी आर्यसमाज के उत्सव पर स्वामी श्रद्धानन्द जी पधारे और अन्य धर्मावलम्बियों को शुद्ध करने पर जोर दिया। इसका परिणाम कि भगवान्दास तथा परमार्थी जी ने कुण्डल ग्राम के मुसलमान जोगियों को शुद्ध करके हिन्दू धर्म में दीक्षित किया। इसके अतिरिक्त रिवाड़ी नगर के पं० प्यारेलाल के परिवार को जो मुसलमान होगया था, पुनः वैदिक में प्रविष्ट किया। रिवाड़ी शहर के प्रसिद्ध न्यायमूर्ति सर शादीलाल के चचेरे भाई ला० देवीसहाय को मुसलमान बना लिया गया और इनका नाम अब्दुल्ला रख दिया गया। इस घटना से सारे हरयाणा, दिल्ली और पंजाब में सनसनी फैल गई। आर्यसमाज के कुछ कार्यकर्ता वेश बदलकर दिल्ली गए और अब्दुल्ला ( देवी सहाय ) से सम्पर्क स्थापित किया। उसे रिवाड़ी लाए और पुनः हिन्दू बनाया।
शुद्धि का कार्य मात्र रिवाड़ी में हो रहा हो, यह बात नहीं। आर्यसमाज जगाधरी के लाला बसन्तलाल और लाला रुलियाराम जी अपने इलाके में कार्य कर रहे थे। इन्होंने नाहरपुर एवं बुढ़ियां के आसपास अनेक शुद्धियां की। आर्यसमाज सिरसा का शुद्धि के क्षेत्र में महान् योगदान रहा है। जिसका विवरण इस प्रकार है :-
( १ ) एक काले खां मुसलमान थे वह श्रद्धेय स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा शुद्ध होकर यहां आये। उनका नाम स्वामी जी महाराज ने कृष्णचन्द्र रखा था। कृष्णचन्द्र जी उर्दू के व अरबी, फारसी के जाननेवाले थे। उन्होंने यहां आकर हिन्दी पड़ी और संध्या हवनादि कण्ठस्थ किए। बड़ी लग्न से स्वाध्याय किया। वह अपने भाई को सपरिवार यहां लाये। यहां के समाज में उसके भाई के परिवार को गया। वह शुद्धि कार्य पं० नानकचन्द के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।
२. यहां तीन परिवार रेलवे लोको में ईसाई बना लिये गए थे। उनकी शुद्धि सन् ३४ में बाबू हरिकृष्ण जी व पं० श्रीराम शर्मा द्वारा सम्पन्न हुई। इस कार्य में प्रधान बाबू गोपालस्वरूप जी व श्री मंत्री गणपत जी का अत्यधिक सहयोग रहा।
३. एक कसूर ( फिरोजपुर ) की मुस्लिम युवति की शुद्धि यहां के समाज मन्दिर में पं० श्रीराम शर्मा महोपदेशक के परिश्रम से हुई जिसका नाम लक्ष्मी रानी रखा गया, उसका पुनर्विवाह महन्त रामजीदास डेरा बाबा हरिहर कसर के गद्दीधारी महन्त ( जो कि ग्राम तरकावाली के ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुए थे ) से कराया। उक्त महन्त तो परलोक सिधार गये। वह महिला अब सिरसा में बसी हुई है। उसके एक पुत्री भी है। वह रामामंडी के ब्राह्मण परिवार में ब्याह दी गई।
४. एक टीकासर ( राजस्थान ) ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न विधवा गोमती को क्यामखानी मुस्लिम लेगया था। कार्यक्रम के अनुसार पं ० श्रीराम शर्मा वेदप्रचारार्थ एलानाबाद पहुंचे हुए थे। उपर्युक्त समाचार पं. जी को पता चला, तो विधवा को विधर्मी के पंजे से छुड़ाने के लिए प्रयत्न शुरू किया गया। इसका पता जब मुसलमान को चला तो वह उस विधवा को लेकर भाग निकला। पं० श्रीराम शर्मा ने उसका पीछा किया और नोहर से आगे नगरासरी ग्राम तक वह पहुँच गए। ऐसा पता चलने पर पं० जी नगरासरी ग्राम में ऊंट किराये पर लेकर पहुंचे। वहां एक दानाराम जी आर्यवीर जो कि पं. श्रीराम शर्मा के शिष्य थे, उसे पं ० जी ने सारा वृत्तान्त सुना दिया।
आर्यवीर दानाराम जी वृद्ध पुरुष थे किन्तु उस धर्मवीर पुरुष ने उस किरायेवाले ऊंट को वापिस भेज दिया और अपने पुत्र हेतराम को कहा कि अपने ऊंट पर काठी कस मैं गुरु जी के साथ जाऊंगा। जब तक उस दुष्ट से हिन्दू महिला को नहीं छुड़ा लेंगे हम वापिस नहीं आयेंगे। उस वीर की पत्नी ने भी कहा – इस शुभ कार्य को पूरा करके घर आना। पं ० जी और वह वीर पुरुष दोनों ने उनके पीछे ऊंट लगा दिया और उन दोनों को जोखासर ग्राम में पकड़ने में समर्थ होगए। वहां वे ठा० विक्रमसिंह के सामने पेश किए गए। उस क्षत्रिय वीर ने उस दुष्ट को पहले तो पीटा, बाद में उन्हें थाने के सुपुर्द कर दिया। उस विधवा के घरवालों को आदमी भेजकर बुलवा लिया। उन्होंने कहा कि वह मुसलमान के साथ रह चुकी है हमारे किस काम की है। इस पर श्रीराम शर्मा ने समझाया और कहा – शुद्ध हो सकती है। उसे यज्ञादि क्रिया से शुद्ध किया गया। तत्पश्चात् वह विधवा लड़की उसके घरवालों को सौंपदी गई। इस घटना के बाद फेफाने के आर्यसमाजियों ने दानाराम को ” आर्यवीर ” की उपाधि से इलाके में प्रसिद्ध कर दिया ।
५. ग्राम चानना ( फिरोजपुर ) सारा ग्राम ही चमारों का है। इस गांव में लगभग २०० घर हैं। ईसाइयों ने येन केन प्रकारेण सारे गांव को अपने जाल में फंसा ईसाई बना लिया था। इस घटना का आर्यसमाज सिरसा को पता चला तो यहां से पं० श्रीराम शर्मा और बहादुरसिंह भजनीक फेफानवी को भेजा। वहां किसी ने रहने का स्थान नहीं दिया। पास ही में एक मील पर एक साधु की कुटिया ठहरने की जगह मिली। लगातार सात दिन ग्रामवासियों को समझाते और रात को साधु की कुटिया में ठहर जाते। साधु द्वारा मांगे गये आटे की रोटियां खाते। अन्त में पं० श्रीराम शर्मा अबोहर जाकर श्रद्धेय स्वामी केशवानन्द जी महाराज को सहायतार्थ बुलाकर लाये। चानना निवासी लोगों पर उस उपदेशक व भजनीकों तथा कर्मयोगी स्वामी जी का प्रभाव पड़ा और परिणामस्वरूप यज्ञादि से उनको शुद्ध किया गया। उस अवसर पर श्री काशीराम आर्य अमरपुरावाले एवं चौ० हरिश्चन्द्र आर्य ग्राम रोहिड़ावाली ( फिरोजपुर ) और धर्मचन्द जी प्रधान लोग भी आये। दो बड़े कड़ाहे भरकर हलवा बनाया गया और एक पंक्ति में बैठकर सहभोज हुआ। महान् कर्मयोगी श्रद्धेय स्वामी केशवानन्द जी महाराज का तथा महोपदेशक श्रीराम शर्मा का व्याख्यान हुआ । चौ० बहादुरसिंह के भजन हुए। जिस समय बिछुड़े भाइयों को आर्यबन्धुओं ने गले लगाया तब भरतमिलाप का दृश्य नजर आया। उस दृश्य को देखकर कितने ही पुरुषों की आखों से प्रेमाश्रु टपके। यह श्रेय आर्यसमाज सिरसा को है। उपरोक्त घटना से बढ़कर अधोलिखित घटना है।
सन् १९३६ की बात है कि एक गिरोह मुसलमान बाजीगरों का था, वह गिरोह छोटे लड़के एवं लड़कियों को चुराकर लेजाता था। इस प्रकार उनका यह कार्य २० वर्ष तक चला , पुलिस बहुत खोज करती रही , अन्त में डबावाली के थानेदार रिपुदमनसिंह ने मिंटगुमरी के जंगल में छापा मारकर बड़ी गारद लेजाकर उन्हें गिरफ्तार किया। आठ लड़के एवं अठावन लड़कियां बरामद की। उनके खाने पीने का प्रबन्ध डबावाली मण्डी में नहीं होसका। उन्हें रायबहादुर ला० आत्माराम जी आनरेरी मजिस्ट्रेट सिरसा को सौंप दिया। उनके सुप्रबन्ध के लिए रायबहादुर ने आर्यसमाज के तीन व्यक्तियों को ( १ ) गोपालस्वरूप ( २ ) मंत्री गणपतराम एवं श्रीराम शर्मा को सौंप दिया। उन ६६ लड़के लड़कियों में से दस लड़कियां बालबच्चेदार थीं। सब को आर्यसमाज मन्दिर में रखा गया। आर्यसमाज के कोष में जो राशि थी वह सब उन पर व्यय होगई। शहर के दानी महानुभावों ने दिल खोलकर सहायता की। उन्हें पूछकर उनके घर पत्र डाले और अखबारों में सूचना निकाली। इस पर जहां तहां से संरक्षक अथवा माता पिता आने लगे। पूरी तसल्ली होने पर उन को शुद्ध कर दिया गया। इतना ही नहीं बल्कि उनको पढ़ाया तथा संध्या और हवनमन्त्र भी कण्ठस्थ करा दिए गए।
इस कार्य में स्व. श्री गणपतराम जी और पं० श्रीराम शर्मा के उपदेश की गहरी छाप पड़ी और उन्हें पुन: स्वीकार कर लिया। दो शेष लड़कियां जिनका कोई वारिश न था उनका भिवानी अनाथालय में प्रवेश कराया गया। इसके अतिरिक्त बहुतसी शुद्धियां बा० हरिकृष्ण जी लोको रेलवे द्वारा करवाई गईं तथा ग्राम खेवाली में चौ० सुरजाराम जी गोदारा के द्वारा करवाई। आर्यसमाज जीन्द शहर ने मुस्लिम मतावलम्बी डॉ. सुलेमान अख्तर को गायत्री मन्त्र के उपदेश द्वारा शुद्ध करके, उसका नाम सुरेन्द्र शर्मा रखकर वैदिकधर्म में दीक्षित किया। सन् १९२३ में सोहना के भरतसिंह ने स्वामी श्रद्धानन्द के साथ मिलकर मथुरा एवं आगरा के मलकानों ( राजपूतों ) की शुद्धि की। सोहना आर्यसमाज ने एक नव मुस्लिम तेली को शुद्ध करके आर्य बनाया और एक हिन्दू महिला कौशल्या को मुसलमानों के पंजे से छुड़ाकर देहली वनिता आश्रम में प्रविष्ट कराया। आर्यसमाज ठोल ( करनाल ) ने सन् १९२४ सितम्बर मास में रहतवान सिखों को शुद्धि कराई और यह शुद्धिसंस्कार पं० विश्वामित्र तथा मुखराम ब्रह्मचारी द्वारा कराया गया। कोसली आर्यसमाज ने एक मिरासी की लड़की को शुद्ध करके उसका नाम जानकी रखा और श्योदान मास्टर के साथ उसका विवाह कर दिया। इसी प्रकार इस आर्यसमाज ने गुड़यानी के भोला बनिये को जो मुसलमान बन गया था, पुनः शुद्ध करके हिन्दूधर्मी बना दिया। आर्यसमाज बालन्द ( रोहतक ) ने निम्नलिखित नीलगर परिवारों को शुद्ध करके वैदिकधर्मी बनाया : ( १ ) मुसद्दी का परिवार ( २ ) चन्द्र का परिवार ( ३ ) शेरसिंह का परिवार और ( ४ ) होशियारसिंह का परिवार। आर्यसमाज मित्रौल औरंगाबाद में सन् १९२३ में ठाकुर रणजीतसिंह जेलदार हथीनवासी की अध्यक्षता में एक शुद्धिसम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन पर दीघोट ग्राम, जो जाटों का था, उसका एक मोहल्ला, जो कभी मूला बन गया था, शुद्ध किया गया। इसी प्रकार एक शुद्धि पीगोंड ग्राम में मूला गूजरों के चालीस परिवारों की कीगई, इसमें स्वामी धर्मानन्द जी उपस्थित थे। इसी आर्यसमाज ने रोजीना ग्राम के एक सिक्का परिवार को शुद्ध किया।
हरयाणा के मेवातक्षेत्र एवं अलवर के मेवातक्षेत्र के शुद्ध हुए मेवों को कुछ मुसलमान सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने बहकाकर पुनः मुसलमान बनाना चाहा। उनका एक प्रतिनिधिमण्डल २६ जुलाई सन् १९४९ को इन्द्र विद्यावाचस्पति से मिला और वे उन्हें लेकर बाबू राजेन्द्रप्रसाद के पास गए। बाबू राजेन्द्रप्रसाद ने सारी बातें सुनने पर उन्हें कहा यदि आप अपनी इच्छा से शुद्ध हुए हो तो दृढ़तापूर्वक रहिए और किसी के दबाव में मत आइए। पं० नेहरू ने किसी आदमी को दबाव डालने के लिए अथवा मुसलमान बनाने की प्रेरणा करने के लिए नहीं भेजा।
शुद्धि के विषय में चौ० बलवीरसिंह आर्यप्रचारक हरयाणामण्डल ने लिखा है कि रामदत्त गौतम कट्टर पौराणिक विचारों के व्यक्ति थे। शिवजी को भोग लगाए बिना भोजना करना पाप समझते थे। उनके बड़े भाई आर्यसमाज लाडवा के मन्त्री थे। वे एक रहतिये की शुद्धि पर रहतिये के हाथ से खाना खाकर आए। यह जानने पर पं० रामदत्त गौतम ने घर के बरतनों का त्याग करके अपने लिए अलग से बरतन रखे। किन्तु एक बार वे हरद्वार स्नानार्थ जा रहे थे और उसी रेल के डिब्बे में सवार होगए, जिसमें आर्यसमाजी गुरुकुल कांगड़ी के उत्सव पर जा रहे थे। आर्यसमाजी भाई एक – दूसरे को हाथ पकड़ कर चढ़ा रहे थे। पंडितजी इस दृश्य को देखकर आश्चर्य में पड़ गए। हरद्वार आने पर तो उनका आश्चर्य और भी बढ़ गया, क्योंकि वहां आर्य स्वयंसेवक बिना किसी जाति भेदभाव के लोगों को बड़ी श्रद्धा से गुरुकुल ले जा रहे थे। पं० जी पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ा और वे सदैव आर्यों के होगए और आगे जाकर आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के उपदेशक बने।
पुस्तक :- हरियाणा आर्यसमाज का इतिहास
लेखक :- डॉ रणजीत सिंह