अशोक मधुप
एक पुरानी कहावत है कि नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा होता है। ये कहावत आज भाजपा पर सही उतर रही है। उसके सामने उसकी पार्टी के नेता, विधायक, सांसद और प्रवक्ता ही रोज नयी समस्या खड़ी कर रहे हैं। एक कुछ कहता है, दूसरा कुछ।
विद्वान कहते आए हैं कि सुनिये बहुत। बोलिए कम। जो भी बोलिए नाप−तौल कर बोलिए। कम बोलिए। ये बात पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा पर खरी उतरती हैं। इनके एक जरा से गलत बोलने से कई मुस्लिम देश अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। कुछ जगह बॉयकॉट इंडिया अभियान चलाया जा रहा है। भारतीय सामान का विरोध हो रहा है। इस बीच कुवैत के कुछ सुपर स्टोर्स ने भारत में बने सामानों की बिक्री रोक दी है। देश भर में शुक्रवार को कई जगह प्रदर्शन हुए। तोड़फोड़ हुई। कई स्थान पर इंटरनेट बंद करना पड़ा। कर्फ्यू भी लगाया गया।
जाने−अनजाने हम कई बार ऐसा बोल जाते हैं कि जो हमारे लिए परेशानी कर हो जाता है। ऐसा ही यहां हुआ। टीवी डिबेट में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की जुबान से वह निकल गया, जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था। वह एक अधिवक्ता भी थीं, वह जानती थीं कि उन्हें क्या कहना चाहिए क्या नहीं। इन डिबेट में एकंर भी चाहते हैं कि डिबेट में शामिल व्यक्ति कुछ ऐसा कह जाए कि जिसे चटखारे लगाकर बाजार में परोसा जा सके। अपनी टीआरपी बढ़ाई जा सके। ऐसी ही एक डिबेट में सेना के पूर्व ब्रिगेडियर उत्तेजित होकर दुश्मन देश को गंदी−गंदी गाली देने लगे थे। लखीमपुर खीरी कांड में स्वयं न्यायालय ने कहा कि यदि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा एक सभा में कुछ लोगों को अंजाम भुगत लेने की धमकी देते न देते तो वह प्रदर्शन ही नहीं होता, जिसमें कार से कुचलकर प्रदर्शनकारी मरे और बाद में प्रदर्शनकारियों ने कार सवारों को पीट−पीट कर मार डाला।
इस लखीमपुर हादसे के बाद केंद्र सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा था। हो सकता है कि यदि ये हादसा न होता तो केंद्र सरकार दबाव में न होती। उसे कृषि कानून वापस लेने के लिए बाध्य न होना पड़ता। ऐसा ही नूपुर शर्मा प्रकरण में हुआ। भाजपा के प्रवक्ता पद से नूपुर शर्मा को हटा दिया। उनकी पार्टी की सदस्यता निलंबित कर दी गई। सरकार ने भी बयान देकर कहा कि यह सरकार का बयान नहीं है। फिर भी नुकसान तो हो ही चुका था। नूपुर शर्मा के बयान से पिछले आठ साल में बनी बनाई केंद्र सरकार की इमेज को धक्का लगा। इतना सब हो गया किंतु वह चैनल और एंकर तथा उसके जिम्मेदार लोग घटनाक्रम से गायब हो गए, जबकि उनके विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए थी।
एक पुरानी कहावत है कि नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा होता है। ये कहावत आज भाजपा पर सही उतर रही है। उसके सामने उसकी पार्टी के नेता, विधायक, सांसद और प्रवक्ता ही रोज नयी समस्या खड़ी कर रहे हैं। एक कुछ कहता है, दूसरा कुछ। एक रिपोर्ट के अनुसार अब भाजपा ने धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले अपने 38 नेताओं की पहचान की है। इनमें से 27 चुने हुए नेताओं को ऐसे बयान देने से बचने की हिदायत दी है। इनसे कहा गया है कि धार्मिक मुद्दों पर बयान देने से पहले पार्टी से परमिशन ले लें। पैगंबर मोहम्मद साहब पर विवादित टिप्पणी करने वाले नूपुर शर्मा और नवीन कुमार पर कार्रवाई के बाद भाजपा एक्शन में दिख रही है। नेताओं के पिछले आठ साल (सितंबर 2014 से 3 मई 2022 तक) के बयानों को आईटी विशेषज्ञों की मदद से खंगाला गया है। करीब 5,200 बयान गैर-जरूरी पाए गए। 2,700 बयानों के शब्दों को संवेदनशील पाया गया। 38 नेताओं के बयानों को धार्मिक मान्यताओं को आहत करने वाली कैटेगरी में रखा गया।
कुछ भी हो नुपूर शर्मा के उत्तेजित होकर बयान देने से देश और देश की छवि को बड़ा नुकसान हुआ। ऐसा ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के समय हुआ। तब तक दूरदर्शन नहीं आया था। रेडियो था। समाचार वाचक की गलती से बुलेटिन में कहा गया कि इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख सुरक्षा गार्डों ने की। बुलेटिन में सिख शब्द के प्रयोग से बचा जा सकता था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की सूचना से जनता गुस्से में थी ही, ये पता चलने पर कि उन्हें सिख सुरक्षा गार्ड ने मारा है, वह सिखों पर हमलाकर हो गई। गलती दो सुरक्षा गार्ड की थी किंतु हजारों निरपराध सिख कत्ल कर दिए गए।
अब भी समय है जो हो गया, वह वापस नहीं आ सकता। आगे से इस तरह की घटना न हो, इस तरह के बयान न दिए जाएं तो बेहतर हो सकता है। इसके लिए भाजपा को अपनी पार्टी के नेता, विधायक, जनप्रतिनिधि, सांसद और मंत्रियों की जुबान पर लगाम लगानी होगी। पार्टी में काम करने वाले, धार्मिक व्यक्ति, साधु−संतों को कहना होगा कि पार्टी के साथ रहना हो तो अपने धर्म की अच्छाई बताएं। दूसरे धर्म के बारे में कोई भी टिप्पणी न करें।