गतांक से आगे….
वह ऐसे निष्प्राण हो जाता है जैसे पानी के बिना पौधा सूख जाता है। याद रखो, संबंधों का ताना-बाना सदभाव के जल पर चलता है। ठीक उसी प्रकार जैसे नदी के जल पर नाव चलती है। यदि नदी का जल सूख जाए तो नाव नही चल सकती है। ठीक इसी प्रकार यदि हृदय में सद्भावों का स्रोत सूख जाए तो संबंधों का ताना-बाना स्वत: ही समाप्त हो जाता है। संसार के संबंधों की नींव हृदय की पवित्रता और घनिष्ठता के धरातल पर टिकी है। जरा सोचिए, परिवार में एक बच्चे के लिए माता-पिता, चाचा-ताऊ तथा बड़ा भाई भी है, किंतु अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह जितने अधिकार से पिता अथवा माता से मांगता है, इतना किसी और से नही। अत: संसार के रिश्ते भाव की गहराई पर टिके हैं। इन्हें हमेशा संजोकर रखिए।
रसना में लगा घाव तो,
भर जाए कुछ दिन बाद।
रसना से लगा घाव तो,
जीवन भर रहे याद ।। 913 ।।
व्याख्या :-
हमारे शरीर में केवल एक अंग जिह्वा ही ऐसी है जिसमें लगा हुआ घाव बहुत जल्दी भर जाता है किंतु जिह्वा के द्वारा बोला गया कटुवचन मनुष्य को जीवन भर याद रहता है। वह घाव कभी भरता नही है। इसलिए मनुष्य को सदा सोच समझकर बोलना चाहिए।
मिल जाए सामथ्र्य तो,
मत कर अत्याचार।
क्षमाशील धैर्यवान बन,
मत खो प्रभु का प्यार ।। 914 ।।
व्याख्या :-
प्राय: देखा जाता है कि यदि मनुष्य को जीवन में किसी भी प्रकार की सामथ्र्य (शक्ति) मिल जाए तो वह अन्यायी और अत्याचारी हो जाता है, नीति को छोड़ अनीति पर उतर आता है, जबकि सामथ्र्यवान व्यक्ति को चाहिए कि वह सर्वदा क्षमाशील और धैर्यवान बनकर रहे।
ध्यान रहे, यदि व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरूपयोग अन्याय, अनीति, अत्याचार और प्रतिशोध में करने लगता है तो प्रभु प्रदत्त सामथ्र्य वापिस चली जाती है, क्योंकि यह विभूति (विलक्षणता) तो परमपिता परमात्मा का उपहार है। किसी की व्यक्तिगत दौलत नही। इसलिए प्रभु-कृपा अथवा प्रभु के प्यार को सर्वदा सजगता से संभालकर रखिये। इसका उपयोग लोक कल्याण में कीजिए। निष्काम भाव से कीजिए, तभी वह टिक पाएगी अन्यथा नही।
प्रवचन पै मत जोर दे,
आचरण पै दे ध्यान।
आचरण देख कै जग करे,
व्यक्ति का सम्मान ।। 915 ।।
व्याख्या :-
प्राय: दूसरों को उपदेश देने के लिए गाल बजाई तो बहुत लोग करते हैं, किंतु प्रवचन का प्रभाव केवल उन्हीं का पड़ता है जिनका आचरण अनुकरणीय और प्रशंसनीय होता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रभाव शब्द का नही आचरण का पड़ता है। सभ्याचरण के कारण ही यह संसार झुकता है। जैसे सम्याचरण के कारण ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सम्मान आज ‘संयुक्त राष्ट्र’ में भी होता है। अत: व्यक्ति को प्रवचन की अपेक्षा सम्याचरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ध्यान रहे, आचरण की भाषा मूक रहते हुए भी शोर करती है, यश की सुगंध बिखेरती है।
काम क्रोध के कारनै,
भरी पड़ी है जेल।
घृणा लोभ बिगाड़ते,
इस जीवन का खेल ।। 916 ।।
व्याख्या :-
मनुष्य के मन में अनेकों विकार भरे पड़े हैं जैसे-काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष, मत्सर, अहंकार इत्यादि।
क्रमश: